कार्यशाला-सेमिनार के जरिये प्रोत्साहन

नि:शक्तों का आर्थिक एवं सामाजिक सर्वेक्षणनि:शक्तों तक सरकार की योजना पहुंचाने के लिए उन्हें चिह्न्ति करने और उनकी स्थिति की जानकारी जमा करने के लिए सरकार ने इस योजना को शुरू किया है. इसके तहत ऐसे व्यक्तियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का भी सर्वेक्षण किया जाना है. सर्वेक्षण के आधार पर डेटा बेस बनाना […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 2, 2013 11:41 AM

नि:शक्तों का आर्थिक एवं सामाजिक सर्वेक्षण
नि:शक्तों तक सरकार की योजना पहुंचाने के लिए उन्हें चिह्न्ति करने और उनकी स्थिति की जानकारी जमा करने के लिए सरकार ने इस योजना को शुरू किया है. इसके तहत ऐसे व्यक्तियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का भी सर्वेक्षण किया जाना है. सर्वेक्षण के आधार पर डेटा बेस बनाना योजना का अगला लक्ष्य है. इसके आधार पर राज्य में नि:शक्तों को लेकर योजनाओं और नीतियों की निर्धारण व पुरानी नीतियों और योजनाओं की समीक्षा होनी है. इस दृष्टि से यह कार्य बेहद महत्वपूर्ण है. इस सर्वेक्षण कार्य की जिम्मेवारी आंगनबाड़ी सेविकाओं और सहायिकाओं को सौंपा गयी है. इसके लिए अलग से बजट का भी सरकार प्रावधान करती है.

कैसे जुड़े इस कार्य से
नि:शक्त व्यक्तियों के बारे में जरूरी सूचना आप आंगनबाड़ी केंद्र पर दे सकते हैं. अगर स्वयं नि:शक्त हैं या आपके परिवार में ऐसा कोई सदस्य है, तो आप आंगनबाड़ी सेविका या सहायिका से संपर्क कर उन्हें पूरी जानकारी उपलब्ध करा सकते हैं.

नि:शक्त छात्र-छात्राओं की छात्रवृत्ति योजना
झारखंड के नि:शक्त छात्र-छात्राओं को शिक्षा की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए छात्रवृत्ति योजना चलायी जा रही है. इसका मकसद सामान्य छात्र-छात्राओं की तरह नि:शक्त बच्चों में भी शिक्षा के प्रति अभिरुचि पैदा करना, उन्हें इस कार्य के लिए प्रोत्साहित करना तथा आर्थिक सहायता प्रदान करना है. यह योजना पहली कक्षा से स्नातकोत्तर तक की पढ़ाई करने वाले नि:शक्त छात्र-छात्राओं के लिए है. इसके तहत पहली से आठवीं के नि:शक्त छात्र-छात्राओं को 50 रुपये प्रतिमाह तथा नौंवी कक्षा से स्नातक तक के छात्र-छात्राओं को 250 रुपये प्रतिमाह की दर से छात्रवृत्ति दी जाती है. जो नि:शक्त विद्यार्थी स्नातकोत्तर या उससे आगे की पढ़ाई कर रहे हैं, उन्हें 260 रुपये प्रतिमाह की दर से छात्रवृत्ति दी जाती है. पहली से आठवीं तक के वैसे नि:शक्त छात्र-छात्राओं को 100 रुपये प्रतिमाह की दर से छात्रवृत्ति दी जाती है, जो सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं.

निजी स्कूलों में पढ़ने वाले नि:शक्त बच्चों को भी छात्रवृत्ति
ऐसा नहीं है कि जो नि:शक्त बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं, उन्हें ही सरकारी छात्रवृत्ति मिलेगी. अगर मूक-बधिर, दृष्टिहीन, मंदबुद्धि, अल्प दृष्टि या शारीरिक विकलांगता वाले छात्र निजी स्कूलों में पढ़ाई करते हैं, तो भी वे इस योजना के लाभ के हकदार हैं, लेकिन इसके लिए कुछ शर्ते हैं, जो स्कूलों को पूरी करनी होती है. सरकारी नियम के मुताबिक उन्हीं निजी स्कूलों में पढ़ने वाले नि:शक्त छात्र-छात्राओं को इस योजना का लाभ दिया जा सकता है, जो कम-से-कम तीन साल पुराने हों, जिनके पास प्रशिक्षित शिक्षक हों तथा शिक्षण-प्रशिक्षण के लिए उनके पास विशेष उपकरण उपलब्ध हों. सरकार इस मद में हर साल करीब एक करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च करने की योजना तैयार करती है.

