हर समस्या में छिपा है एक अवसर

डॉ मयंक मुरारी चिंतक और लेखक mayank_murari@ushamartin.co.in हमारा पूरा जीवन भीड़ का हिस्सा बना हुआ है. विचारों की भीड़ हो या संगठनों के आदर्श की या व्यक्ति की. अधिकतर व्यक्ति की चेतना में अभिनव कुछ नहीं होता.वह एक रोडमैप बनाता है- बस भीड़ को फॉलो करने का. शिक्षा में बच्चे वही करते हैं, युवाओं में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 14, 2018 11:35 PM
डॉ मयंक मुरारी
चिंतक और लेखक
mayank_murari@ushamartin.co.in
हमारा पूरा जीवन भीड़ का हिस्सा बना हुआ है. विचारों की भीड़ हो या संगठनों के आदर्श की या व्यक्ति की. अधिकतर व्यक्ति की चेतना में अभिनव कुछ नहीं होता.वह एक रोडमैप बनाता है- बस भीड़ को फॉलो करने का.
शिक्षा में बच्चे वही करते हैं, युवाओं में जिसका ज्यादा क्रेज होता है. परिवार में बच्चे पिता-माता या अपने बड़े या मित्रों को फॉलो करते हैं. यह चलना हर मामले में होता है.
सवाल गलत या सही का नहीं. सवाल है कि हमारी चेतना में कुछ नया करने का भाव क्यों नहीं आता. और अगर यह नहीं आता है, तो हम सर्वश्रेष्ठ कहां से दे सकते हैं? हम उत्कृष्ट कैसे बन सकते हैं?
एक उदाहरण देता हूं
हार्वर्ड बिजनेस स्कूल ने अपने सिलेबस से केस स्टडी अप्रोच को दूर हटाते हुए अब नैतिक शिक्षा व टीम वर्क पर ज्यादा ध्यान देने का निर्णय किया है. इस बदलाव का मतलब सक्षम और चारित्रिक रूप से मजबूत लीडर तैयार करना है, न कि कनेक्शन व परिचय-पत्र वाले लीडर.
यह बदलाव 2008 की मंदी के बाद ही बिजनेस स्कूलों के ध्यान में आया. पश्चिमी जगत में अनेक बिजनेस स्कूलों के शिक्षण के अंतर्गत जानने (तथ्य, रूपरेखा, सिद्धांत) पर से फोकस हटाकर करने (क्षमताओं एवं तकनीक) और होने (मूल्य, तौर-तरीके व विश्वास) पर जोर दिया जा रहा है.
इसके साथ सोचने पर भी ज्यादा ध्यान है. मसलन नाजुक समय में किस ढंग से कार्योत्पादक या समरूप तार्किक शक्ति का इस्तेमाल करते हुए तर्कसंगत विचार पेश किया जाये. महर्षि पतंजलि का अद्भुत उद्घोष है कि जब आप किसी महान लक्ष्य, किसी असाधारण कल्पना से प्रेरित होते हैं तो आपके सभी विचार अपनी सीमाएं तोड़ देते हैं.
आपका मस्तिष्क सीमाओं के परे निकल जाता है. आपकी चेतना प्रत्येक दिशा में विस्तृत होती है और आप खुद को एक नये और आश्चर्यजनक दुनिया में पाते हैं, जिसकी आपने कभी कल्पना भी नहीं की थी.
चुनौतियों को स्वीकारें
सफलता के लिए दक्षता और धीरज का होना जरूरी है और इसके लिए मन:स्थिति और चिंतन में बदलाव आवश्यक है. हमें ज्यादा सकारात्मक और स्वीकार्य बनाना होगा, ताकि असमंजस में भी अडिग रह सकें.
समस्या पर अपना ध्यान केंद्रित करने से बेहतर है कि हम चुनौतियों को स्वीकारें और उस पर विजय प्राप्त करें. वास्तव में हर समस्या हमारे लिए एक अवसर प्रदान करती है. अगर हम इस अवसर का उपयोग कर सकें, तो परिस्थिति हमारी दासी होगी.
अंग्रेजी में एक प्रसिद्ध वाक्य है-‘फर्स्ट डिजर्व, देन डिजायर’ यानी पहले योग्य बनो, बाद में सफलता की कामना करो. जो अपने जीवन में प्रगति चाहते हैं, वे इस वाक्य का मनन और अनुसरण करें.
