अकेले भी किया जा सकता है बड़ा काम

हमलोग बचपन से एक कहावत सुनते-पढ़ते आ रहे हैं – अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. इसका मतलब यह है कि अकेले कोई बड़ा काम करना या बुनियादी परिवर्तन लाना संभव नहीं है. यह कहावत सही है या गलत, इसमें पड़ने की जरूरत नहीं है. इसके बजाय यह जानना ज्यादा जरूरी है कि लोगों ने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 27, 2016 1:04 AM

हमलोग बचपन से एक कहावत सुनते-पढ़ते आ रहे हैं – अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. इसका मतलब यह है कि अकेले कोई बड़ा काम करना या बुनियादी परिवर्तन लाना संभव नहीं है. यह कहावत सही है या गलत, इसमें पड़ने की जरूरत नहीं है. इसके बजाय यह जानना ज्यादा जरूरी है कि लोगों ने अकेले, अपने दम पर ऐसे काम किये हैं, जिसके लिए सदियों तक उन्हें याद किया जायेगा.

दो उदाहरणों की चर्चा काफी होगी, महात्मा गांधी और स्वामी विवेकानंद. गांधीजी वकालत करने दक्षिण अफ्रीका गये थे. वहां उन्होंने जो देखा, उसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू की. पहले लोग उनके साथ नहीं थे. उनमें ब्रिटिश सरकार का डर था. गांधीजी ने उन्हें समझाया और बिना किसी हिंसक आंदोलन के लोगों को हक उनका दिलाया. हिंदुस्तान लौटने के बाद वह अपने अहिंसा के सिद्धांत पर डटे रहे. अपने दम पर अंग्रेजों के खिलाफ पूरे देश को एकजुट किया. नमक कानून तोड़ा.

विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जिसकी आजादी अहिंसक आंदोलन की देन है. स्वामी विवेकानंद ने 11 सितंबर, 1893 में भारत के प्रतिनिधि के रूप में शिकागो में हुए धर्म संसद में जो भाषण दिया था, उसकी प्रतिध्वनि युगों तक सुनाई देती रहेगी. उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत – मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों से की थी, जिसने अमेरिकियों को विवेकानंद का मुरीद बना दिया. धर्म संसद के बाद अमेरिका में वह जहां भी गये, उनका जोरदार स्वागत किया गया.

दोनों उदाहरणों का तात्पर्य यही है कि अगर मन में विश्वास हो और मंजिल के बारे में पता हो तो अकेला चना भी भाड़ फोड़ सकता है, समाज को नयी दिशा दे सकता है. लोग उसके पीछे चलेंगे. ऐसे लोगों के लिए ही मजरूह सुल्तानपुरी की ये पंक्तियां हैं :

मै अकेला ही चला था जानिब-ए-मंजिल मगर

लोग साथ आते गये और कारवां बनता गया.

daksha.vaidkar@prabhatkhabar.in

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