बिहार विधानसभा चुनाव लडेगी ओवैसी की पार्टी तो क्या होगा असर?

राहुल सिंह ऑल इंडिया मजलिस ए इतेहदुल मुसलिमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आज अपने गृहनगर हैदराबाद से एलान किया कि उनकी पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में कूदेगी. उनके इस बयान के बाद पटना व दिल्ली में राजनीतिक तापमान बढ गया. राजनीतिक रूप से बहुत क्षीण प्रभाव रखने वाले ओवैसी की राजनीतिक पहचान खेल […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 12, 2015 5:10 PM
राहुल सिंह
ऑल इंडिया मजलिस ए इतेहदुल मुसलिमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने आज अपने गृहनगर हैदराबाद से एलान किया कि उनकी पार्टी बिहार विधानसभा चुनाव में कूदेगी. उनके इस बयान के बाद पटना व दिल्ली में राजनीतिक तापमान बढ गया. राजनीतिक रूप से बहुत क्षीण प्रभाव रखने वाले ओवैसी की राजनीतिक पहचान खेल बनाने वाले शख्स की तो नहीं है, हां खेल बिगाडने वाले शख्स की जरूर है. ध्यान रहे कि वे कुछ सप्ताह पूर्व बिहार का चुनावी जायजा लेने भी आये थे.
महाराष्ट्र चुनाव की यादें और कांग्रेस का सवाल
ओवैसी ने जब पिछले साल महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपना दम दिखाने का एलान किया, तो कांग्रेस-एनसीपी गठजोड के माथे पर बल पड गये थे. कांग्रेस खेमे की ओर से यह भी कहा गया कि उन्हें भाजपा ही वोट कटवा के रूप में खडा कर रही है. यही बात बिहार के संदर्भ में आज कांग्रेस नेता व प्रवक्ता संदीप दीक्षित ने दोहरायी. दीक्षित ने कहा कि क्या पता उनके और अमित शाह के बीच कोई बात हो! उन्होंने कहा कि ओवैसी का यह रवैया सेकुलर ताकतों को मजबूत करने वाला तो कतई नहीं है और अगर वे सेकुलर हैं, तो उनकी पार्टी में मुसलिमीन शब्द क्यों लगा है? संदीप ने कहा कि वे हमारे साथ भी रहे हैं और व्यक्तिगत रूप से बेहद विनम्र हैं, लेकिन राजनीति में उनका दूसरा रूप दिखता है.
बेफिक्रीभराजदयू-राजद का अंदाज
जदयू प्रवक्ता केसी त्यागी ने कहा कि ओवैसी के बिहार के सीमांचल में चुनाव लडने से हमें कोई फर्क नहीं पडेगा. त्यागी ने कहा कि नीतीश के वोटर उन्हें ही वोट देंगे. उन्होंने थोडे बेफिक्री भरे अंदाज में कहा कि शिवसेना भी तो बिहार में चुनाव लड रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या शिवसेना महागठबंधन को जिस हद तक मुसलिम वोटों का नुकसान पहुंचायेगी, शिवसेना उसी हद तक भाजपा को हिंदू वोटों का नुकसान पहुंचायेगी. यानी हिसाब बराबर!
राजद नेता मनोज झा ने भी बेफिक्री दिखाते हुए कहा कि एआइएमआइएम का चुनाव लडना मीडिया के लिए खबर हो सकती है, इससे हमारे गंठबंधन पर कोई फर्क नहीं पडेगा.
क्यों महत्वपूर्ण है ओवैसी का हस्तक्षेप
बिहार की राजनीति में ओवैसी का ताजा हस्तक्षेप अहम है. जैसे देश की राजनीति में यह कहा जाता है कि दिल्ली की कुर्सी का रास्ता यूपी-बिहार होकर जाता है, उसी तरह बिहार में यह कहा जाता है कि सत्ता का रास्ता कोसी-सीमांचल होकर जाता है. हालांकि केंद्रीय राजनीति की तरह सूबे की राजनीति में भी इस मान्यता में अपवाद हो सकते हैं. ओवैसी के बयान पर गौर करें, तो उन्होंने दो अहम बिंदु का उल्लेख किया है कि वे बिहार विधानसभा लडेंगे और सीमांचल के चार जिलों में लडेंगे. यानी सीमांचल के चार जिलों अररिया, किशनगंज, पूर्णिया व कटिहार को वे फोकस कर चुनाव लडेंगे, जहां विधानसभा की 24 सीटें हैं. जबकि वे बिहार की दूसरी सीटों से भी अपने उम्मीद सेकेंडरी तौर पर उतार सकते हैं. भले ही सीमांचल की इन 24 सीटों पर मुसलिम निर्णायक हों, लेकिन बिहार में 70 सीटों पर मुसलिम वोट प्रभावी हैं.
हालांकि ओवैसी के मैदान में कूदने से पांचवे चरण में चुनाव वाले कुल 57 सीटों पर उसका प्रत्यक्ष असर पडेगा, भले ही उनका फोकस प्वाइंट चार जिले हों. ये कोसी क्षेत्र व मिथिलांचल के इलाके हैं.
इस इलाके में भाजपा अबतक प्रभावी नहीं हो सकी है, लेकिन अगर ओवैसी ने प्रभावी हस्तक्षेप किया तो वह लालू प्रसाद का परंपरागत वोट काट सकते हैं, जो महागंठबंधन के लिए अच्छी स्थिति नहीं होगी. संभव है ओवैसी फैक्टर को ध्यान में रखते हुए भाजपा भी टिकट बंटवारे में उदारता दिखाये और मुसलिमों को अधिक टिकट दे, इससे उसका काम और थोडा आसान हो सकता है. पर, दूसरी जमीनी हकीकत यह भी है कि नरेंद्र मोदी बनाम नीतीश कुमार प्रसंग के बाद मुसलिमों में नीतीश की लोकप्रियता काफी बढी है. ऐसे में हम अगर राजनीतिक शब्दावली से एक शब्द चुनें, तो यह सवाल भी उठता है कि क्या मुसलिम ओवैसी को अपना वोट देकर उसे बर्बाद करना चाहेंगे?

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