नि:शक्तों के लिए सेमिनार-कार्यशाला
नि:शक्त व्यक्ति में हीन भावना पैदा हो जाना या जीवन की चुनौतियों को लेकर उनका हताश हो जाना स्वाभाविक क्रिया है. उनमें आत्मविश्वास पैदा करना और यह भाव जगाना जरूरी है कि नि:शक्तता के बाद भी उनमें विशिष्ट प्रतिभा है, जिसका वे लाभ उठा सकते हैं. ऐसा होता भी है. यह वैज्ञानिक अध्ययन ये सिद्ध भी हुआ है. नि:शक्तों में आत्मविश्वास पैदा करने और हीन भावना से उन्हें दूर रखने को लेकर सरकार पहल करती है. इसके लिए सेमिनार और समारोह का आयोजन सरकारी स्तर पर किया जाना है.

अवसर की जानकारी
इसके अलावा नि:शक्तों को यह बताना जरूरी होता है कि वे नि:शक्तता के बाद भी क्या कुछ विशेष कर सकते हैं? इसके लिए उनके पास किस-किस तरह के अवसर हैं और वे उनका लाभ कैसे ले सकते हैं? वे कैसे रोजगार और स्वरोजगार के क्षेत्र में जगह पाने के लिए खुद को तैयार करें? इसके लिए सरकार या स्वयंसेवी संस्थाएं किस-किस तरह से उनकी मदद कर सकती है? उनके क्या विशिष्ट अधिकार हैं और सरकार की उनके लिए कौन-कौन-सी योजनाएं हैं? इसके लिए कार्यशाला का आयोजन किया जाता है.

किस स्तर पर होती है कार्याशाला
इस तरह की कार्यशाला जिला स्तर पर होती है. इसमें जिले के सभी वर्ग और क्षेत्र के नि:शक्त व्यक्तियों को भाग लेने का अवसर दिया जाता है. इस पर जो भी खर्च होता है, वह सरकार करती है. इसलिए इस योजना के एक-एक पैसे के खर्च का हिसाब जनता की जानकारी में होना चाहिए. सरकार सालाना करीब 40-50 लाख रुपये इस योजना पर खर्च करने की योजना बनाती है. इसका लाभ नि:शक्तों को मिल रहा है या नहीं और जो राशि खर्च हो रही है, उसकी वास्तविकता क्या है, इसकी जानकारी आप रख सकते हैं.

तीन सरकारी दृष्टिहीन व मूक-बधिर विद्यालय का संचालन
झारखंड में राज्य सरकार द्वारा तीन ऐसे विद्यालय चलाये जा रहे हैं, जो दृष्टिहीनों और मूक-बधिरों के लिए हैं. इन पर सरकार सालाना अच्छी-खासी रकम खर्च करती है.

रांची में नेत्रहीन विद्यालय
राज्य में सरकार द्वारा संचालित एक नेत्रहीन विद्यालय है, जो रांची में है. यहां छात्रवास की भी सुविधा है और कुल 25 छात्रों की इसकी क्षमता है. यहां ब्रेल लिपि से नेत्रहीन छात्रों को शिक्षा दी जाती है. यहां मुफ्त शिक्षा की व्यवस्था है. एक छात्र पर सरकार साल में 16,700 रुपये खर्च करती है. इसके अलावा शिक्षकों एवं कर्मचारियों का भी खर्च सरकार उठाती है. साल भर में करीब 29-30 लाख रुपये खर्च होते हैं.

एक छात्र पर होने वाला खर्च

भोजन-जलपान : 1030 रु प्रतिमाह

तेल-साबुन, सोडा : 100 रु प्रतिमाह

दवा : 100 रु प्रतिमाह

चिकित्सा : 50 रु प्रतिमाह

वस्त्र : 1000 रु वार्षिक

पठन-पाठन – 300 रु वार्षिक

विशेष भोजन : 40 रु वार्षिक

दो मूक-बधिर विद्यालय
अपने राज्य में दो आवासीय मूक-बधिर विद्यालय हैं. एक दुमका में और दूसरा रांची में. दुमका में 25 और रांची में 30 छात्रों के रहने की व्यवस्था है. इन आवासीय स्कूलों में रहने वाले छात्रों के सभी तरह के खर्च सरकार उठाती है. एक छात्र पर साल भर में सरकार करीब 16,700 रुपये खर्च करती है. इन दोनों स्कूलों पर सरकार के साल में करीब 84-85 लाख रुपये खर्च होते हैं.

एक छात्र पर होने वाला खर्च

भोजन-जलपान : 1030 रु प्रतिमाह

तेल-साबुन, सोडा : 100 रु प्रतिमाह

दवा : 100 रु प्रतिमाह

चिकित्सा : 50 रु प्रतिमाह

वस्त्र : 1000 रु वार्षिक

पठन-पाठन – 300 रु वार्षिक

विशेष भोजन : 40 रु वार्षिक

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