6 महीने में जन्मी 400 ग्राम की बच्ची, 94 दिन रही अस्पताल में…

Pune: मां के गर्भ में 9 महीने तक शिशू रहता है, जिसे पूरी तरह से स्वस्थ माना जाता है, लेकिन आज हम आपको ऐसी बच्ची के बारे में बताने वाले हैं जो मात्र 6 महीने में ही जन्म ले ली है.

By Bimla Kumari | January 6, 2023 2:13 PM

Pune: मां के गर्भ में 9 महीने तक शिशू रहता है, जिसे पूरी तरह से स्वस्थ माना जाता है, लेकिन आज हम आपको ऐसी बच्ची के बारे में बताने वाले हैं जो मात्र 6 महीने में ही जन्म ले ली है. जिसे डॉक्टर्स ने नया जीवन दिया है. माना जा रहा है कि भारत में सबसे कम समय में जन्म लेने वाली ये पहली बच्ची है शिवान्या. जिसका जन्मा वजन मात्र 400 ग्राम है और वो पूरी तरह से स्वस्थ है.

भारत में जन्मी सबसे कम समय में बच्ची

बच्ची को देखकर डॉक्टर्स भी हैरान रह गए थे. उसकी जान बचाने के लिए डॉक्टर्स की टीमों ने बच्ची की जिंदगी बचाने का काम शुरू किया और आखिर शिवन्या सरवाइव कर गई. जिसके बाद उसने नया रेकॉर्ड बनाया है. डॉक्टरों ने बच्ची को भारत में जन्मी सबसे कम समय, सबसे हल्की और छोटी बच्ची के रूप में बताया है. बता दें कि यह बच्ची पुणे के वाकड में जन्म ली है.

21 मई को जन्मी थी बच्ची

बताएं आपको कि पिछले साल 21 मई को जन्मी शिवन्या को 94 दिनों की गहन देखभाल के बाद 23 अगस्त को छुट्टी दे दी गई थी. जब उसे घर भेजा गया तो उसका वजन 2,130 ग्राम था. ऐसे शिशुओं में जीवित रहने की दर 0.5% जितनी कम होती है. गर्भावस्था के सामान्य 37-40 सप्ताह के बाद पैदा होने वाले शिशुओं का वजन न्यूनतम 2,500 ग्राम होता है. हलांकि “वह अब किसी भी अन्य स्वस्थ नवजात शिशु की तरह ही है. उसका वजन 4.5 किलोग्राम है और वह इष्टतम भोजन का सेवन करती है.

इस कारण से 6 महीने में ही जन्म हुआ

पुणे नियोनेटोलॉजिस्ट डॉ सचिन शाह ने कहा कि बच्ची का समयपूर्व जन्म उसकी मां में जन्मजात असामान्यता के कारण हुआ है, जिसे डबल यूटेरस (बाइकोर्नुएट) कहा जाता है. यह तब अधिक मामलों में तब होता है जब एक महिला के गर्भ में दो अलग-अलग पाउच होते हैं और दोनों में से एक पाउच दूसरे से छोटा होता है. एक भ्रूण के रूप में शिवन्या छोटे में पली-बढ़ी, जिससे उसका जन्म सिर्फ 24 सप्ताह में ही हो गया.

डॉक्टॉरों के लिए था बड़ा टास्क

विशेषज्ञों के अनुसार माइक्रो प्रीमाइस या समय से पहले पैदा हुए बच्चे खासकर जिनका वजन 750 ग्राम से कम होता है, वे बेहद नाजुक होते हैं और उनकी देखभाल मां के गर्भ जैसे वातावरण से किया जाता है. वहीं, यह बच्ची महज 400 ग्राम की थी. डॉक्टरों के लिए बच्ची को बचाना बहुत बड़ा चैलेंज था.

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