SBI Report : सिर्फ रेपो रेट घटाने से दूर नहीं होगी आर्थिक सुस्ती, ग्रामीण मांग बढ़ाने की भी दरकार है

मुंबई : अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने के लिए अकेले नरम मौद्रिक रुख अपनाने से कुछ नहीं होगा. इसकी बजाय सरकार को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र की मांग बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में यह बात कही गयी है. एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 16, 2019 7:07 PM

मुंबई : अर्थव्यवस्था की सुस्ती दूर करने के लिए अकेले नरम मौद्रिक रुख अपनाने से कुछ नहीं होगा. इसकी बजाय सरकार को विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्र की मांग बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए. एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में यह बात कही गयी है. एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्र में मांग बढ़ाने के लिए सरकार को राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना के जरिये आगे बढ़कर व्यय करना होगा.

एसबीआई रिसर्च के अर्थशास्त्रियों ने सोमवार को आगाह किया कि यदि सरकार राजकोषीय घाटे को काबू में रखने के लिए खर्च में किसी तरह की कटौती करती है, तो यह वृद्धि की दृष्टि से ठीक नहीं होगा. रिपोर्ट में कहा गया है कि अर्थव्यवस्था की मौजूदा सुस्ती को केवल मौद्रिक नीति में होने वाले उपाय से ही हल नहीं किया जा सकता. सरकार को अर्थपूर्ण तरीके से मनरेगा और पीएम-किसान के शुरू में ही व्यय बढ़ाकर मांग में गिरावट को रोकना हेागा.

पीएम-किसान पोर्टल के अनुसार, इस योजना के लाभार्थियों की संख्या अभी 6.89 करोड़ ही है, जबकि लक्ष्य 14.6 करोड़ का है. किसानों के आंकड़ों के अनुमोदन की धीमी रफ्तार की वजह से यह स्थिति है. रिपोर्ट कहती है कि ग्रामीण मांग बढ़ाने के लिए इस काम को तेजी से करना होगा.

मनरेगा की वेबसाइट के अनुसार, केंद्र द्वारा 13 सितंबर तक कुल 45,903 करोड़ रुपये जारी किये गये हैं, लेकिन इसमें से सिर्फ 73 फीसदी यानी 33,420 करोड़ रुपये की राशि ही खर्च हुई है. पूंजीगत व्यय का बजट अनुमान 3,38,085 करोड़ रुपये है. जुलाई तक इसमें से सिर्फ 31.8 फीसदी राशि ही खर्च हुई थी. एक साल पहले समान अवधि में बजट अनुमान का 37.1 फीसदी राशि खर्च कर ली गयी थी.

रिपोर्ट के अनुसार, 2007-14 के दौरान निजी निवेश का हिस्सा मूल्य के हिसाब से 50 फीसदी था, जबकि 2015-19 के दौरान यह उल्लेखनीय रूप से घटकर 30 फीसदी रह गया. एसबीआई रिसर्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि राजकोषीय घाटा 3.3 फीसदी तक रहना चाहिए. बुनियादी ढांचा क्षेत्र खर्च के लिए अतिरिक्त वित्तीय प्रभाव इसके ऊपर होना चाहिए.

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