बड़ों की देखभाल ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धा

कौशलेंद्र रमण एक बहुत बढ़िया रेस्टोरेंट में पुत्र अपने पिता के साथ पहुंचा. पिता बहुत बूढ़े और कमजोर थे. पुत्र ने उन्हें धीरे से कुरसी पर बैठाया. उनसे पूछ कर खाना ऑर्डर किया. खाना आने के बाद दोनों आपस में बात करते हुए खाने लगे. चम्मच उठाने के क्रम में पिता का हाथ हिलता था. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 27, 2016 5:36 AM
कौशलेंद्र रमण
एक बहुत बढ़िया रेस्टोरेंट में पुत्र अपने पिता के साथ पहुंचा. पिता बहुत बूढ़े और कमजोर थे. पुत्र ने उन्हें धीरे से कुरसी पर बैठाया. उनसे पूछ कर खाना ऑर्डर किया. खाना आने के बाद दोनों आपस में बात करते हुए खाने लगे. चम्मच उठाने के क्रम में पिता का हाथ हिलता था. इससे खाना उनकी कमीज और पैंट पर भी गिर जाता था. यह देख कर रेस्टोरेंट में मौजूद दूसरे लोगों को चिढ़ हो रही थी. लेकिन, पुत्र एकदम शांत था. वह रेस्टोरेंट में मौजूद लोगों की खुसर-फुसर पर ध्यान दिये बिना खाने में अपने पिता की मदद कर रहा था. कमीज और पैंट पर गिरे खाने को देख कर बेटे को लज्जा नहीं आ रही थी.
खाना खत्म करने के बाद बेटा अपने पिता को वॉश रूम में ले गया और उनके कपड़ों पर गिरे भोजन को आराम से साफ किया. पिता के मुंह को भी पुत्र ने अच्छी तरह से साफ किया. कंघी से उनके बाल संवारे. चश्मा साफ कर पहनाया. दोनों जब वॉश रूम से बाहर निकले, तो रेस्टोरेंट में मौजूद लोग एकदम शांत होकर उन्हें देख रहे थे. वहां मौजूद लोगों को लग रहा था कि इतने लोगों के सामने कोई अपना मजाक कैसे बना सकता है. बिल देने के बाद बेटा अपने पिता के साथ चल दिया, तभी वहां मौजूद एक बूढ़े व्यक्ति ने जोर से कहा – तुम्हें नहीं लगता है कि तुम कुछ छोड़ के जा रहे हो. बेटे ने कहा – नहीं. इस पर बूढ़े व्यक्ति ने जोर से कहा – हां, तुम जा रहे हो. तुम हर बेटे के लिए एक सबक और हर बाप के लिए एक आशा छोड़ कर जा रहे हो. बूढ़े की बात पर रेस्टोरेंट में एकदम से शांति छा गयी.
हम सबको पता होता है कि बचपन में मां-बाप हमारी हर छोटी-बड़ी जरूरत कितने जतन से पूरा करते थे. लेकिन, जब हम बड़े होते हैं तो यह भूल जाते हैं कि अब उन्हें भी हमारी वैसी ही जरूरत है, जैसी जरूरत कभी हमें उनकी थी. माता-पिता या बड़ों की अच्छे से देखभाल ही उनके प्रति सच्चा आदर है.
kaushalendra.raman@prabhatkhabar.in

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