बोले सो निहाल

निस्संदेह सिख बागी थे और उनका ध्येय था पंजाब को विदेशी गुलामी से आजाद कराना. वे यह भी जानते थे कि आजादी मुफ्त हाथ नहीं आती, उसकी कीमत चुकानी पड़ती है. इसलिए उन्होंने अपने घर घोड़ों की काठियों पर बना लिये थे अथवा यों कहिए कि बनाने पर विवश हुए थे क्योंकि मुगल सरकार उनका […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 24, 2016 5:51 AM
निस्संदेह सिख बागी थे और उनका ध्येय था पंजाब को विदेशी गुलामी से आजाद कराना. वे यह भी जानते थे कि आजादी मुफ्त हाथ नहीं आती, उसकी कीमत चुकानी पड़ती है. इसलिए उन्होंने अपने घर घोड़ों की काठियों पर बना लिये थे अथवा यों कहिए कि बनाने पर विवश हुए थे क्योंकि मुगल सरकार उनका नामोनिशान मिटाने पर तुली हुई थी.
1716 में बंदा बहादुर की शहादत के बाद दिल्ली के बादशाह फर्रुखसीयर ने यह हुक्म निकाला कि सिख जहां भी मिले, उसे तुरंत गिरफ्तार कर लो. उसके लिए दो ही विकल्प थे, या तो वह मुसलमान बनना स्वीकार करे या फिर उसी समय बिना किसी पूछताछ के कत्ल कर दिया जाये. हर एक सिख के सिर की कीमत लगा दी गयी.
दिलेरे जंग अब्दुल समद खां बंदा बहादुर को गुरदासपुर से गिरफ्तार करके दिल्ली ले जाया गया था. उसकी इस बहादुरी से खुश होकर उसे पंजाब का सूबेदार बनाया गया था और सिखों को मिटाने का काम भी उसी को सौंपा गया था. सरहिंद और जम्मू के सूबेदार उसके सहयोगी थे.
तीनों जगह यह घोषणा कर दी गयी कि सिखों की गतिविधियों के बारे में मुखबिरी करने वाले को 10 रुपये, गिरफ्तार करवाने वाले को 25, गिरफ्तार करके थाने पहुंचाने वाले को 50 और सिर काट कर लाने वाले को 100 रुपये दिये जायेंगे. गांव के नंबरदारों और चौधरियों को हिदायत कर दी गयी कि वे सिखों को बसने न दें. अगर वे खुद गिरफ्तार न कर सकें तो सरकार को सूचित करें. सब जगह मुखबिर और जासूस मंडराने लगे.
सिखों के लिए कहीं भी सिर छिपाना कठिन हो गया. उन्हें पकड़-पकड़कर कत्ल किया जाने लगा. कुछ लोग बाल कटवा कर और सिख धर्म के चिह्न त्याग कर सामान्य जन की तरह रहने लगे, लेकिन जो धर्म और प्रण के पक्के थे और किसी भी हालत में हथियार फेंकने को तैयार नहीं थे, वे भाग कर शिवालिक की पहाड़ियों, लिखी के घने जंगलों और बीकानेर के रेत के टीबों में जा छिपे. सिखों के लिए यह संकट का समय था. शाही हुक्म की मुनादी होते ही सभी सरकारी कर्मचारी बड़े अफसरों को खुश करने के लिए, सरकार परस्त और अवसरवादी इनाम पाने के लोभ में हाथ धोकर सिखों के पीछे पड़ गये.
सिखों की टोलियों की टोलियां पकड़ कर लाहौर भेजी जाने लगीं. जहां उन्हें तरह-तरह की यातनाएं देकर कत्ल कर दिया जाता था. जो सिख जंगलों और पहाड़ों में जा छिपे थे, वहां उनके भोजन और वस्त्र इत्यादि का कोई प्रबंध नहीं था. इसके अलावा अकेले-अकेले रहने में पकड़े जाने की आशंका थी, इसलिए भोजन-वस्त्र प्राप्त करने और शत्रु से अपनी रक्षा करने के लिए वे जत्थों में संगठित हो गये. शुरू में ये जत्थे छोटे-छोटे थे, लेकिन बाद में जैसे-जैसे मैदान से और लोग आकर उनमें मिलते रहे, जत्थे बड़े होते चले गये. ये जत्थे धाड़बी जत्था कहलाते थे.
ये अपने सुरक्षा-स्थलों से निकल कर आसपास के गांवों और कस्बों पर छापा मारते और सरकारी अधिकारियों तथा रईसों को लूट ले जाते. जो कोई उनके विरुद्ध सरकार की सहायता करता अथवा जासूसी करता, वे उसके खेत उजाड़ देते और उसके पूरे परिवार का सफाया कर देते. परिणाम यह कि उनका इतना आतंक छा गया कि अगर कहीं सिख नजर आ जाता तो लोग ‘सिंह आया! सिंह आया!’ का शोर मचाते इधर-उधर भाग खड़े होते.
अब्दुल समद के पास जो फौज थी, वह सब लाहौर में थी. वह सिखों को पकड़ने के लिए दौड़ायी जाती थी, लेकिन सिख उनके हाथ नहीं आते थे. एक तो उस समय आवाजाही के साधन बड़े सीमित थे, दूसरे सिख गुरिल्लों की नीति यह थी कि अगर आज वे यहां धावा बोलते हैं तो तो कल 25-30 कोस के फासले पर किसी दूसरी जगह जाकर धावा बोलते थे. सरकार परेशान थी. उनके श्वेत आतंक को सिखों के क्रांतिकारी आतंक ने परास्त कर दिया था.
सिख खत्म होने के बजाय बढ़ रहे थे, क्योंकि सरकारी सख्ती और सिखों की वीरता देख कर स्वाभिमानी जाट नौजवान घर-बार छोड़कर उनमें जा मिलते थे. यह देख कर अब्दुल समद ने अपनी नीति बदली. उसकी सख्ती सिर्फ उन्हीं के खिलाफ रह गयी जो बंदा बहादुर के साथी रह चुके थे और जत्थेबंद होकर धावे बोलते थे.
इन्हें राठ सिख कहा जाता था. जो सिख देहात में खेती, व्यापार करते थे, पर उनकी सहानुभूति स्वभावतः उन राठ सिखों के साथ थी जो देश और धर्म की रक्षा के लिए सरकारी दमन और तरह-तरह की कठिनाइयां झेल रहे थे. वे उन्हें चुपके-चुपके खाना-दाना पहुंचा देते थे. इन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाता था, पर अब इनके विरुद्ध और जो पहाड़ों-जंगलों से निकल कर घरों में जा बसे, उनके विरुद्ध कार्रवाई बंद कर दी.
नोट : यह (जो बोले सो निहाल) हंसराज रहबर का सिख इतिहास पर अतिमहत्वपूर्ण उपन्यास होने के साथ-साथ इस मायने में भी मौजूं है कि इस समय ‘उड़ता पंजाब’ को लेकर चर्चाएं हो रही हैं.

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