इमरजेंसी के कारण जिंदा बच गया ””शोले”” का गब्बर नहीं तो…

मुंबई : वर्ष 1975 में लगायी गयी इमरजेंसी का फिल्म जगत पर गहर असर देखने को मिला था. असर इतना प्रभावी था कि कई निर्माताओं, कलाकारों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. फिल्मों की सेंसरशिप में दखलअंदाजी की जाने लगी, फिल्म के प्रिंट स्क्रीन तक जलाने का काम किया गया था. हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 27, 2018 8:47 AM

मुंबई : वर्ष 1975 में लगायी गयी इमरजेंसी का फिल्म जगत पर गहर असर देखने को मिला था. असर इतना प्रभावी था कि कई निर्माताओं, कलाकारों को भारी नुकसान उठाना पड़ा था. फिल्मों की सेंसरशिप में दखलअंदाजी की जाने लगी, फिल्म के प्रिंट स्क्रीन तक जलाने का काम किया गया था. हिंदी सिनेमा की आइकॉनिक फिल्म शोले को भी इमरजेंसी की मार झेलनी पड़ी थी.

फिल्म के डायरेक्टर रमेश सिप्पी ने कई मौकों पर इसका खुलासा किया है कि कैसे आपातकाल के दिनों ने उनकी फिल्म को प्रभावित किया. उन्होंने कहा था कि फिल्म का क्लाइमैक्स जैसा दिखाया गया वैसा नहीं था. सेंसर ने फिल्म के क्लाइमैक्स पर आपत्ति व्यक्त की थी. असली क्लाइमैक्स सीन में ठाकुर अपने नुकीले जूतों से गब्बर को मौत के घाट उतार देता है. इस सीन को सेंसर ने कानून का हवाला देकर बदलने को कहा था. इसके बाद 26 दिनों में क्लाइमेक्स को दोबारा से शूट किया गया , जिसमें गब्बर को मारा नहीं गया बल्कि कानून के हवाले किया गया.

गौर हो कि सुपरहिट फिल्म शोले 15 अगस्त 1975 को रिलीज हुई थी. फिल्म में अमिताभ बच्चन, धर्मेंद्र, संजीव कुमार, जया बच्चन और हेमा मालिनी नजर आये थे और यह ब्लॉकबस्टर साबित हुई थी. शोले का नाम हिंदी सिनेमा की बेहतरीन फिल्मों में लिया जाता है जिसका निर्देशन रमेश सिप्पी ने किया था.

शोले को 2013 में 3डी में रिलीज किया गया था.

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