राहुल गांधी के नेतृत्व में हार के बाद क्या यह कांग्रेस में ‘हाईकमान युग’ का अंत है?

<figure> <img alt="सोनिया गांधी, राहुल गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/0CEE/production/_107301330_hi054194620.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>तेलंगाना से लेकर पंजाब और राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश तक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के तौर पर पहचाने जाने वाली कांग्रेस का पराजय काल जारी है.</p><p>आम चुनावों में […]

By Prabhat Khabar Print Desk | June 8, 2019 10:58 PM

<figure> <img alt="सोनिया गांधी, राहुल गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/0CEE/production/_107301330_hi054194620.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><p>तेलंगाना से लेकर पंजाब और राजस्थान से लेकर मध्यप्रदेश तक, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से जुड़े विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी के तौर पर पहचाने जाने वाली कांग्रेस का पराजय काल जारी है.</p><p>आम चुनावों में तेलंगाना की 17 में से तीन सीटों पर क़ब्ज़ा करने वाली कांग्रेस को गुरुवार शाम तब बड़ा झटका लगा जब पार्टी के 12 विधायकों ने राज्य में कांग्रेस की विरोधी रही तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरसी) में शामिल होकर कांग्रेस से पल्ला झाड़ लिया. </p><p>साथ ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह और उनके अपने कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू के बीच विवाद भी शुक्रवार शाम सिद्धू के मंत्रालयों में अचानक हुए फेरबदल के बाद जगज़ाहिर हो गया है. </p><figure> <img alt="राहुल गांधी" src="https://c.files.bbci.co.uk/B1BC/production/_107300554_1111.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><p>अमरिंदर सिंह लोकसभा चुनावों के दौरान पंजाब के शहरी क्षेत्रों में कांग्रेस को हुए नुक़सान के लिए सिद्धू को ज़िम्मेदार मान रहे हैं जबकि सिद्धू ख़ुद को ‘परफ़ॉर्मर’ बताते हुए पार्टी को चुनावों में हार के लिए सामूहिक ज़िम्मेदारी लेने का तर्क दे रहे हैं.</p><p>पंजाब में कांग्रेस में 13 में से आठ लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी जबकि देश भर में इस राष्ट्रीय पार्टी का आँकड़ा मात्र 52 सीटों पर आकर रुक गया था. </p><p>वहीं केन्द्रीय भारत के दो महत्वपूर्ण कांग्रेस प्रशासित राज्यों, मध्य प्रदेश और राजस्थान में भी पार्टी की स्थिति दिन-ब-दिन ख़राब होती जा रही है. </p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>:</strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48487162?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कांग्रेस के लिए मोदी मंत्र की काट खोज पाएंगी सोनिया गांधी?</a></p><figure> <img alt="कांग्रेस" src="https://c.files.bbci.co.uk/472B/production/_107291281_12344.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><h3>’आपस में ही उलझता कांग्रेस नेतृत्व'</h3><p>एक ओर जहां मध्य प्रदेश के ग्वालियर बेल्ट में हावी ज्योतिरादित्य सिंधिया के गुट के समर्थकों ने अपने ही मुख्यमंत्री कमलनाथ के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है. वहीं दूसरी ओर राजस्थान में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के अपने ही उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट के ख़िलाफ़ बयान देने की वजह से अब राज्य में कांग्रेस के इन दो ध्रुवों के बीच की कलह सबके सामने आ गई है. </p><p>एक टीवी चैनल को दिए साक्षात्कार में गहलोत ने कहा कि सचिन पायलट को जोधपुर सीट पर हुई पार्टी की हार की ज़िम्मेदारी लेनी चाहिए. इस बार जोधपुर सीट से कांग्रेस के टिकट पर खड़े हुए वैभव गहलोत अशोक गहलोत के बेटे हैं. वैभव को अपने राजनीतिक करियर के