देश में दशकों पुराना है नकाब पहनने का रिवाज, भारतीय शैली अपनायें Corona को दूर भगायें

आज पूरा विश्व कोरोना की महामारी से जूझ रहा है. इस वायरस ने लोगों को घरों में कैद रहने के लिए मजबूर कर दिया है और व्यापार ठप कर दिया है. कुल मिलाकार हाहाकार मचा हुआ है. लेकिन इस स्थिति से हमें घबराने की नहीं, बल्कि हमें भारतीय जीवनशैली व परंपरा को अपनाकर कोरोना वायरस को मात देने की जरूरत है.

By SumitKumar Verma | March 18, 2020 10:40 AM

आज पूरा विश्व कोरोना की महामारी से जूझ रहा है. इस वायरस ने लोगों को घरों में कैद रहने के लिए मजबूर कर दिया है और व्यापार ठप कर दिया है. कुल मिलाकार हाहाकार मचा हुआ है. लेकिन इस स्थिति से हमें घबराने की नहीं, बल्कि हमें भारतीय जीवनशैली व परंपरा को अपनाकर कोरोना वायरस को मात देने की जरूरत है. भारतीय जीवनशैली व परंपरा को हम आत्मसात कर लें व थोड़ी सतर्कता बरतें, तो कोरोना पर हम काफी हद तक काबू पा सकते हैं.

हर रोग के वायरस से बचा सकती है जैन पद्धति

जैन साधु मुंह पर मुहपति बांधते हैं.ताकि मुह से निकलने वाले कीटाणु दूसरे के चहेरे पर नहीं जाये. यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है. इस पद्धति की शुरुआत हजारों वर्ष पहले भगवान ऋषभदेव ने की थी. इसका मुख्य उद्देश्य छोटे-छोटे जीव के प्रति जीव दया का भाव रखना. भगवान ऋषभदेव की इस परंपरा आज भी सभी जैन साधु व साधक निभा रहे हैं. उक्त बातें बिष्टुपुर स्थित कमानी जैन भवन में सुप्रसिद्ध जैन मुनि धीरजमुनि ने कही. उन्होंने कहा कि आज लोग वायरस से बचाव के लिए गर्म पानी पीने वकालत कर रहे हैं.

जबकि जैन पद्धति में प्राचीन काल से गर्म पानी पीने की परंपरा है. इससे किसी भी तरह के रोग के होने की संभावना नहीं रहती है. उन्होंने कहा कि जैन साधु रात्रि अर्थात सूर्यास्त के पश्चात खाना भी नहीं खाते हैं और न ही पानी पीते हैं. मनुष्य के जीवन में जैन धर्म का आचरण काफी महत्व रखता है.

अगर इस आचरण का पूर्णरूपेण पालन किया जाये तो कोरोना जैसे वायरस तो आसपास भी नहीं भटकेगा. उन्होंने कहा कि मनुष्य अपने जीवन में जीतना हिंसा करेगा, उसके जीवन में उतनी ही अशांति बढ़ेगी. इसलिए मांसाहार को छोड़कर शकाहार अपना जरूरी है. पशुओं की हिंसा करने से नि:सासा मिलता है और दुनिया में कोई न कोई विपत्ति आ जाती है. इसलिए हमेशा सदाचारमय जीवन जीना जरूरी हैं.

मुस्लिम समाज में नकाब, वजू का पुराना रिवाज

मुस्लिम समाज नकाब को इज्जत मानता है. आजादनगर निवासी साहित्यकार और नवोदय विद्यालय के वरीय शिक्षक डॉ अख्तर आजाद बताते हैं कि नकाब पर्दा है. इसे सफाई से जोड़कर भी देखा जा सकता है. मुस्लिम समाज में औरत में नकाब पहनने की परंपरा है. अभी कोरोना वायरस को लेकर मास्क पहनने की हिदायत दी जा रही है. जो केवल नाक और मुंह की रक्षा करता है.

जबकि हमारे यहां नकाब पहनने की परंपरा बहुत पुरानी है. जो नाक, मुंह के साथ-साथ आंखों की रक्षा भी करता है. सफाई पर रहता है जोर. वे वजू पर भी जोर देते हैं. सच्चा मुसलमान दिन में पांच बार नमाज पढ़ता है. उससे पहले वजू करना होता है. इस तरह वजू भी पांच बार करना होता है.

यह हाथ, मुंह, पैर आदि को पानी से साफ करने का प्रोसेस है. हम भोजन से पहले तो हाथ धोते ही हैं, वजू के चलते पांच बार अतिरिक्त हाथ, चेहरा धोते हैं. इसे सफाई से जोड़कर देखा जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त मुस्लिम समाज में इस्तिंजा (पेशाब) के बाद पानी का रिवाज भी है. हालांकि साहित्यकार और करीम सिटी कॉलेज में उर्दू विभाग के प्रो अहमद बद्र कोरोना को धर्म से जोड़कर नहीं देखते.

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