NBFC को नकदी संकट से उबारने लिए रिजर्व बैंक ने जोखिम प्रबंधन मसौदा किया जारी

मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को नकदी संकट के समय राहत दिलाने के लिए एक जोखिम प्रबंधन मसौदा जारी किया है. रिजर्व बैंक की योजना है कि बड़ी एनबीएफसी कंपनियां सरकारी बॉन्ड या जमा योजनाओं में निवेश करें, ताकि नकदी संकट के समय एक महीने के भुगतान के लिए […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 25, 2019 4:53 PM

मुंबई : भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) को नकदी संकट के समय राहत दिलाने के लिए एक जोखिम प्रबंधन मसौदा जारी किया है. रिजर्व बैंक की योजना है कि बड़ी एनबीएफसी कंपनियां सरकारी बॉन्ड या जमा योजनाओं में निवेश करें, ताकि नकदी संकट के समय एक महीने के भुगतान के लिए उनके पास पर्याप्त पूंजी उपलब्ध हो.

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आरबीआई ने शुक्रवार को एनबीएफसी के लिए नकदी जोखिम प्रबंधन रूपरेखा का मसौदा जारी किया है. केंद्रीय बैंक की ओर से यह कदम ऐसे समय उठाया गया है कि जब कई बड़ी एनबीएफसी कंपनियां नकदी संकट से जूझ रही हैं, जिसके चलते उन्हें कोष जुटाने के लिए भारी मशक्कत करनी पड़ रही है.

प्रस्ताव के मुताबिक, 5,000 करोड़ रुपये और उससे अधिक परिसंपत्ति की जमा राशि स्वीकार करने वाले सभी एनबीएफसी और ऐसे वित्तीय संस्थान जो जमा स्वीकार नहीं करते हैं, उन सभी के लिए एक तरलता कवरेज अनुपात (एलसीआर) व्यवस्था लागू की जायेगी. यह व्यवस्था चरणबद्ध तरीके से लागू होगी. एलसीआर व्यवस्था को चार साल की अवधि में आगे बढ़ाया जायेगा.

वित्तीय कंपनियों में अप्रैल, 2020 से अप्रैल, 2024 के दौरान इसे क्रियान्वित किया जायेगा. एलसीआर दिशा-निर्देशों के तहत वित्तीय कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनकी उधारी मोटे तौर पर उनके कर्ज की परिपक्वता से मेल खाती हो. मसौदे में कहा गया है कि एनबीएफसी को चरणबद्ध तरीके से अपनी पूंजी में उच्च गुणवत्ता की नकदी परिसंपत्तियों का हिस्सा बरकरार रखना होगा. ये उच्च गुणवत्ता वाली परिसंपत्तियां नकदी जमा, सरकारी बॉन्ड या उच्च श्रेणी वाले बॉन्ड हो सकती हैं.

मसौदे में कहा गया है कि एलसीआर आवश्यकता 01 अप्रैल, 2020 से एनबीएफसी पर बाध्यकारी होगी और उनका न्यूनतम एलसीआर 60 फीसदी होना चाहिए. इसके बाद इसे 01 अप्रैल, 2024 तक इस बढ़ाकर 100 फीसदी के स्तर तक पहुंचाना होगा. वित्त कंपनियों द्वारा जारी बांड पत्रों में जो राशि निवेश की गयी ज्यादातर म्यूचुअल फंड योजनाओं का धन था. आईएल एंड एफएस फाइनांशियल सविर्सेज का संकट गहराने के बाद ऐसी कई योजनाओं को झटका लगा.

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