आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े 10 प्रमुख तथ्य

कुछ साल पहले यदि आपने कोई साइंस फिक्शन मूवी देखी होगी तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या मशीनी मानव की भूमिका आपको महज एक कल्पना सदृश महसूस हुई होगी और आपको लगा होगा कि उसे हकीकत के धरातल पर आने में दशकों या सदियों लग सकते हैं, लेकिन पिछले वर्षो के दौरान यह जिस तरह से विकसित […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 2, 2015 1:09 AM
कुछ साल पहले यदि आपने कोई साइंस फिक्शन मूवी देखी होगी तो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस या मशीनी मानव की भूमिका आपको महज एक कल्पना सदृश महसूस हुई होगी और आपको लगा होगा कि उसे हकीकत के धरातल पर आने में दशकों या सदियों लग सकते हैं, लेकिन पिछले वर्षो के दौरान यह जिस तरह से विकसित हुआ है, उससे लगता है कि यह कई तरीकों से हमारे आसपास पहुंच चुका है. हालांकि इसकी राह में कई चुनौतियां, तो इसके बारे में कई भ्रांतियां भी मौजूद हैं. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े प्रमुख तथ्यों को जानें आज के नॉलेज में..
दिल्ली : आधुनिक कंप्यूटिंग तकनीक के विकास के बाद से दुनियाभर के वैज्ञानिक और इनोवेटर पिछले कई दशकों से एक ऐसा कंप्यूटर विकसित करने में जुटे हैं, जो इंसान की तरह सोच सके.
मैकेनिकल प्रोसेस, एल्गोरिथम और संबंधित नेटवर्क्‍स को इसके लिए सक्षम बनाया जा रहा है, ताकि उसके आधार पर इसके प्रारूप को विकसित किया जा सके.
कुल मिला कर मशीनी प्रक्रिया के आधार पर जो कृत्रिम बौद्धिक चेतना विकसित की जा रही है, उसे हम आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता के नाम से जानते हैं.
एक समय था जब साइंस फिक्शन मूवी और उसके प्लॉट को अक्सर लोग एक कल्पना समझते थे और उसका मजाक बनाते थे, लेकिन अब यह आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के रूप में हकीकत में तब्दील होता जा रहा है. यदि कहें कि हकीकत में तब्दील हो चुका है, तो भी अतिशयोक्ति नहीं होगी.
कई क्षेत्रों में इसका इस्तेमाल हो रहा है. दुनियाभर में अनेक ऐसे स्टार्टअप स्थापित हो चुके हैं, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के आधार पर आगे बढ़ रहे हैं. आज यह तकनीक ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंच रही है और बड़ी कंपनियां इसमें काफी आगे निकल चुकी हैं.
हालांकि, एक ओर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और इसका कारोबार तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन इस तकनीक के समक्ष बड़ी चुनौतियां भी हैं. साथ ही इस संबंध में लोगों में अनेक भ्रांतिया हैं. जानते हैं इससे जुड़े 10 महत्वपूर्ण तथ्य.
ज्यादातर लोग यह समझते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का आइडिया रोबोट या इस तरह की अन्य मानवीय (एंथ्रोपोमोरफिक) मशीनों से जुड़ा है, जो इंसान की तरह ही सोचने का काम कर सकता है और इस विचार का प्रादुर्भाव आधुनिक युग में हुआ है.
लेकिन मशीनी मानव का आइडिया हेफेस्टेस के गोल्डेन रोबोट की भांति पूर्व में ग्रीक की प्राचीन कथाओं में पाया गया है.
साथ ही मध्य युग में कीमिया की कहानियों में इंसान के दिमाग की जगह पर उससे मिलती-जुलती नकली वस्तुओं का जिक्र किया गया है, जो दिमाग की तरह कार्य करते थे. इसके अलावा, कुछ धर्मो में भौतिक प्रतिमाओं की पूजा की जाती है और यह समझा जाता है कि उस मूर्ति में इंसान की तरह सोचने, समझने की शक्ति और भावनाएं मौजूद हैं.
ब्रिटिश गणितज्ञ एलन टय़ूरिंग ने वर्ष 1950 में सबसे पहले इंटेलिजेंस की गणितीय व्याख्या की थी. स्टुअर्ट रसेल व पीटर नॉरविग ने अपनी पुस्तक ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस : ए मॉडर्न अप्रोच’ में कंप्यूटर की क्षमता के लिए चार घटकों का विवरण दिया.
पहला, नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग, जिसकी मदद से कम्युनिकेशन को आसान बनाया जाता है. दूसरा, नॉलेज रिप्रेजेंटेशन- ज्ञात तथ्यों को संरक्षित किया जाता है. तीसरा, ऑटोमेटेड रीजनिंग- इसके माध्यम से किसी सवाल का जवाब देने के लिए इन सूचनाओं का इस्तेमाल और नये निष्कर्षो की रूप-रेखा तैयार होती है.
