वेदांता के खिलाफ याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टली, जज ने खुद को केस से अलग किया
Vedanta Case: वेदांता केस में सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन ने सोमवार को सुनवाई से खुद को अलग कर लिया. यह याचिका अमेरिकी शॉर्ट सेलर वायसराय रिसर्च की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसमें वेदांता समूह को वित्तीय रूप से अस्थिर बताते हुए गंभीर आरोप लगाए गए हैं. अधिवक्ता शक्ति भाटिया ने जांच की मांग की है और दावा किया कि रिपोर्ट के कुछ हिस्सों की पुष्टि आधिकारिक दस्तावेजों से हुई है. सुनवाई अब मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई की पीठ के समक्ष होगी.
Vedanta Case: सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को वेदांता समूह से जुड़ी एक महत्वपूर्ण याचिका पर सुनवाई होनी थी. लेकिन, न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन ने खुद को मामले से अलग कर लिया. उनके इस कदम के बाद मामले की सुनवाई स्थगित कर दी गई.
वायसराय रिसर्च के आरोप
सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका अमेरिकी शॉर्ट सेलर वायसराय रिसर्च की रिपोर्ट पर आधारित है. रिपोर्ट में आरोप लगाया गया था कि अरबपति अनिल अग्रवाल का खनन समूह वेदांता वित्तीय रूप से अस्थिर है और इससे लेनदारों को गंभीर जोखिम हो सकता है. इन आरोपों ने कंपनी की वित्तीय सेहत और कारोबारी पारदर्शिता पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
जांच की मांग वाली याचिका
याचिकाकर्ता अधिवक्ता शक्ति भाटिया ने अदालत से अनुरोध किया कि वायसराय रिसर्च की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच संबंधित अधिकारियों से कराई जाए. उनका दावा है कि उन्होंने एमसीए21 फाइलिंग, सेबी खुलासे और कंपनी रजिस्ट्रार के रिकॉर्ड की समीक्षा कर रिपोर्ट के कुछ हिस्सों की स्वतंत्र पुष्टि की है.
उच्च-मूल्य वाले लेनदेन पर सवाल
याचिका में यह भी कहा गया है कि वेदांता ने कुछ उच्च-मूल्य वाले लेनदेन किए, जिनमें प्रतिपक्ष शामिल थे. लेकिन इन लेनदेन को न तो संबंधित पक्ष के रूप में घोषित किया गया और न ही इन्हें लेकर शेयरधारकों की अनिवार्य मंजूरी ली गई. यह कंपनी के कॉरपोरेट गवर्नेंस को लेकर गंभीर प्रश्न खड़े करता है1.
मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ
न्यायमूर्ति चंद्रन के अलग होने के बाद मामले को मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति अतुल चंदुरकर की पीठ ने संज्ञान में लिया. हालांकि, जज की असहमति के कारण सुनवाई स्थगित कर दी गई और अब इसे अगली तारीख पर सूचीबद्ध किया जाएगा.
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आगे क्या होगा?
यह मामला न केवल वेदांता की कारोबारी विश्वसनीयता पर असर डाल सकता है, बल्कि कॉरपोरेट गवर्नेंस और पारदर्शिता को लेकर भी मिसाल बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट की आगे की कार्यवाही तय करेगी कि क्या इन आरोपों पर औपचारिक जांच शुरू की जाएगी या नहीं.
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