दुर्गा बन टूट पड़ी थी पुतुल

स्त्री यानी मां, वात्सल्य, प्रेम, त्याग, खुशी.. न जाने और कितने नाम. शायद नहीं कर बांध सकते उसे शब्दों में. आज जब वक्त बदला है, तो उसकी भूमिका भी बदली है. शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में ‘शक्तिशालिनी ’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आज पढ़ें वीरांगना पुतल की कहानी, जिसने दुष्कर्मी को सबक सिखा कर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 28, 2014 1:54 AM

स्त्री यानी मां, वात्सल्य, प्रेम, त्याग, खुशी.. न जाने और कितने नाम. शायद नहीं कर बांध सकते उसे शब्दों में. आज जब वक्त बदला है, तो उसकी भूमिका भी बदली है. शारदीय नवरात्र के उपलक्ष्य में ‘शक्तिशालिनी ’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में आज पढ़ें वीरांगना पुतल की कहानी, जिसने दुष्कर्मी को सबक सिखा कर अपनी जान और अस्मिता बचायी.

रुपेश, मधेपुरा
मां दुर्गा शक्ति और भक्ति की प्रतीक हैं. शारदीय नवरात्र के दौरान मां के अलग-अलग नौ स्वरूप की आराधना की जाती है. देवी ने रौद्र रूप धारण कर महिषासुर का वध किया था. अन्याय और दुराचार का नाश कर शांति स्थापित करने वाली मां दुर्गा की पूजा के दौरान मधेपुरा की बेटी पुतुल की चर्चा भी जरूरी है. पुतुल ने भी जिस साहस और धैर्य का परिचय दिया, वह काबिल-ए-तारीफ है. पुतुल के साहस का ही नतीजा है कि वह अपने साथ दुष्कर्म की कोशिश करने वाले एक वहशी को गंड़ासे से काट दिया था. हालांकि दुष्कर्मी की जान बच गयी, लेकिन आज पुतुल ऐसी हजारों लड़कियों के बीच एक उदाहरण बन गयी है, जो अपना सिर ऊंचा करके जीना चाहती हैं. पुतुल उन लड़कियों के लिए भी मिसाल है, जो अपने साथ होनेवाले जुल्म को चुपचाप सहन कर लेती हैं.

पुतुल के साथ वर्ष 2013 में दस जनवरी को एक हादसा हुआ था, जो पूरे इलाके में काफी दिनों तक चर्चा का विषय बना रहा. लोग महीनों पुतुल के साहस की चर्चा करते नहीं अघाये. शक्तिशालिनी की चर्चा के बीच जानिए पूरा घटनाक्रम.

मधेपुरा के उदाकिशुनगंज प्रखंड की बुधमा पंचायत में है कुस्थनी गांव. परिवार के भरण-पोषण की मजबूरी में यहां के ज्यादातर लोग पंजाब-दिल्ली में मजदूरी करते हैं. राजो सहनी भी धनकटनी के लिए पंजाब में मजदूरी करने गये थे. गांव में अपने पीछे छोड़ गये थे अपनी पत्नी और बेटी पुतुल व अन्य परिजन. पुतुल तब आठवीं कक्षा की छात्र थी. पुतुल के ही टोले के बदमिजाज युवक स्कूल आते- जाते उस पर छींटाकशी किया करते.

पुतुल काफी दिनों तक इसे नजरअंदाज करती रही. इसी दौरान आठ जनवरी को पुतुल की मां अपनी बहन की तबीयत खराब होने की खबर सुन कर उसकी ससुराल चली गयी. जाते हुए मां ने पुतुल की देखभाल की जिम्मेदारी अपनी देवरानी सौंप गयी. न जाने कैसे गली के युवकों को पुतुल की मां के बाहर जाने की खबर मिल गयी. उसी रात जब पुतुल अपने घर में सो रही थी, तो उसने किसी के आने की आहट सुनी. उसने फौरन चोर-चोर चिल्लाना शुरू कर दिया. परिजन जग गये. काफी तलाश करने पर भी कोई नहीं मिला. दिन भर इसकी चर्चा होती रही. फिर ज्यों-ज्यों दिन ढला, पुतुल का दिल बेचैन होता रहा. अंतत: उसने एक फैसला लिया. रात को सोते वक्त उसने चुपके से अपने सिरहाने गंड़ासा रख लिया. रात करीब 11 बजे जब चारों ओर घुप्प अंधेरा था, उसे अपने शरीर पर किसी के स्पर्श की अनुभूति हुई.

पुतुल ने भी अपना हाथ गंड़ासे पर कस लिया. स्पर्श पैर से होता हुआ ज्यों ही ऊपर की ओर बढ़ा, पुतुल पर अचानक खून सवार हो गया और उसने कस कर वार कर दिया. गंड़ासा एक युवक के सिर को लहूलुहान कर गया. वह भागा, लेकिन घर के खूंटे से टकरा गया. पुतुल ने फिर गंड़ासा चलाया. वहशी की जांघ और पीछे से कमर लहूलुहान हो गयी. वह चिल्लाने लगा. इतने में पुतुल के परिजन जग गये और दुष्कर्मी पकड़ा गया.

दुष्कर्मी युवक उसी गांव का पवन निकला. ग्रामीणों ने उसे खूंटे से बांध दिया, लेकिन वह भागने में सफल रहा. सुबह मामला जब पुलिस तक पहुंचा, तो पुलिस ने उसे गिरफ्तार कर लिया. कानों कान यह खबर पूरे क्षेत्र में फैल गयी. पुतुल के साहस की सबने प्रशंसा की. 26 जनवरी को जिले के तत्कालीन पुलिस कप्तान सौरभ कुमार शाह ने वीरांगना पुतुल को उसकी इस वीरता के लिए सम्मानित किया. उसी वर्ष प्रभात खबर ने भी प्रतिभा सम्मान समारोह में पुतुल को सम्मानित किया. पुतुल आज सिर ऊंचा करके अपना जीवन जी रही है.

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