चौथा, मशीन लर्निग- जिसके माध्यम से नयी परिस्थितियों के बारे में जानकारी हासिल करने की प्रक्रिया संपन्न की जाती है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की परिघटना काफी पहले सामने आ चुकी थी, लेकिन 1950 के दशक तक इस पर किसी औपचारिक एकेडमिक रिसर्च को अंजाम नहीं दिया गया था.
वर्ष 1956 में पहली बार डार्टमाउथ कॉन्फ्रेंस में इस पर चर्चा की गयी. इस कॉन्फ्रेंस के आयोजक जॉन मैकेर्थी ने ही इसके लिए ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस’ शब्द को चुनने के लिए प्रतिभागियों को प्रोत्साहित किया था.
उसके बाद से जॉन मैकेर्थी नियमित रूप से सभी विश्वविद्यालयों में इसे जोड़े जाने के लिए प्रयासरत रहे. 2011 में उनका निधन हो गया और उस समय तक वे इस अभियान में जुटे थे.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का एक बड़ा लक्ष्य है कंप्यूटर को इंसानों को समझने योग्य बनाना और फिर उसे स्वाभाविक भाषा में कम्युनिकेट कर पाना. इसमें नेचुरल लैंग्वेज प्रोसेसिंग का बड़ा योगदान है. इसके सहारे कंप्यूटर को ऐसा बनाना, ताकि वह इंसानों की भाषा को समझ सके.
कंप्यूटर को निश्चित रूप से अंगरेजी या अन्य भाषाओं की तरह मानवीय भाषाओं को गहनता से सीखना होगा.पिछले कुछ वर्षो के दौरान परिवहन के क्षेत्र में जो सबसे बड़ा टेक्नोलॉजिकल एडवांसमेंट देखा जा रहा है, वह है स्वायत्त वाहनों का निर्माण. यानी ऐसे वाहन जो खुद चलने में सक्षम हों. इस दिशा में गूगल ने बड़ी कामयाबी हासिल की है और ड्राइवर रहित कार को सड़क पर चलाते हुए उसका परीक्षण कार्य पूरा किया है.
इसके अलावा, कुछ कंपनियों ने मानवरहित ड्रोन का निर्माण किया है, जो अपने लक्ष्य तक पहुंच रहे हैं. यह सब बिना आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के मुमकिन नहीं हो सकता.
दुनियाभर में आज तकनीक आधारित खासकर इंटरनेट तकनीक आधारित स्टार्टअप का चलन देखा जा रहा है.हालांकि, ज्यादातर स्टार्टअप के लिए बाजार से रकम हासिल करना आसान नहीं है, लेकिन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़े स्टार्टअप को रकम हासिल करने में ज्यादा मुश्किल नहीं हो रही है.
कई स्टार्टअप को रकम जुटाने में बहुत आगे हैं. ‘सीबी इनसाइट’ की रिपोर्ट के मुताबिक, सेंटीएंट टेक्नोलॉजी कंपनी ने तो अपनी स्थापना के महज कुछ वर्षो के भीतर 100 मिलियन डॉलर की रकम जुटा ली है. कुल मिला कर आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी कंपनियों नें निवेशकर्ताओं को अपनी ओर आकर्षित करने में सफलता प्राप्त की है.
आज आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में जो तेजी देखी जा रही है, उसके लिए केवल छोटी स्टार्टअप कंपनियां जिम्मेवार नहीं हैं. बड़ी तकनीकी कंपनियां स्पेस सेक्टर में निवेश करने के साथ आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से जुड़ी कंपनियों का अधिग्रहण कर रहे हैं.
आइबीएमका वाट्सन आज खाना बनाने से लेकर हॉस्पीटल से जुड़े कार्यो तक को निबटा रहा है. हाल ही में उस समय गूगल भी चर्चा में रहा, जब उसने एआइ आधारित स्टार्टअप डीपमाइंड को 400 मिलियन डॉलर में अधिग्रहित किया.इसी तरह से फेसबुक ने भी हाल ही में विट आइ को खरीदा है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का विकास होने से दुनियाभर में अनेक मकसद से इस्तेमाल में लाये जा रहे रोबोट्स को सोचने-समझने की क्षमता मिल रही है. यूरोप में कोकोरो (कलेक्टिव कोग्निटिव रोबोटिक्स) प्रोजेक्ट के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से रोबोट को विकसित किया है, जो अनेक क्रियाकलापों को निबटाने में सक्षम है. यह रोबोट इच्छित इलाके को खोज सकता है, पर्यावरण को स्कैन कर सकता है और सूचना को अन्यत्र भेज सकता है.
रोबोट के बारे में कहा जाता है कि मशीनी होने के कारण यह इंसान की तरह भावनाओं को नहीं समझ सकता. मेसाच्यूसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के आर्टििफशियल इंटेलिजेंस लैब में किसमेट नाम से एक ऐसा रोबोट बनाया गया है, जो इंसान की भाषा और बोलने के टोन को वह समझ सकता है और उसी के मुताबिक खुद भी रिएक्ट कर सकता है.
