सैंडविच जेनरेशन के बारे में कितना जानते हैं आप

<figure> <img alt="सैंडविच जनरेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/BA48/production/_107388674_gettyimages-948057748.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>अगर किसी से पूछा जाए कि अपने माता-पिता का ख्याल रखना कैसा लगता है तो कोई भी कहेगा कि इसमें खुशी मिलती है, ये मेरी ज़िम्मेदारी है और उन्होंने भी बचपन में मेरा ख्याल रखा था.</p><p>लेकिन बुज़ुर्गों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ हेल्पएज […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 15, 2019 10:47 PM

<figure> <img alt="सैंडविच जनरेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/BA48/production/_107388674_gettyimages-948057748.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>अगर किसी से पूछा जाए कि अपने माता-पिता का ख्याल रखना कैसा लगता है तो कोई भी कहेगा कि इसमें खुशी मिलती है, ये मेरी ज़िम्मेदारी है और उन्होंने भी बचपन में मेरा ख्याल रखा था.</p><p>लेकिन बुज़ुर्गों के लिए काम करने वाले एक एनजीओ हेल्पएज इंडिया के हालिया सर्वे के मुताबिक 29 प्रतिशत लोगों को अपने घर के बुज़ुर्गों का ख्याल रखना बोझ की तरह लगता है. 15 प्रतिशत लोग तो ऐसे हैं जिन्हें ये बहुत बड़ा बोझ महसूस होता है.</p><p>ये लोग उस सैंडविच जेनरेशन से आते हैं जो कई ज़िम्मेदारियों से एकसाथ घिरे हैं.</p><p>ये सर्वे ‘टियर वन’ और ‘टियर टू’ वाले 20 शहरों में किया गया था. इसमें 30 से 50 साल की उम्र के लोगों से बात की गई है.</p><p>15 जून को वर्ल्ड एल्डर एब्यूज अवयरनेस डे मनाया जाता है जिससे बुज़ुर्गों के साथ होने वाले इस दुर्व्यवहार को लेकर जागरूकता लाई जा सके.</p><p>हेल्पएज इंडिया के साल 2018 के एक सर्वे के मुताबिक क़रीब 25 प्रतिशत बुज़ुर्ग मानते हैं कि उनके साथ दुर्व्यवहार हुआ है.</p><p>बुज़ुर्गों की समस्याओं से ही जुड़ा एक पक्ष है सैंडविच जेनरेशन.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-46069629?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दामाद को पछाड़कर टॉपर बनीं 96 साल की दादी</a></li> </ul><figure> <img alt="सैंडविच जनरेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/4518/production/_107388671_gettyimages-484465805.jpg" height="480" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>क्या है सैंडविच जेनरेशन</h3><p>सैंडविच जेनरेशन में वो लोग आते हैं जो 30 से 50 साल की उम्र के हैं और अपने बच्चों और माता-पिता का एकसाथ ख्याल रख रहे होते हैं. ये लोग नौकरी, बच्चों और माता-पिता की ज़िम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश करते हैं और इसमें सफल होते हैं या तो कभी खुद को फंसा हुआ महसूस करते हैं.</p><p>अमूमन बच्चों और माता-पिता के बीच टकराव की वजह बनता है समय की कमी, पैसे की दिक्कत और जेनरेशन गैप.</p><p>आंकड़े कहते हैं कि 62% बेटे, 26% बहुएं, 23% बेटियां बुजुर्गों को एक वित्तीय बोझ की तरह देखते हैं. घर में रहने वाले सिर्फ़ 11 प्रतिशत बुज़ुर्ग ही कमाते हैं और मदद कर पाते हैं. औसतन एक परिवार अपने घर के बुज़ुर्ग पर 4,125 रुपये खर्च करता है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/vert-cap-46421963?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">रिटायरमेंट के बाद आपको कितने पैसों की ज़रूरत होगी</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-47951852?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दुनिया में पोते-पोतियाँ कम, दादा-दादी ज़्यादा</a></li> </ul><figure> <img alt="बुजुर्ग और सैंडविच जनरेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/79A2/production/_107383113_capture7.jpg" height="640" width="640" /> <footer>HelpAge India</footer> </figure><p>समय की बात करें तो 42.5% लोग अपने बुज़ुर्ग को घर पर अकेला छोड़ देते हैं और 65% मेड के सहारे उन्हें छोड़कर जाते हैं. कई बार दोनों के बीच अच्छी तरह बैठकर बात भी नहीं हो पाती है. ऑफिस, बच्चे, बुज़ुर्ग और घर के काम उनके समय को बांट लेते हैं.</p><p>ये सभी कारण मिलकर तनाव पैदा करते हैं और घर में मनमुटाव हो जाता है. आंकड़े कहते हैं कि 25.7% लोग अपने घर के बुज़ुर्ग को लेकर गुस्सा और चिड़चिड़ापन महसूस करते हैं.