अधिकतर लोग तपस्या से बचने के लिए ‘शॉर्टकट’ तरीके खोजते हैं. हो सकता है कि शॉर्टकट से सफलता मिल जाये, पर ऐसी सफलता क्षणिक होती है. साथ ही, इसके दूरगामी परिणाम हानिकारक होते हैं.
असल में सहनशील बनकर व्यक्ति हर समस्या को झेलने में सफल हो जाता है. किसी भी कार्य के आरंभ में अवरोधों का सामना करना होता है. जो उनसे विचलित हो जाते हैं, वे अपने लक्ष्य नहीं भेद पाते. जो धीरज से आगे बढ़ते हैं, वे उन अवरोधों का निराकरण खोजने में सफल हो जाते हैं.
अपने शांत स्वभाव को न छोड़ें
दूसरे चरण में आपको शांति, सुखद एवं खुशहाल रखने की कला सीखनी होगी. चाहे कोई भी स्थिति या संकट हो, हम अपने शांत स्वभाव को नहीं छोड़ेंगे. शांतचित्त अवस्था में रहनेवाले व्यक्ति ही व्यावहारिक तरीके से सोचते हैं.
वह सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं और किसी भी स्थिति में पलायनवादी मनोवृत्ति को आने नहीं देते. सफलता के लिए तीसरे चरण में हमें स्वतंत्र रूप से अन्वेषण और स्पष्ट विचार करना होगा. इसके बाद बिना किसी संकोच के प्रयास को अमलीजामा पहनाने की दिशा में कार्य करना होगा.
यह कठिन कार्य है, क्योंकि बचपन से ही हमारा मानस, हमारी चिंतन प्रणाली का आधार सत्य और ईमानदारी पर आधारित होता है. सृजनात्मकता एक मानसिक एवं भावनात्मक मनोवृत्ति है, जो सभी प्रकार के ज्ञान एवं अनुभव को एक नये परिप्रेक्ष्य में अवलोकन करता है. इसके कारण नये विचारों के आविर्भाव में सहायता मिलती है.
मौलिक प्रक्रिया की योजना बनाने और सर्वश्रेष्ठ सेवा तथा उत्पाद के आविष्कार का राह बनाता है, ताकि मानवता की सेवा और बेहतर तरीके से किया जा सके. सृजन तभी संभव है, जब हम चिंतन करें. यह एक साथ अभिनव प्रयोग, नवीन शुरुआत, रचना और भविष्य के सही मूल्यांकन का सम्मिलित रूप है.
जैसी आपकी शारीरिक मुद्राएं होंगी, वैसे ही सोचेगा मन
बचपन में मां से सुना था – बेटा ठीक से रहा करो. झुक कर मत चलो, गरदन सीधी रखो और सीना ऊंचा. नयी शोध बताती है कि आप वैसा ही सोचते हैं, जैसी आपकी शारीरिक मुद्राएं होती हैं. शरीर ढीला-ढाला है, तो मानसिक तीक्ष्णता भी नहीं होगी. मन सोचेगा भी उसी तरह.
दैनिक जीवन में जो लोग अधिक तेज-तर्रार मुद्रा अपनाये रहते हैं और शरीर को चुस्त-दुरुस्त बनाये रखते हैं, वे न केवल अधिक शक्तिशाली महसूस करते हैं, बल्कि चीजों को अधिक नियंत्रण में रख पाते हैं. तनाव जैसी समस्याओं को दूर करने में कामयाब होते हैं. शरीर की खराब मुद्राएं न केवल दूसरों के मन में आपकी गलत छवि बनाती हैं, बल्कि शारीरिक रूप से भी आपको कमजोर भी करती हैं.
क्रिएटिव होने का अर्थ है, किसी भी काम को नये तरीके से करना. क्रिएटिविटी की आधारभूत जरूरत विश्वास है. विश्वास यह कि कोई एक काम हर बार नये तरीके से किया जा सकता है. विश्वास करते ही दिमाग आपके लिए काम में जुट जाता है. याद रखें, औसत लोग हमेशा नये तरीके अपनाने से चिढ़ते हैं.

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