जरूरी नहीं कि जो हम देखते हैं सच हो

दक्षा वैदकर एक जौहरी था. किसी बीमारी के कारण उसका देहांत हो गया. उसके देहांत के बाद उसके परिवार पर बहुत बड़ा संकट आ गया. खाने के भी लाले पड़ गये. एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को एक नीलम का हार दे कर कहा- बेटा, इसे अपने चाचा की दुकान पर लेकर जाओ […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 23, 2015 5:33 AM
दक्षा वैदकर
एक जौहरी था. किसी बीमारी के कारण उसका देहांत हो गया. उसके देहांत के बाद उसके परिवार पर बहुत बड़ा संकट आ गया. खाने के भी लाले पड़ गये. एक दिन उसकी पत्नी ने अपने बेटे को एक नीलम का हार दे कर कहा- बेटा, इसे अपने चाचा की दुकान पर लेकर जाओ और कहना कि इसे बेच कर कुछ रु पये दे दो. बेटा अपनी मां के कहने पर वह उस हार को लेकर चाचाजी के पास गया. चाचाजी ने हार को अच्छी तरह से देख-परख कर कहा-बेटा, अपनी मां से कहना कि अभी बाजार बहुत मंदा है.
कुछ दिनों बाद इसे बेचेंगे, तो अच्छी रकम मिल जायेगी. चाचाजी ने थोड़े-से रु पये देकर कहा कि तुम कल से दुकान पर आ कर बैठना. अगले दिन से वह लड़का रोज दुकान पर आने लगा और वहां पर हीरों की परख करने लगा. एक दिन वह हीरों का बहुत बड़ा पारखी बन गया. लोग दूर-दूर से अपने हीरों की परख कराने आने लगे.
एक दिन उसके चाचाजी ने कहा कि बेटा अपनी मां से वह हार लेकर आना और कहना कि अब बाजार बहुत तेज है. अब उसके अच्छे दाम मिल जायेंगे. बेटा हार लेने घर गया और मां से हार लेकर परख कर देखा. वह आश्चर्य में पड़ गया कि यह तो आर्टिफिशियल यानी नकली हार है. वह उस हार को घर पर ही छोड़ कर वापस लौट आया. चाचाजी ने पूछा कि हार नहीं लाये? उसने कहा,‘वह हार तो नकली था.’ तब चाचाजी ने कहा कि जब तुम पहली बार हार लेकर आये थे, अगर मैं उस समय हार को नकली बताता तो तुम सोचते कि आज हम पर बुरा वक्त आया तो हमारी चीज को नकली बताने लगे. आज जब तुम्हें खुद ज्ञान हो गया, तो पता चल गया कि यह नकली है.
मैं बस तुम्हारी और तुम्हारी मां की नजर में गलत साबित नहीं होना चाहता था. साथ ही तुम्हें सीख देना चाहता था कि ज्ञान के बिना इस संसार में हम जो भी सोचते हैं, देखते हैं, जानते हैं, वह सब गलत है. अगर हम दुखी हैं या अभावग्रस्त हैं, तो इसका एक ही कारण है अज्ञानता. अज्ञान के कारण ही डर है. किसी ने सच ही कहा है कि समझदारी, समझदार बनने से नहीं, बल्कि जिम्मेदार बनने से आती है.
बात पते की..
– जब भी कोई आपका साथ न दे, तो उसे तुरंत दोष देना शुरू न कर दें. हो सकता है कि वह सच बोल रहा हो. उसका पक्ष जानने की कोशिश करें.
– जिस क्षेत्र में आप काम करते हैं, उससे जुड़ी हर बात को जानने-समझने की कोशिश करें, ताकि कोई आपको बेवकूफ न बना सके. अपना ज्ञान बढ़ाएं.

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