शारीरिक व मानसिक संतुलन बढ़ाता है संतोलनासन

वास्तव में ‘संतोलनासन’ का अर्थ है संतुलित रखना. अत: इस आसन का वास्तविक अर्थ शरीर को संतुलित रखना है. शरीर को संतुलित करने पर सीधा प्रभाव व्यक्ति के मन पर पड़ता है, जिसके चलते तंत्रिका तंत्र प्रभावित होती है.यह आसन शरीर के साथ-साथ मन को भी संतुलित बनाता है. आसन की विधि : घुटनों के […]

By Prabhat Khabar Print Desk | August 2, 2016 7:57 AM
वास्तव में ‘संतोलनासन’ का अर्थ है संतुलित रखना. अत: इस आसन का वास्तविक अर्थ शरीर को संतुलित रखना है. शरीर को संतुलित करने पर सीधा प्रभाव व्यक्ति के मन पर पड़ता है, जिसके चलते तंत्रिका तंत्र प्रभावित होती है.यह आसन शरीर के साथ-साथ मन को भी संतुलित बनाता है.
आसन की विधि : घुटनों के बल बैठ जाएं और हथेलियों को कंधों के नीचे जमीन पर रखें. अब नितंबों को ऊपर उठाते हुए घुटनों को सीधा कर लें. भुजाएं सीधी रहेंगी और आंखों को सामने किसी एक बिंदु पर टिका दें. यह अंतिम अवस्था है. कुछ देर इसमें रूकें फिर धीरे से घुटनों को जमीन पर ले जाते हुए मार्जारी आसन या शशांकासन में आराम करें.
प्रथम अवस्था : इस अभ्यास में पहले संतुलन आसन की अंतिम अवस्था में आ जाएं. शरीर सीधा रख कर धीरे से बायीं भुजा को उठाते हुए शरीर को थोड़ा दाहिनी बगल में ले जाएं, ताकि छाती सामने की ओर हो जाये. अपने ऊपरवाले हाथ को धड़ एवं जांघ के सहारे रखें. कुछ समय तक रुकें, फिर प्रारंभिक स्थिति में लौटते हुए इसी अभ्यास को बायीं तरफ से करें.
द्वितीय अवस्था : प्रथम अवस्था में शरीर को लाएं. धीरे से अपने एक हाथ को उठाते हुए पीठ पर ले जाएं. नजर सामने किसी बिंदु पर टीकी रहेगी, यह द्वितीय अवस्था की अंतिम स्थिति है. कुछ समय रुकने के बाद हाथ को वापस जमीन पर लाएं और पुन: इसी अभ्यास को दूसरे हाथ को पीछे ले जाते हुए करें. अंत में दोनों हाथों को जमीन पर रखें, चेहरा नीचे की तरफ रहे. अब तृतीय अवस्था का अभ्यास करेंगे.
तृतीय अवस्था : सर्वप्रथम संतुलन आसन की अंतिम अवस्था में आ जाएं, नजर सामने किसी एक बिंदु पर रहेगी. अब अपने एक पैर को ऊपर उठाएं एवं उसे आगे-पीछे की ओर तानें इस अवस्था में आपके दोनों हाथ जमीन पर रहेंगे. यह इस अभ्यास की अंतिम अवस्था है. अत: इस अवस्था में कुछ देर तक रुके रहें, अब पैर को जमीन पर ले जाएं. इसके बाद इसी अभ्यास को दूसरे पैर से दोहराएं. यहां इस संपूर्ण अभ्यास की समाप्ति होगी.
श्वसन : आसन की तीनों अवस्थाओं में आपकी श्वास सामान्य तौर पर चलती रहेगी. केवल ध्यान रखेंगे कि श्वास सामान्य तौर पर लंबी और गहरी बनी रहे.
सजगता : आपकी सजगता शरीर के संतुलन, श्वास पर और सामने किसी बिंदु पर लगी रहनी चाहिए. आध्यात्मिक स्तर पर सजगता ‘मणिपुर चक्र’ पर रहनी चाहिए.
अवधि : इस अभ्यास को शुरू में पूर्णत: अपनी शारीरिक क्षमता के आधार पर करें. उसके बाद आप इसे पांच-पांच बार सुविधानुसार करने का प्रयास करेंगे.
सीमाएं : वे लोग न करें, जिनकी कलाई कमजोर, स्लीप डिस्क हो. ध्यान से करनेवाला
अभ्यास है.
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि यह अभ्यास हमारे तंत्रिका तंत्र को संतुलित करता है तथा उसमें सुधार लाता है, जिसके चलते हमारे आंतरिक समभाव एवं सामंजस्य का विकास होता है. शारीरिक संतुलन के साथ-साथ मानसिक संतुलन का विकास होता है. इस अभ्यास से हमारे भुजाओं, कंधों और मेरुदंड की पेशियों को शक्ति मिलती है और अभिपृस एवं अभ्युदा पेशियों के बीच पारस्परिक क्रियाओं को संतुलित करता है.
नोट : यह शारीरिक व मानसिक संतुलन का अभ्यास है. अत: अभ्यास शुरू करने से पूर्व अन्य दूसरे आसनों में दक्षता प्राप्त कर लेना अति आवश्यक है. शुरुआत में किसी कुशल योग प्रशिक्षक के मार्गदर्शन में करना ज्यादा लाभप्रद होगा.

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