आज दुनियाभर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी एडवांस्ड टेक्नोलॉजी पर काफी बहस हो रही है और यह विवादों में भी घिरी है. विभिन्न विशेषज्ञों की इस संबंध में अलग-अलग राय है. जहां एक ओर बड़ी कंपनियां और विश्वविद्यालय आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के क्षेत्र में व्यापक शोध और विकास कार्यो पर बड़ी रकम खर्च कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर प्रख्यात भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने इस बारे में चिंता जतायी है और कहा है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से मानव के अस्तित्व को खतरा पैदा हो सकता है.इसके अलावा, परिवहन क्षेत्र के पुरोधा एलन मस्क और कंप्यूटर क्षेत्र के महारथी बिल गेट्स ने भी इसके खतरों के प्रति आगाह किया है.
हालांकि, आप जिस पक्ष के बारे में सोच रहे हों, लेकिन इतना तय है कि वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों के बीच फिलहाल इस मसले पर बहस जारी रहेगी.
कई रूपों में हमारे बीच मौजूद है एआइ
यदि आपको इस बात का भय है कि रोबोटों का वक्त आनेवाला है, तो डरने की जरूरत नहीं है. ये पहले से ही हमारे बीच मौजूद हैं.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रतिनिधि पहले ही हमारी जिंदगी के हर पहलू में शामिल हैं- वह हमारे इनबॉक्स को स्पैम मुक्त रखते हैं, वह इंटरनेट के प्रयोग में मदद करते हैं, वह हमारे हवाई जहाज चलाते हैं. इतना ही नहीं, गूगल हमारे लिए जल्द ही ड्राइवर रहित कार चलाने जा रहा है.
सिलिकॉन वैली के सिंगुलैरिटी विश्वविद्यालय में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के प्रमुख नील जैकबस्टीन के हवाले से बीबीसी की एक रिपोर्ट में बताया गया है, ‘आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में बसी हुई है.’
वे कहते हैं, ‘इसका इस्तेमाल दवाइयों, डिजाइन बनाने में और पूरी तरह स्वचालित उद्योग में होता है.’ और हर दिन अल्गोरिद्म पहले से ज्यादा तेज होती जा रही है. इसका मतलब यह है कि आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी चाहत- ऐसी मशीन की खोज, जो इंसानों जितनी ही बुद्धिमान हो-पूरा होने के बेहद करीब हो सकती है.
जैकबस्टीन का अनुमान है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस 2020 के दशक के मध्य तक इंसानी बुद्धिमत्ता से आगे निकल जायेगी. हालांकि, इससे एक नयी बहस शुरू हो सकती है कि मशीनी बुद्धि के प्रभाववाला समाज कैसा होगा और हमारी इसमें भूमिका क्या होगी?
रोबोट और एआइ तकनीक
कृ त्रिम बुद्धिमत्ता मानव के विचारशील प्रक्रियाओं की पुनर्निर्माण प्रक्रिया है. मानव निर्मित ऐसी मशीन जो बौद्धिक क्षमताओं से पूरी तरह युक्त हो.
रोबोटिक्स विज्ञान और तकनीक की ऐसी शाखा है, जो उपरोक्त तकनीक के बेहद करीब है. कंप्यूटर विभिन्न जटिल समस्याओं को एक साथ हल कर पाने में सक्षम है. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस रोबोट या कंप्यूटर ह्यूमन इनपुट या सेंसर के माध्यम से परिस्थितियों का आकलन करते हैं.
एकत्र सूचनाओं के आधार पर कंप्यूटर या रोबोट काम करता है यानी प्रोग्रामिंग के आधार पर रोबोट समस्याओं का हल निकालता है. अत्याधुनिक कंप्यूटर इनसान की तरह सूचनाओं को पढ़ पाने व सीखने में भी कामयाब है.
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंसशोधकर्ताओं के सामने सबसे बड़ी समस्या यह समझने की है कि आखिर ‘इंटेलिजेंस’ कैसे कार्य करता है? मानव मस्तिष्क लाखों-करोड़ों न्यूरॉन से बना होता है. ‘साइंस डॉट हाउस्टफवर्क्‍स’ की रिपोर्ट के अनुसार, कुछ विशेष प्रकार के रोबोट सामाजिक तौर पर काम कर पाने में सक्षम होते हैं.
एमआइटी के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस लैब द्वारा बनाया गया ‘कि समेट’ रोबोट मानव क्रिया-कलापों और आवाज को पहचान पाने में सक्षम है.
विशेषज्ञों का मानना है कि मानव और मशीन का यह पारस्परिक मेल भविष्य में इनसान की तरह काम कर पाने वाली मशीन के लिए बुनियाद बनेगा.

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