हरी-भरी वसुंधरा : जी हां, पेड़ों पर भी उगते हैं पैसे

बैंक की नौकरी छोड़ जड़ी-बूटी की खेती शुरू की यूं तो छत्तीसगढ़ की पहचान घने जंगलों के लिए है, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू है नक्सलवाद. और बात करें इसके बस्तर जिले की, तो यह नक्सलियों का गढ़ माना जाता है. लेकिन इसी बस्तर के कोंडागांव में एक शख्स ने लगभग 16 साल पहले बैंक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 18, 2015 8:14 AM
बैंक की नौकरी छोड़ जड़ी-बूटी की खेती शुरू की
यूं तो छत्तीसगढ़ की पहचान घने जंगलों के लिए है, लेकिन सिक्के का दूसरा पहलू है नक्सलवाद. और बात करें इसके बस्तर जिले की, तो यह नक्सलियों का गढ़ माना जाता है.
लेकिन इसी बस्तर के कोंडागांव में एक शख्स ने लगभग 16 साल पहले बैंक की पक्की नौकरी छोड़ जड़ी-बूटियों की खेती करने की सोची. राजाराम त्रिपाठी नाम के इस शख्स ने अपनी पारिवारिक जमीन गिरवी रख कर पूंजी जुटायी और 25 एकड़ जमीन पर सफेद मूसली की खेती की.
आयुर्वेद में सफेद मूसली का इस्तेमाल शरीर में ऊर्जा और जोश भरने के अलावा मधुमेह, गठिया, जोड़ों की समस्या और जन्मजात विकारों पर काबू पाने के लिए सदियों से किया जाता रहा है. यह सौ से अधिक आयुर्वेदिक, सिद्ध, यूनानी, होमियोपैथिक और एलोपैथिक दवाइयों का जरूरी घटक है. बहरहाल, तब बाजार में 13 सौ रुपये किलो की दर से बिकनेवाली इस जड़ी से राजाराम को अच्छी आय हुई.
धीरे-धीरे राजाराम ने अपनी खेती का दायरा बढ़ाया और ज्यादा कृषि भूमि पर सफेद मूसली के अलावा स्टीविया, अश्वगंधा, लेमन ग्रास, कालिहारी और सर्पगंधा जैसी जड़ी-बूटियों की भी खेती शुरू कर दी. अपनी उपज को देश-विदेश तक पहुंचाने के लिए उन्होंने मां दंतेश्वरी हर्बल प्रोडक्ट्स लिमिटेड के नाम से एक कंपनी बनायी और साथ ही साथ इसकी वेबसाइट भी लांच की. आज 11 सौ एकड़ में खेती करनेवाली यह कंपनी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के 350 परिवारों के 22 हजार लोगों की आजीविका का साधन है.
मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप आदिवासी क्षेत्रों के मुश्किल हालात में काम करते हुए कई तरह के हर्बल फूड सप्लीमेंट का उत्पादन और मार्केटिंग सेंट्रल हर्बल एग्रो मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया की मदद से करता है. खास बात यह है कि राजाराम अपने खेतों में किसी भी प्रकार का रासायनिक खाद इस्तेमाल नहीं करते. इसकी जगह वह मिट्टी की उर्वराशक्ति को बरकरार रखने के लिए मवेशियों के गोबर व मूत्र का इस्तेमाल करते हैं. सिर्फ इसी काम के लिए उन्होंने अपने फार्म में लगभग तीन सौ गाय-बैल पाल रखे हैं.
राजाराम की कंपनी के उत्पाद आज भारत के अलावा, जर्मनी, नीदरलैंड्स, अमेरिका, इथियोपिया और खाड़ी देशों तक पसंद किये जाते हैं.
धरती और इसके पर्यावरण को बिना कोई नुकसान पहुंचाये 16 सालों से जैविक विधि से औषधीय पौधों की खेती की बदौलत उन्होंने देश-विदेश में ख्याति और सम्मान कमाया है, इनमें रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड अर्थ हीरो अवार्ड, देश सेवा रत्न अवार्ड शामिल हैं. हर्बल खेती में जाना-माना नाम बन चुके राजाराम अपने कौशल को बस खुद तक ही सीमित नहीं रखना चाहते. असम से लेकर गुजरात तक और तमिलनाडु से लेकर पंजाब तक के किसान उनसे हर्बल खेती के गुर सीखने के लिए आते हैं और वे अपना हुनर उनके साथ सहर्ष बांटते भी हैं.
आज राजाराम की दूरदृष्टि और प्रयासों की बदौलत मां दंतेश्वरी हर्बल ग्रुप का कुल टर्नओवर 400 करोड़ रुपये हो चुका है. कभी भारतीय स्टेट बैंक में प्रोबेशनरी अफसर रहे राजाराम त्रिपाठी ने अपनी सारी काबिलियत और संसाधनों को इस क्षेत्र में झोंक कर बेहतरीन उद्यम कौशल का परिचय देते हुए यह साबित कर दिया है कि अगर प्रकृति के साथ ताल-मेल बिठा कर मेहनत की जाये तो पैसे पेड़ों पर भी उगते हैं.

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