घाटे में चल रही एयर इंडिया की हिस्सेदारी खरीद सकती है टाटा

नयी दिल्ली: घाटे में चल रही एयर इंडिया को खरीदने की दिशा में टाटा समूह जल्द ही उसमें हिस्सेदारी खरीद जैसा कदम उठा सकता है. माना जा रहा है कि टाटा समूह सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया में हिस्सेदारी खरीदने के लिए बातचीत कर रहा है. गौरतलब है कि कर्ज से लदी इस […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 22, 2017 1:16 PM
नयी दिल्ली: घाटे में चल रही एयर इंडिया को खरीदने की दिशा में टाटा समूह जल्द ही उसमें हिस्सेदारी खरीद जैसा कदम उठा सकता है. माना जा रहा है कि टाटा समूह सार्वजनिक क्षेत्र की विमानन कंपनी एयर इंडिया में हिस्सेदारी खरीदने के लिए बातचीत कर रहा है. गौरतलब है कि कर्ज से लदी इस कंपनी के पुनरुद्धार के लिए सरकार कई विकल्पों पर विचार कर रही है, जिसमें इसका पूर्ण या आंशिक निजीकरण करना शामिल है.
संपर्क करने पर टाटा समूह के प्रवक्ता ने कहा कि हम अटकलों पर अपनी प्रतिक्रिया नहीं देते हैं. एयर इंडिया लंबे समय से कर दाताओं के धन पर चल रही है और घाटे में है. नीति आयोग ने सरकार को इसके पूर्ण निजीकरण की सिफारिश की है. साथ ही, कई और अन्य प्रस्तावों पर भी सरकार के विचाराधीन है. सूत्रों ने बताया कि टाटा समूह एयर इंडिया में हिस्सेदारी लेने के विकल्प का आकलन कर रहा है. इस संबंध में समूह में आंतरिक बैठकों का दौर और सरकार के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत जारी है. इस संबंध में सरकार की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया गया है, लेकिन सूत्र ने बताया कि नागर विमानन मंत्रालय एयर इंडिया का राष्ट्रीय विमानन कंपनी का दर्जा बनाए रखने की इच्छुक है.
कहा यह जा रहा है कि टाटा यदि इस कंपनी में हिस्सेदारी खरीदती है, तो उसके लिए यह घर वापसी की तरह होगा. एयर इंडिया का इतिहास टाटा एयरलाइंस से जुड़ा है, जिसे 1932 में बनाया गया था. टाटा द्वारा स्थापित इस कंपनी को बाद में एयर इंडिया के रूप में एक सार्वजनिक कंपनी बना दिया गया था, जिसका बाद में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया. टाटा इससे पहले भी एयर इंडिया में हिस्सेदारी लेने की कोशिश कर चुकी है.
सूत्र ने बताया कि एयर इंडिया के निजीकरण के लिए सरकार के 51 प्रतिशत हिस्सेदारी खुद रखने की संभावना है और 49 प्रतिशत वह निजी निवेशकों के बेच सकती है, जिसमें विदेशी कंपनियां भी हिस्सा ले सकती हैं. इस स्थिति में सरकार के पास बहुलांश हिस्सेदारी रह सकती है, लेकिन परिचालनात्मक नियंत्रण अल्पांश हिस्सेदारी रखने वालों के पास जा सकता है. सरकार अन्य विकल्पों पर भी विचार कर रही है, जिसमें गैर-प्रमुख संपत्ति को बेचने का विकल्प है. इससे उसके कर्ज के भार को कम किया जा सके. कंपनी पर मौजूदा समय में 52,000 करोड़ रुपये का कर्ज है.

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