पहले चुनाव में ही भारतीय जनता पार्टी के गजेंद्र सिंह शेखावत से बड़ी हार का सामना करना पड़ा. </p><p>राजस्थान में एक ओर जहाँ सभी 25 लोकसभा सीटों से कांग्रेस का सूपड़ा साफ़ हो गया वहीं मध्यप्रदेश की भी 29 में से 28 सीटों पर भी पार्टी को मुँह की खानी पड़ी. </p><p>केंद्र से राज्यों की ओर बढ़ते कांग्रेस पार्टी के इस बिखराव के बारे में बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार राधिका रामाशेषन कहती हैं कि अब कांग्रेस के संदर्भ में ‘हाईकमान’ शब्द का इस्तेमाल बंद कर दिया जाना चाहिए. </p><p>उन्होंने बीबीसी से बातचीत में कहा, &quot;आज की तारीख़ में कांग्रेस में कोई हाईकमान नहीं है. राहुल गांधी अध्यक्ष पद से इस्तीफ़े की पेशकश करके ही चुके हैं कि वो रोज़-ब-रोज़ की राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहते. सोनिया गांधी ने हालांकि संसदीय समिति की कमान संभाली हुई है लेकिन इस बात में कोई शक़ नहीं कि अब कांग्रेस में कोई केंद्रीय कमान नहीं है. कांग्रेस में ऐसी कोई केंद्रीय ताक़त नहीं है लोग जिसकी ओर वैचारिक दिशा-निर्देश के लिए देखें&quot;. </p><p>राधिक रामाशेषन कांग्रेस की प्रदेश इकाइयों में पड़ रही फूट को इसी बिखरते केंद्रीय नेतृत्व के ख़िलाफ़ सीधी चुनौती के तौर पर देखती हैं.</p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48531383?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">राज ठाकरे का एनसीपी-कांग्रेस के साथ जाना क्या आख़िरी विकल्प?</a></p><figure> <img alt="कांग्रेस" src="https://c.files.bbci.co.uk/954B/production/_107291283_1212.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Getty Images</footer> </figure><h3>’एक महीने या एक साल में ख़त्म नहीं होगी कांग्रेस'</h3><p>उन्होंने कहा,&quot;राज्यों की कांग्रेस में जो खुल्लम-खुल्ला लड़ाई दिखाई दे रही है, वो सीधे-सीधे कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व को चुनौती है. ज़ाहिर है, अमरिंदर सिंह ने सिद्धू का पोर्टफ़ोलियो सोनिया गांधी से चर्चा करके तो नहीं बदला. कर्नाटक का उदाहरण ले लीजिए. वहां कांग्रेस ने जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के साथ मिलकर सरकार बनाई और तय किया कि जेडीएस के एचडी कुमारस्वामी मुख्यमंत्री होंगे. लेकिन हुआ क्या? जैसे ही उन्होंने शपथ ली वैसे ही एक ओर से सिद्धरमैया ने परेशान करना शुरू कर दिया और दूसरी ओर से डीके शिवकुमार ने.” </p><p>राधिका रामाशेषन के मुताबिक़, ”इसका मतलब यह है कि प्रदेशों में कोई भी ‘हाईकमान’ के निर्णय का पालन नहीं करना चाहता और अब तो ये भी कहने में कोई गुरेज़ नहीं की राज्यों में सक्रिय वरिष्ठ कांग्रेस नेता केंद्र में अपने समानांतर सत्ता उभारने में लगे हुए हैं. पहली दफ़ा दिल्ली में बैठे शीर्ष नेतृत्व को अपने ही क्षेत्रीय धड़ों से खुल्लम-खुल्ला चुनौती मिल रही है&quot;. </p><p>लेकिन राधिका अब भी कांग्रेस के भविष्य को लेकर आशान्वित हैं. </p><p>वो कहती हैं, &quot;मुझे लगता है इतनी पुरानी पार्टी एक महीने या एक साल में ख़त्म नहीं होगी. यह कांग्रेस के लिए एक अंदरूनी बदलाव का समय है लेकिन गांधी परिवार को ये स्वीकार करना पड़ेगा कि पार्टी में बड़ी दिक्कतें हैं. सोनिया गांधी कांग्रेस पार्टी की सबसे लंबे वक़्त तक अध्यक्ष रहीं. उन्हें और बाक़ियों को अपनी कमियों पर चिंतन करना होगा.&quot; </p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/india-48434762?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">कांग्रेस सिर्फ़ किरदार बदलेगी या कलेवर भी?</a></p><figure> <img alt="कांग्रेस" src="https://c.files.bbci.co.uk/FFDC/production/_107300556_072c5473-90b6-42dd-9a48-0d75de193d4a.jpg" height="549" width="976" /> <footer>EPA</footer> </figure><h3>कांग्रेस का ‘शुतुरमुर्गी रवैया'</h3><p>वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई भी कांग्रेस की वर्तमान स्थिति के लिए उसके ‘ऑस्ट्रिच अप्रोच’ को ज़िम्मेदार बताते हैं.