Health Update: वायु प्रदूषण खुले में काम करने वालों के स्वास्थ्य पर डाल रहा है प्रतिकूल प्रभाव: अध्ययन

ऑटो रिक्शा चालकों, रेहड़ी पटरी विक्रेताओं और सफाईकर्मियों ने बताया कि वायु गुणवत्ता का उनके स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है. ऑटो रिक्शा चालकों ने आंखों के लाल होने एवं जलन की शिकायत के साथ ही सिरदर्द, चक्कर आने और मांसपेशियों में अकड़न की समस्या भी बताई.

By Agency | June 25, 2022 6:11 PM

राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में प्रदूषण के प्रभावों को लेकर एक नए अध्ययन में कहा गया है कि व्यापक वायु प्रदूषण और खराब मौसम के कारण ऑटो रिक्शा चालकों, सफाईकर्मियों, रेहड़ी पटरी विक्रेताओं और खुले में काम करने वाले अन्य लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.

अध्ययन के अनुसार, अधिकतर ऑटो रिक्शा चालकों, रेहड़ी पटरी विक्रेताओं और सफाईकर्मियों ने बताया कि वायु गुणवत्ता का उनके स्वास्थ्य पर काफी प्रभाव पड़ता है. ऑटो रिक्शा चालकों ने आंखों के लाल होने एवं जलन की शिकायत के साथ ही सिरदर्द, चक्कर आने और मांसपेशियों में अकड़न की समस्या भी बताई. वायु की खराब गुणवत्ता एवं धूम्रपान आदि के कारण खुले में काम करने वाले कामगारों में फेफड़े संबंधी समस्याओं की बात भी स्पष्ट रूप से सामने आई है.

‘दिल्ली में खुले में काम करने वाले कामगारों के स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण और खराब मौसम के दुष्प्रभाव का मूल्यांकन : एक समेकित महामारी विज्ञान दृष्टिकोण’ शीर्षक वाले अध्ययन में यह बात सामने आई है. यह अध्ययन भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान तिरुपति, टेरी स्कूल ऑफ एडवांस्ड स्टडीज, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज दिल्ली विश्वविद्यालय और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली से जुड़े लोगों ने किया.

रिपोर्ट के मुख्य लेखक और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, तिरुपति के प्रोफेसर सुरेश जैन ने कहा कि वर्षों से दिल्ली में वायु प्रदूषण गंभीर चिंता का विषय बना हुआ है. उन्होंने कहा कि शहर की भौगोलिक स्थिति के कारण गर्मी तथा सर्दी दोनों में ही धुंध के साथ वायु प्रदूषण से जुड़ी खराब मौसम संबंधी घटनाएं स्थिति को विशेष रूप से संवेदनशील बना देती हैं.

उन्होंने कहा कि ऐसे परिदृश्य में खुले में काम करने वाले कामगार सबसे अधिक प्रभावित होते हैं. प्रोफेसर जैन ने कहा कि अध्ययन में पाया गया है कि प्रभावी ढंग से जोखिम को कम करने वाले उपायों और नीतियों की कमी के साथ काम के अधिक घंटे और बदलते कार्यस्थल इन कामगारों के लिए वायु प्रदूषण और कठोर परिस्थितियों के खतरे को बढ़ा देते हैं. उन्होंने कहा कि अन्य कामगार समूहों की तुलना में सफाईकर्मियों के फेफड़े को नुकसान पहुंचने का खतरा उनके काम की प्रकृति के कारण होता है.

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