ट्रंप की धमकी से डरा दोस्त, डेनमार्क की खुफिया एजेंसी ने कहा अमेरिका है नया सुरक्षा खतरा, किस बात से बिगड़ा मामला?

Danish Intel Flags US as Emerging Security Risk: अमेरिका के राष्ट्रपति की धमकियां अब दोस्तों को दुश्मन बनाने लगी हैं. डेनमार्क की खुफिया एजेंसी ने अमेरिका को अपने देश का नया संभावित सुरक्षा खतरा करार दिया है. उसके अनुसार ट्रंप की मिलिट्री इस्तेमाल के जरिए ग्रीनलैंड को लेने की टिप्पणी गंभीर थी.

By Anant Narayan Shukla | December 11, 2025 3:05 PM

Denmark Intelligence Flags US as Emerging Security Risk: अमेरिका की नीतियां अब उसके साझेदार देशों में भी शंका पैदा कर रही है. ट्रेड, टैरिफ और इमिग्रेशन को लेकर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की सख्त पॉलिसी दुनिया भर में संकट पैदा कर रही है. इसी सिलसिले में डेनमार्क की प्रमुख जासूसी एजेंसी ने अमेरिका को पहली बार अमेरिका को संभावित सुरक्षा जोखिम के रूप में शामिल किया है. यह कदम ग्रीनलैंड को लेकर जियो-पॉलिटिकल तनावों के बीच नॉर्डिक देश के अपने करीबी सहयोगी के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव का संकेत देता है. डेनमार्क की खुफिया एजेंसी ने अमेरिका को रूस और चीन के साथ उन देशों की सूची में रखा है जो संभावित सुरक्षा खतरा पैदा कर सकते हैं. खुफिया एजेंसी की रिपोर्ट के अनुसार, डेनमार्क को रूस और चीन दोनों से बहुआयामी, निरंतर दबाव के लिए तैयार रहना चाहिए.

खुफिया एजेंसी डैनिश डिफेंस इंटेलिजेंस सर्विस (DDIS) ने कहा है कि अमेरिका अपने हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता दे रहा है. अमेरिका अब अपनी आर्थिक और तकनीकी ताकत का इस्तेमाल शक्ति के उपकरण के रूप में कर रहा है, वह भी अपने सहयोगियों और साझेदारों के खिलाफ. यह पहली बार है जब नॉर्डिक देश ने अपने सबसे करीबी सहयोगियों में से एक के खिलाफ ऐसी चेतावनी दी है. रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि आर्कटिक क्षेत्र में बढ़ती बड़ी शक्तियों की प्रतिद्वंद्विता के बीच अमेरिका की ग्रीनलैंड में दिलचस्पी लगातार बढ़ रही है. DDIS का यह वार्षिक खतरा मूल्यांकन ऐसे समय में आया है जब डोनाल्ड ट्रंप बार-बार संकेत दे चुके हैं कि वह ग्रीनलैंड पर नियंत्रण चाहते हैं, जिससे कोपेनहेगन और वॉशिंगटन के बीच कूटनीतिक तनाव पैदा हुआ.

ट्रंप की धमकियां बन रहीं खतरा

बुधवार को जारी 2025 इंटेलिजेंस आउटलुक रिपोर्ट में बताया गया कि अमेरिका की ग्रीनलैंड में बढ़ती रुचि चिंता का कारण बन रही है. ग्रीनलैंड डेनिश साम्राज्य का हिस्सा है और अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इसे खरीदने की इच्छा जता चुके हैं. रिपोर्ट में कहा गया है कि संयुक्त राज्य अमेरिका आर्थिक शक्ति का उपयोग अपनी इच्छा थोपने के लिए करता है, इसमें उच्च टैरिफ की धमकियां भी शामिल हैं. अब वह सैन्य बल के उपयोग को भी नकारता नहीं है, यहां तक कि सहयोगियों के खिलाफ भी.” 

ग्रीनलैंड को लेने के लिए सैन्य इस्तेमाल भी है ट्रंप का ऑप्शन

अमेरिकी राष्ट्रपति यह भी कह चुके हैं कि वह सैन्य बल का इस्तेमाल करके इस आर्कटिक द्वीप पर कब्जा करने की संभावना को नकारते नहीं हैं. ट्रंप ने ग्रीनलैंड के आत्मनिर्णय के अधिकार का सम्मान करने की बात बाद में कही, लेकिन उनका बयान कि अमेरिका बलपूर्वक इस क्षेत्र को हासिल कर सकता है, ग्रीनलैंड की 57,000 की आबादी में असमंजस और चिंता पैदा कर रहा है. इस वजह से ग्रीनलैंड ने अमेरिका के प्रति अपना रुख कड़ा कर लिया है. 

अमेरिका-डेनमार्क तनाव

ग्रीनलैंड आर्कटिक क्षेत्र में खनिज संपदा से भरपूर क्षेत्र है. रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण यह द्वीप डेनमार्क का स्वायत्त क्षेत्र है. अमेरिका के लिए यह लंबे समय से आकर्षण का केंद्र रहा है. राष्ट्रपति ट्रंप ने ग्रीनलैंड को खरीदने की इच्छा जताते हुए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं का हवाला दिया था. कोपेनहेगन और नूक (ग्रीनलैंड की राजधानी) दोनों ने इस प्रस्ताव को स्पष्ट रूप से खारिज कर दिया है. हालांकि ग्रीनलैंड को जनमत संग्रह के माध्यम से डेनमार्क से स्वतंत्रता घोषित करने का अधिकार भी प्राप्त है.

रूस, चीन से बड़ा खतरा

अमेरिकी खतरे के बावजूद, एजेंसी के अनुसार रूस और चीन को अब भी सबसे बड़े जोखिम के रूप में देखा जाता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि डेनमार्क के लिए खतरे का माहौल पहले से अधिक गंभीर हो गया है. अमेरिका की यूरोप की सुरक्षा के ‘गारंटर’ के रूप में अनिश्चित भूमिका रूस को नाटो के खिलाफ अपने हाइब्रिड हमलों को और बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित कर सकती है, जबकि चीन अपनी आर्थिक और सैन्य ताकत का उपयोग करके पश्चिमी प्रभाव को चुनौती देता रहेगा. एजेंसी के मुताबिक बाल्टिक सागर क्षेत्र वह स्थान है जहाँ रूस द्वारा नाटो के खिलाफ सैन्य बल का उपयोग किए जाने का सबसे अधिक जोखिम है.

रिपोर्ट में जोर दिया गया कि अमेरिका ने न होने से मॉस्को नाटो के खिलाफ अपने हाइब्रिड ऑपरेशंस, जैसे- साइबर हमले, दुष्प्रचार अभियान, राजनीतिक हस्तक्षेप और अन्य दबाव वाली रणनीतियों को बढ़ा सकता है. वहीं चीन आर्थिक दबदबे, तकनीकी विस्तार और सैन्य आक्रामकता के जरिए पश्चिमी प्रभाव को चुनौती दे रहा है. बीजिंग की वैश्विक मौजूदगी बढ़ाने की कोशिशें, विशेष रूप से महत्वपूर्ण ढांचागत क्षेत्रों और रणनीतिक उद्योगों में यूरोप के लिए जोखिम पैदा करती हैं. 

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