</p><p>वो कहते हैं, &quot;कांग्रेस के साथ दिक़्क़त यह है कि लोकसभा में इतनी बड़ी हार के बाद भी पार्टी में जो विमर्श और आंतरिक समीक्षा होनी चाहिए थी वह नहीं हुई है. राहुल गांधी ने ज़रूर नैतिक साहस का परिचय देते हुए इस्तीफ़ा दे दिया लेकिन उनके दिए हुए इस्तीफ़े को उन्हीं की बनाई कांग्रेस की केंद्रीय समिति ने स्वीकार नहीं किया.”</p><p>किदवई कहते हैं, ”अब 17 जून से का संसद का बजट सत्र शुरू होने वाला है. वहां भी अनिर्णय की स्थिति है क्योंकि संसदीय दल का नेता कौन होगा यह अभी तक तय नहीं हो पाया है. इस बार के सत्र में मोदी सरकार काफ़ी बड़े और महत्वपूर्ण बिल लाने वाली जिनमें ट्रिपल तलाक़ भी शामिल है. इन सब मुद्दों को लेकर कांग्रेस की कोई तैयारी नहीं है और उनकी रणनीति अस्पष्ट है&quot; </p><p>कांग्रेस के भविष्य के बारे में बात करते हुए किदवई कहते हैं, &quot;सोनिया गांधी के सामने समस्या यह है कि अगर वह नए नेता के तौर पर राहुल को मनोनीत करती हैं तो उन्हें पार्टी को एक नए सिरे से उभारना होगा. दूसरी तरफ़ शशि थरूर, मनीष तिवारी जैसे कई लोग आगे आना चाहते हैं लेकिन ऐसे में नेहरू गांधी परिवार के हाथ से नेतृत्व निकल जाएगा. बाक़ी राज्यों में भी हर जगह बिखराव और अनिर्णय की स्थिति बनी हुई है&quot;. </p><p><strong>ये भी पढ़े</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/international-48417484?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">पाकिस्तान की किस पार्टी जैसे हैं कांग्रेस के हालात</a></p><figure> <img alt="कांग्रेस" src="https://c.files.bbci.co.uk/14DFC/production/_107300558_a1ea47c8-fe3c-4eb0-9455-96893e5fcfd7.jpg" height="549" width="976" /> <footer>Reuters</footer> </figure><p>रशीद किदवई कांग्रेस के भविष्य को आने वाले दिनों में कांग्रेस के राजनीतिक लचीलेपन पर निर्भर मानते हैं.</p><p>वो कहते हैं, &quot;कांग्रेस का भविष्य इस बात पर भी निर्भर करेगा कि उनका तालमेल शरद पवार, ममता बनर्जी और जगनमोहन रेड्डी जैसे नेताओं की पार्टियों के साथ कैसा रहता है. कांग्रेस के भविष्य के सामने सबसे बड़ी अड़चन वे लोग बनकर बैठे हैं जो वफ़ादारी का चोला ओढ़कर नेहरु-गांधी परिवार को अपने बारे में कोई सही और निष्पक्ष निर्णय नहीं लेने दे रहे हैं.”</p><p>किदवई पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहार का उदाहरण देते हुए कहते हैं, ”लम्बे समय तक अटल बिहारी वाजपयी भाजपा में किसी पद पर नहीं रहे लेकिन पार्टी के मर्गदर्शक के तौर पर मौजूद रहे. ऐसी ही किसी भूमिका में सोनिया, राहुल और प्रियंका गांधी भी रह सकते हैं. लेकिन ऐसा लगता है कि परिवार से जुड़े जो लोग हैं वो अपनी ताक़त खोना नहीं चाहते इसलिए वो गांधी परिवार के पार्टी से दूर होने में भी रोड़े अटका रहे हैं.&quot; </p><p><strong>ये भी पढ़ें</strong><strong>: </strong><a href="https://www.bbc.com/hindi/social-48488489?xtor=AL-%5B73%5D-%5Bpartner%5D-%5Bprabhatkhabar.com%5D-%5Blink%5D-%5Bhindi%5D-%5Bbizdev%5D-%5Bisapi%5D">दिव्या स्पंदना ने ट्विटर छोड़ा, पर क्यों?</a></p><p><strong>(बीबीसी हिन्दी के एंड्रॉएड ऐप के लिए आप </strong><a href="https://play.google.com/store/apps/details?id=uk.co.bbc.hindi">यहां क्लिक</a><strong> कर सकते हैं. आप हमें </strong><a href="https://www.facebook.com/bbchindi">फ़ेसबुक</a><strong>, </strong><a href="https://twitter.com/BBCHindi">ट्विटर</a><strong>, </strong><a href="https://www.instagram.com/bbchindi/">इंस्टाग्राम </a><strong>और </strong><a href="https://www.youtube.com/user/bbchindi">यूट्यूब</a><strong>पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं.)</strong></p>

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