Success Story: देबजीत घोष की अनोखी कहानी, बच्चों की पढ़ाई के लिए 150 KM रोज सफर, राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

Success Story: असम के डिब्रुगढ़ के शिक्षक देबजीत घोष रोज 150 किलोमीटर का कठिन सफर तय कर दूरस्थ इलाकों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ते हैं. उनके समर्पण और नवाचारपूर्ण शिक्षण पद्धतियों के कारण राष्ट्रपति ने उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया.

By Pushpanjali | September 5, 2025 7:20 PM

Success Story: शिक्षक केवल किताबें पढ़ाने तक सीमित नहीं होते, वे समाज की दिशा और बच्चों के भविष्य को गढ़ते हैं. असम के डिब्रुगढ़ निवासी देबजीत घोष ने इस बात को सच कर दिखाया है. कठिन और डराने वाले रास्तों से रोजाना 150 किलोमीटर की यात्रा कर वे दूरस्थ इलाकों के बच्चों को शिक्षा से जोड़ रहे हैं. इसी अद्भुत समर्पण और जज्बे के लिए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने उन्हें राष्ट्रीय शिक्षक पुरस्कार 2025 से सम्मानित किया.

चुनौती भरा सफर, अटूट हौसला

34 वर्षीय देबजीत का सफर आसान नहीं है. उनका रास्ता देहिंग पटकाई नेशनल पार्क से होकर गुजरता है, जहां कभी भी हाथियों का सामना करना पड़ सकता है. बारिश में सड़कें कीचड़ में बदल जाती हैं, फिर भी वे हिम्मत नहीं हारते. उनकी गाड़ी में दो शिक्षक और सफर में शामिल हो जाते हैं, जबकि बाकी बाइक से स्कूल पहुंचते हैं, क्योंकि पब्लिक ट्रांसपोर्ट की सुविधा यहां नहीं है.

बच्चों के लिए नई रोशनी

देबजीत घोष ने 2013 में शिक्षक के रूप में करियर शुरू किया. आज वे ऊपरी असम के नामसांग चाय बागान मॉडल स्कूल के प्रिंसिपल हैं. यह स्कूल खासकर उन बच्चों के लिए बना, जिन्हें 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ती थी. 2022 में शुरू हुए इस स्कूल ने महज दो वर्षों में 300 से अधिक बच्चों को पढ़ाई से जोड़ा है.

पढ़ाई का अलग अंदाज

देबजीत केवल रटने वाली पढ़ाई पर भरोसा नहीं करते. वे बच्चों को प्रैक्टिकल वर्क, प्रयोग, खिलौने बनाने और टेक्नोलॉजी जैसे वर्चुअल लैब व 3डी वेबसाइट के जरिए सिखाते हैं. स्वास्थ्य कैंप लगाकर उन्होंने बच्चों में खून की कमी की समस्या दूर करने की भी पहल की. तीन वर्षों में बच्चों का स्वास्थ्य बेहतर हुआ और कई बच्चे, जो काम करने चले गए थे, वापस स्कूल लौट आए.

निस्वार्थ समर्पण की मिसाल

देबजीत घोष का यह जज्बा बताता है कि सच्चा शिक्षक वही है, जो मुश्किल रास्तों को पार कर भी बच्चों के भविष्य को संवारने का काम करता है. उनकी कहानी देशभर के शिक्षकों और समाज के लिए प्रेरणा है.

यह भी पढ़ें: British Population in India: आजादी के समय भारत में कितने थे अंग्रेज? आंकड़े जानकर चौंक जाएंगे

यह भी पढ़ें: Success Story: ‘अबुआ जादुई पिटारा’ से बच्चों की पढ़ाई आसान बनाई, अब शिक्षक दिवस पर राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित होंगी देवघर की श्वेता शर्मा