</p><p>ये लोग बच्चों और माता-पिता दोनों के साथ जेनरेशन गैप का भी सामना करते है. उन्हें बच्चों से भी तालमेल बैठाना होता है और बुज़ुर्गों से भी. एक साथ कई ज़िम्मेदारियों का बोझ उनके कंधों पर होने से उनके व्यवहार में रुखापन आ जाता है.</p><p>हालांकि, बुज़ुर्गों के साथ दुर्व्यवहार को किसी भी स्थिति में जायज नहीं माना जा सकता. लेकिन, जिस वर्ग को माता-पिता का ख्याल रखना है अगर उसकी ज़िंदगी कुछ आसान हो जाए वो माता-पिता की बेहतर देखभाल कर सकता है.</p> <ul> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-44076459?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">104 साल के वैज्ञानिक ने ख़ुशी-ख़ुशी जान क्यों दी?</a></li> <li><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-42421626?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">70 साल बाद अलग अलग क्रिसमस मनाने को मजबूर</a></li> </ul><figure> <img alt="बुजुर्ग और सैंडविच जनरेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/7DEE/production/_107383223_pic1.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>क्या हो समाधान?</h3><p>इस संबंध में हेल्पएज इंडिया के सीईओ मैथ्यू चैरियन कहते हैं, &quot;घर में दुर्व्यवहार झेलने के बावजूद बुज़ुर्ग माता-पिता अपने बच्चों के साथ रहना ही पसंद करते हैं. इसलिए ज़रूरी है कि बुज़ुर्गों और उनके बच्चों के बीच समस्याओं को कम किया जाए. हम बुज़ुर्गों की समस्या को तो समझें पर साथ ही बच्चों के चुनौतियों पर भी गौर करें. इसके लिए कई पक्षों पर काम करने की ज़रूरत है.&quot;</p><p>&quot;जैसे कि अगर स्वास्थ्य सुविधाएं अच्छी हों तो बुज़ुर्गों का इलाज कराना आसान होगा. अगर ऑफिस में पेरेंट लीव की सुविधा हो तो छुट्टी लेने में आसानी होगी. घर की आर्थिक स्थिति अच्छी हो तो पैसों की दिक्कत नहीं आएगी.&quot;</p><p>सर्वे में भी देखभाल करने वालों के सुझावों के आधार पर कुछ उपायों का ज़िक्र किया गया है कि कैसे सरकार इसमें मदद कर सकती है. दवाइयों पर सब्सिडी देकर, स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर करके, सरकारी सहयोग वाले ओल्ड एज होम बनाकर, हेल्थ कार्ड बनाकर, मेडिकल इंश्योरेंस पॉलिसी और मेडिक्लेम देकर स्वास्थ्य संबंधी चिंता को कम किया जा सकता है.</p><figure> <img alt="बुजुर्ग और सैंडविच जनरेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/115E2/production/_107383117_pic4.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>सहेली जैसी सास-बहु</h3><p>साथ ही आपसी संवाद और सहयोग से भी तालमेल बैठाया जा सकता है. दोनों ही पक्षों को एक-दूसरे को समझने की जरूरत है. जैसा कि दिल्ली की रहने वाली पूजा नरुला कहती हैं, &quot;अगर घर में सपोर्ट न हो तो वाकई सैंडविच वाली हालत हो सकती है. लेकिन, मेरी सास ने मुझे इतना सहयोग दिया कि मैं जो भी कर पा रही हूं वो उन्हीं की मदद से है.&quot;</p><p>पूजा नरुला अपने बच्चों, पति और सास-ससुर के साथ रहती हैं. उन्हें परिवार को दो तरफ़ से संभालना होता है.</p><figure> <img alt="बुजुर्ग और सैंडविच जनरेशन" src="https://c.files.bbci.co.uk/2B82/production/_107383111_capture3.jpg" height="549" width="976" /> <footer>HelpAge India</footer> </figure><p>पूजा कहती हैं कि कई बार जेनरेशन गैप की दिक्कत आती है. जो बच्चों को अच्छा लगता है वो सास को नहीं. उनका नज़रिया कुछ अलग होता है. कई बार बच्चों और बड़ों को अलग-अलग जगह घूमना होता है. लेकिन, पूजा दोनों के बीच एक पुल की तरह काम करती हैं. उनके लिए दोनों को ही समझना जरूरी होता है.</p><p>इसी तरह पूजा की सास भी उन्हें बेटी से कम नहीं मानतीं. वह कहती हैं, &quot;अगर हम सारी ज़िम्मेदारी बच्चों पर डाल देंगे तो उनका बोझ बढ़ेगा ही. इसलिए मैं घर में जो भी काम कर सकती हूं वो करती हूं. हम दोनों सहेलियों की तरह रहते हैं. किसने ज़्यादा किया, किसने कम, ये मायने नहीं रखता. खुद को भी बैठाकर नहीं रखना चाहिए. हां, अगर माता-पिता मदद करने की स्थिति में नहीं हैं तो जरूर उनका पूरी तरह ख्याल रखना चाहिए.&quot;</p><p>इसी तरह से अपने बच्चों और ससुराल वालों के साथ रहने वालीं तमन्ना सिंह कहती हैं कि व्यक्ति बुज़ुर्ग होकर बच्चे जैसा हो जाता है. इसलिए घर में कई बच्चों को संभालना पड़ता है. हमारे दबाव को भी समझा जाना चाहिए.</p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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