मुंगेर सीट पर आरजेडी की चुनौती या बीजेपी की वापसी? किसका चलेगा जादू
Munger Assembly Seat: मुंगेर विधानसभा सीट बिहार की राजनीति में अहम भूमिका निभाती रही है. यहां का सियासी इतिहास कांग्रेस से लेकर बीजेपी और आरजेडी तक फैला है. 2020 में बीजेपी के प्रणव कुमार ने कांटे की टक्कर में जीत दर्ज की थी.वर्षों से बदलते दलों और उम्मीदवारों ने इसे मुकाबले वाली सीट बना दिया है.
Munger Assembly Seat: बिहार की मुंगेर विधानसभा सीट ने हमेशा से सियासी हलचलों का केंद्र रही है. 1957 में हुए पहले विधानसभा चुनाव से लेकर अब तक यह सीट कई राजनीतिक बदलावों की गवाह बनी है. 2020 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के प्रत्याशी प्रणव कुमार ने बेहद कड़े मुकाबले में आरजेडी उम्मीदवार अविनाश कुमार विद्यार्थी को मात्र 1,244 वोटों से हराकर बाजी पलटी थी. प्रणव को 75,573 वोट मिले, जबकि अविनाश को 74,329 वोट प्राप्त हुए. निर्दलीय उम्मीदवार शालिनी कुमारी तीसरे स्थान पर रहीं और उन्हें 4,497 वोट मिले.
क्या है मुंगेर विधानसभा सीट का राजनैतिक इतिहास
मुंगेर का चुनावी इतिहास काफी विविध रहा है. शुरुआत में कांग्रेस का दबदबा रहा, 1957 और 1962 में कांग्रेस के निरपद मुखर्जी और राम गोविंद वर्मा ने जीत दर्ज की. 1967 में संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के हाशिम, 1969 में बीजेएस के रविश चंद्र वर्मा और 1972 में फिर से कांग्रेस के प्रफुल्ल कुमार वर्मा ने जनता का भरोसा जीता. 1977 और 1980 में जेएनपी के सईद जाबिर हुसैन और रामदेव यादव सिंह ने जीत दर्ज की, जो 1985 और 1990 में भी अलग-अलग दलों से जीतते रहे.
मुंगेर की सीट पर टिकी हैं सबकी नजर
1995 से 2005 तक मोनाजिर हसन का वर्चस्व रहा, जिन्होंने जनता दल, आरजेडी और जेडीयू से चुनाव जीतकर मजबूत पकड़ दिखाई. 2010 में जेडीयू के अनंत कुमार सत्यार्थी और 2015 में आरजेडी के विजय कुमार ने सीट पर कब्जा जमाया. मुंगेर सीट का सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व भी इसे खास बनाता है. अब 2025 के विधानसभा चुनावों में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या प्रणव कुमार अपनी सीट बचा पाएंगे या आरजेडी पुरानी हार का बदला लेगी.
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