ये बच्चे अनाथ नहीं हैं

।। अनुज कुमार सिन्हा ।। विशुनपुर (जिला गुमला) का ज्ञान निकेतन आश्रम. शनिवार की रात में विनोद असुर, अमरदीप उरांव, विकास उरांव, संदीप उरांव मांदर, नगाड़ा, झांझ बजाते हुए जमा होते हैं. ये छोटे–छोटे बच्चे अपने डेढ़ सौ साथियों के साथ इसी आश्रम में रहते हैं. इनमें अधिकांश वे बच्चे हैं, जिनके माता–पिता नहीं हैं. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 25, 2013 5:35 AM

।। अनुज कुमार सिन्हा ।।

विशुनपुर (जिला गुमला) का ज्ञान निकेतन आश्रम. शनिवार की रात में विनोद असुर, अमरदीप उरांव, विकास उरांव, संदीप उरांव मांदर, नगाड़ा, झांझ बजाते हुए जमा होते हैं. ये छोटेछोटे बच्चे अपने डेढ़ सौ साथियों के साथ इसी आश्रम में रहते हैं. इनमें अधिकांश वे बच्चे हैं, जिनके मातापिता नहीं हैं.

उनकी हत्या कर दी गयी या फिर स्वाभाविक मौत हो गयी. ऐसे बच्चे भी हैं जिनकी माता है तो पिता नहीं. पिता हैं तो मां नहीं. गुमला, लोहरदगा, लातेहार और पास के जिलों के दूर दराज के इन बच्चों का घर अब यही आश्रम है. अगर इन बच्चों को उन गांवों से बाहर नहीं लाया जाता, तो भविष्य नहीं बनता. अब ये बच्चे अनाथ नहीं हैं. इनके सिर पर विकास भारती का साया है, अशोक भगत का साया है.

इनके रहनेखाने, कपड़े, किताबकॉपी, फीस सभी की व्यवस्था विकास भारती करती है. जब ये बच्चे सांस्कृतिक कार्यक्रम करते हैं, लय में गाते हैं तो उनके गीत में, उनकी कविता में दर्द झलकता है. ये बच्चे हिम्मत भी दिखाते हैं. ये बच्चे सुबह चार बजे उठते हैं. नित्यक्रम से निबटते हैं.

योगा करते हैं. संस्कृत में श्‍लोक बोलते हैं. व्यायाम करते हैं. समय का सदुपयोग करना सीखते हैं. फूड हैबिट बताया जाता है. अशोक भगत बताते हैंइन बच्चों को 24 घंटे में कब, क्या करना है, सब तय है. इन बच्चों में संस्कार डालने का लगातार प्रयास किया जाता है. इनमें लड़कियां भी हैं.

उनके रहने के लिए अलग आश्रम है. जो लड़कियां यहां से पढ़ कर निकलती हैं, शादी के बाद जिस घरों में जाती हैं, वहां के सिस्टम को ठीक करती हैं. बच्चों को पढ़ाती भी हैं. इससे समाज समृद्धमजबूत बन रहा है. इन बच्चों ने कमाल किया है. अपने परिसर में खुद एक कुआं तक खोद दिया है.

सिर्फ ज्ञान निकेतन ही नहीं, शक्तिमान आश्रम भी एक ऐसा ही केंद्र है, जहां कोई स्वयं को असहाय, अकेला महसूस नहीं करता. चिंगरी में है यह आश्रम जहां नि:शक्तों को रखा जाता है. 22 लड़के और 13 लड़कियां हैं इस आश्रम में. सभी नि:शक्त. ये सभी आसपास के स्कूलों में पढ़ने भी जाते हैं. बनारी स्थित कोयलेश्वर नाथ विद्या मंदिर और जतरा टाना भगत विद्या मंदिर में ये बच्चे पढ़ाई करते हैं.

इन स्कूलों का संचालन विकास भारती ही करती है. इनकी देखरेख के लिए मालती हैं. इन बच्चों का इलाज भी कराया जाता है. यही कारण है कि बलकिशुन का पैर पहले से बेहतर है. जमटी का प्रदीप भी ठीक हो रहा है. उसकी इच्छा है कि पढ़लिख कर वह अपने पैरों पर खड़ा हो जाये. फिर यहां नि:शक्त बच्चों की सेवा में जुट जाये.

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