Gopi Chand Bhargava Birthday: पंजाब के पहले मुख्यमंत्री, जिन्होंने जलियांवाला बाग की घटना से आहत हो राजनीति में रखा कदम

Gopi Chand Bhargava Birthday: देश के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ डॉ गोपी चंद भार्गव का जन्म 8 मार्च, 1889 को सिरसा में हुआ था, जो अब हरियाणा में है. उनके पिता मुंशी बद्री प्रसाद पंजाब में एक सरकारी कर्मी थे. उन्होंने साल 1905 में डीएवी हाइ स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गये.

By Prabhat Khabar Print Desk | March 8, 2024 9:45 AM

देवेंद्र कुमार

जयंती विशेष : डॉ गोपी चंद भार्गव

Gopi Chand Bhargava Birthday: संयुक्त पंजाब के पहले मुख्यमंत्री डॉ गोपीचंद भार्गव पंजाब के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे भारतवर्ष के लिए प्रेरणास्रोत थे. ब्रिटिश शासन के दौरान 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद वे इतना आहत हुए कि उन्होंने मेडिकल की दुनिया को छोड़कर राजनीति में कूद पड़े और भारत की आजादी की लड़ाई में भी वह सक्रिय रूप से भाग लेने लगे. उन्होंने महात्मा गांधी के साथ भारतीय स्वाधीनता की लड़ाई भी लड़ी. गोपी चंद भार्गव की जिंदगी का प्रमुख समाज की सेवा था और वे आजीवन इसी कार्य में तत्पर रहे.

देश के जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ डॉ गोपी चंद भार्गव का जन्म 8 मार्च, 1889 को सिरसा में हुआ था, जो अब हरियाणा में है. उनके पिता मुंशी बद्री प्रसाद पंजाब में एक सरकारी कर्मी थे. उन्होंने साल 1905 में डीएवी हाइ स्कूल, हिसार से मैट्रिक की परीक्षा पास की. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए लाहौर चले गये. साल 1912 में किंग एडवर्ड कॉलेज से एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने लाहौर में एक मेडिकल प्रैक्टिशनर के रूप में अपना करियर शुरू किया. लेकिन, साल 1919 में जलियांवाला बाग की घटना ने उन्हें इस कदर प्रभावित किया कि वे अपना जमा-जमाया डॉक्टरी का पेशा छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े.

गांधीजी और लाला लाजपत राय के विचारों से प्रभावित थे डॉ भार्गव
लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय आदि के विचारों से गोपी चंद भार्गव खासा प्रभावित थे. सबसे अधिक उन्हें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने प्रभावित किया था. उस दौरान लाहौर के एक जाने-माने कांग्रेसी डॉ निहाल चंद सीकरी थे. सबसे पहले वे ही गोपी चंद को कांग्रेस आंदोलन के संपर्क में लाये थे. वहीं, जब लाला लाजपत राय लाहौर पहुंचे, तो गोपी चंद उनके संपर्क में आ गये और उनके कट्टर समर्थक बन गये. यहां तक कि असहयोग आंदोलन के समर्थन के लिए उन्होंने अपनी डॉक्टरी तक छोड़ दी. इसके चलते उनके ऊपर देशद्रोही बैठक अधिनियम के तहत मुकदमा तक चलाया गया और उन्हें चार महीने की कैद की सजा सुनायी गयी. साथ ही ब्रिटिश न्यायालय ने उन पर जुर्माना भी लगाया. उन्होंने साइमन कमीशन विरोधी आंदोलन के आयोजन में भी अग्रणी भूमिका निभाई. इस दौरान लाला लाजपत राय की रक्षा करते समय उन्हें काफी गंभीर चोटें भी लगीं. इसके बावजूद वे मैदान में डटे रहे.

सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर लिया हिस्सा
डॉ गोपी चंद भार्गव ने गांधी जी के नेतृत्व में चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन में भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. इसकी वजह से ब्रिटिश शासन की पुलिस ने उन्हें दो बार गिरफ्तार भी किया. सबसे पहले साल 1930 में और उसके बाद 1933 में उनकी गिरफ्तारी हुई. डॉ भार्गव साहस के प्रतीक भी थे. अक्तूबर 1940 में गांधीजी की ओर से शुरू किये गये व्यक्तिगत सत्याग्रह में उन्होंने युद्ध-विरोधी नारे लगाये और उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. उस वक्त उन्हें लाहौर सेंट्रल जेल में रखा गया. फिर भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान भी उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. कोर्ट ने उन्हें ढाई साल की कैद की कठोर सजा सुनायी.

महिलाओं की समानता के प्रबल पक्षधर
अपनी निष्ठा और देशभक्ति के कारण डॉ गोपी चंद भार्गव का देश में बड़ा सम्मान था. वे उदारवादी दृष्टिकोण वाले इंसान थे. इसके अलावा सभी जाति के लोगों से समान प्रेम करते थे. वे महिलाओं की समानता के प्रबल पक्षधर थे. कांग्रेस संगठन में डॉ भार्गव कई पदों पर रहे. साल 1946 में डॉ गोपी चंद भार्गव पंजाब विधान सभा के सदस्य चुने गये.

सरदार पटेल के आग्रह पर पंजाब के मुख्यमंत्री बनेसरदार पटेल के आग्रह पर पंजाब के मुख्यमंत्री बने
भारत की आजादी और फिर विभाजन के बाद लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के आग्रह पर उन्होंने संयुक्त पंजाब के प्रथम मुख्यमंत्री का पद स्वीकार कर लोगों की सेवा का संकल्प लेते हुए अपने कर्तव्य को निभाया. गोपी चंद भार्गव पहली बार 15 अगस्त, 1947 से 13 अप्रैल, 1949 तक संयुक्त पंजाब प्रांत के मुख्यमंत्री रहे. उसके बाद वे दूसरी बार 18 अक्तूबर, 1949 से 20 जून, 1951 तक और फिर तीसरी बार 21 जून, 1964 से 6 जुलाई, 1964 तक मुख्यमंत्री रहे. वे गांधी स्मारक निधि’ के प्रथम अध्यक्ष भी रहे. उन्होंने महात्मा गांधी की रचनात्मक गतिविधियों को आगे बढ़ाने के लिए कई कदम उठाये. विभाजन से उत्पन्न उत्तेजना और कटुता के बीच प्रशासन को उचित दिशा की ओर ले जाने में उन्होंने अहम योगदान दिया. मगर 26 दिसंबर, 1966 को डॉ गोपी चंद भार्गव हमेशा-हमेशा के लिए अलविदा कह दिया.

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