हर व्यक्ति एक जैसा नहीं हो सकता

दक्षा वैदकर कल्पना करें कि आप चार लोगों के साथ में एक घर में रहते हैं. घर के सभी लोग बिल्कुल एक जैसा सोचते हैं, एक जैसा बोलते हैं, एक जैसा व्यवहार करते हैं और सारे काम भी एक जैसे करते हैं. अब आप ऑफिस जायें, वहां भी आपको सारे लोग एक जैसे मिलते हैं. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 28, 2015 1:06 AM
दक्षा वैदकर
कल्पना करें कि आप चार लोगों के साथ में एक घर में रहते हैं. घर के सभी लोग बिल्कुल एक जैसा सोचते हैं, एक जैसा बोलते हैं, एक जैसा व्यवहार करते हैं और सारे काम भी एक जैसे करते हैं. अब आप ऑफिस जायें, वहां भी आपको सारे लोग एक जैसे मिलते हैं. सभी का व्यवहार एक जैसा है, सभी एक जैसा काम करते हैं. आपको क्या लगता है, इस तरह आपकी लाइफ कैसी हो जायेगी? स्वर्ग?. नहीं आपकी लाइफ बिल्कुल बोरिंग हो जायेगी.
ये लाइफ इतनी ब्यूटीफुल इसलिए है, क्योंकि यहां हर व्यक्ति अलग है और इसी ब्यूटी को सारा दिन हम खत्म करने की कोशिश करते रहते हैं, जब हम यह चाहते हैं कि सामने वाला हमारी तरह बन जाये. हमारे जैसा व्यवहार करे. इन सब से हमें बाहर निकलना होगा. हमें यह स्वीकार करना होगा कि हर व्यक्ति की सोच डिफरेंट होती है और जब ऐसा होता है, तो बातों में छोटे-मोटे अंतर आयेंगे ही. किसी चीज को लेकर मत भी अलग-अलग होगा ही.
सोचें, आपके बॉस ने आपको डांट दिया. आपके दिल में चोट लग गयी. अब यह आप पर निर्भर करता है कि आप इस चोट को कितनी देर तक रखते हैं. कई बार हम सोचते हैं, ‘उसने ऐसा किया.. सब के सामने मुङो डांटा.. वो ऐसा कैसे कर सकता है..’ हम यह सोच कर चोट को और गहरा करते जाते हैं. जब अकेले सोच-सोच कर बोर हो जाते हैं, तो किसी और के पास चले जाते हैं और उसे बताते हैं, ‘पता है उसने सुबह मेरे साथ ऐसा व्यवहार किया.’ सामने वाला कहता है, ‘अरे वो तो ऐसा ही है.. उसने दो दिन पहले मेरे साथ भी ऐसा किया था.’
इस तरह चोट और गहरी हो जातीहै. अब जब तक बॉस दूसरी बार हमारे सामने आता है, तब तक मन ही मन हम उस चोट को इतनी गहरी कर चुके होते हैं कि रिश्ता बच ही नहीं पाता.
ऐसी स्थिति से बचने के लिए हमें अपने भीतर कॉमेंट्री को बदलता होगा. हम यह भी तो सोच सकते हैं कि सामनेवाले का आज मूड खराब था. उनके दृष्टिकोण से वह सही थे और मेरी जगह मैं. उनके बोलने से मैं आलसी थोड़े हो जाऊंगा. जाने दो.
बात पते की..
– इस इंतजार में कभी न बैठें कि सामने वाला आकर सॉरी बोलेगा, तो ही आप नॉर्मल होंगे. खुद के मूड को किसी और के सॉरी पर निर्भर क्यों रखना?
– सोच की क्वालिटी को बदलना सीखें. दूसरों की बातों को तुरंत भूल जायें. यह उनकी नहीं, बल्कि आपके और आपके परिवार की भलाई के लिए है.

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