मुझे मार डालो, मार क्यों नहीं डालते मुझे?’

एक अलग मुस्लिम राज्य की मुस्लिम लीग की मांग की जिद के तौर पर जिन्ना के सीधी कार्रवाई के आह्वान के बाद से कलकत्ता एक वर्ष तक खूनी दंगों का शिकार रहा. 31 अगस्त, 1947 की रात को, जब गांधी सो रहे थे, तब हिंदू महासभा के नौजवानों का एक गिरोह हैदरी मंजिल के बाहर […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 1, 2019 7:26 AM

एक अलग मुस्लिम राज्य की मुस्लिम लीग की मांग की जिद के तौर पर जिन्ना के सीधी कार्रवाई के आह्वान के बाद से कलकत्ता एक वर्ष तक खूनी दंगों का शिकार रहा. 31 अगस्त, 1947 की रात को, जब गांधी सो रहे थे, तब हिंदू महासभा के नौजवानों का एक गिरोह हैदरी मंजिल के बाहर आकर चीख-पुकार मचाने लगा. वे अपने साथ एक आदमी को लिये हुए थे, जिसके सारे शरीर पर पट्टियां बंधी हुई थीं.

उसके बारे में उन लोगों का कहना था कि उसे मुसलमानों ने चाकू मारकर घायल किया था. उस घायल आदमी की आड़ में वे लोग बड़े पैमाने पर दंगा शुरू करने का निश्चय किये बैठे लग रहे थे. उस समय गांधी के पास मनुबेन, आभाबेन और दो नौकर मौजूद थे. वे नौजवान पथराव करते हुए जबर्दस्ती अंदर घुस आये. वे दो स्त्रियां उस गुस्सायी भीड़ के सामने आयीं और बोलीं कि गांधी सो रहे हैं.

शोर-शराबा सुनकर गांधी उनसे निपटने बाहर आ गये. वे अपने हाथ बांधे दहलीज पर खड़े रहे, लेकिन भीड़ और भी धमकाने के अंदाज में उतर आयी. गांधी इस कदर गुस्से से भर उठे कि वे चिल्ला पड़े,“ मार डालो मुझे, मार क्यों नहीं डालते मुझे?” उन्होंने भीड़ की ओर भागने की कोशिश की, लेकिन उन दोनों स्त्रियों ने उन्हें पकड़ कर रोक लिया. किसी ने उनकी ओर लाठी से निशाना साधा, लेकिन वह चूक गया, किसी दूसरे ने पत्थर फेंका, जो गांधी के पास खड़े एक मुसलमान को लगा.

गांधी जानते थे कि वे कुछ नहीं कर सकते थे, इसलिए वे अपने कमरे में लौट आये. इस घटना से, और नगर का भ्रमण करते हुए जिन शवों और जले हुए मकानों को उन्होंने देखा था, उस सबसे दुखी हो कर लोगों के होशो-हवास दुरुस्त होने तक उन्होंने आमरण अनशन करने का निश्चय कर लिया.

तमाम मजहबों और संप्रदायों के प्रतिनिधि समूहों ने आकर आगे से किसी तरह के दंगे-फसाद ना होने का आश्वासन दिया. गांधी ने उनसे लिखित वादे की मांग की और उन्होंने लिखकर दे दिया. उस दिन के बाद से, उस वक्त भी जब देश के दूसरे हिस्सों में सांप्रदायिक हिंसा भड़की, कलकत्ता शांति का स्वर्ग बना रहा.

(साभार: गांधी एक सचित्र जीवनी.
लेखक: प्रमोद कपूर)

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