नयी किताब : ज्ञान का विमर्श

रविभूषण हमारे समय के एक ऐसे बौद्धिक चेतना संपन्न आलोचक हैं, जो चीजों को बहुत देर तक देखते हैं और बहुत दूर तक देखते हैं. इस कारण उन्होंने बहुत ज्यादा लिखा नहीं है, लेकिन जो लिखा है, वह बेहद महत्वपूर्ण है. इसी वर्ष राजकमल प्रकाशन से ‘रामविलास शर्मा का महत्व’ नाम से उनकी नयी किताब […]

By Prabhat Khabar Print Desk | May 20, 2018 2:29 AM

रविभूषण हमारे समय के एक ऐसे बौद्धिक चेतना संपन्न आलोचक हैं, जो चीजों को बहुत देर तक देखते हैं और बहुत दूर तक देखते हैं. इस कारण उन्होंने बहुत ज्यादा लिखा नहीं है, लेकिन जो लिखा है, वह बेहद महत्वपूर्ण है. इसी वर्ष राजकमल प्रकाशन से ‘रामविलास शर्मा का महत्व’ नाम से उनकी नयी किताब आयी है.

सन् 1934 से लेकर 2000 तक रामविलास शर्मा ने मौलिक लेखन, संपादन, संकलन और अनुवाद मिलाकर सौ से भी ज्यादा पुस्तकों की रचना की. विश्वनाथ त्रिपाठी जैसे आलोचकों का तो मानना है कि डॉक्टर शर्मा का लिखित साहित्य को पूरा पढ़ लेना और उस पर अपनी कोई राय बना लेना दुष्कर है. लेकिन रविभूषण ने प्रोफेसर त्रिपाठी के इस कथन को सही साबित न होने देने की पूरी कोशिश की है.
इस पुस्तक की भूमिका में ही रविभूषण ने जिस तरह से सूत्रात्मक वाक्यों का प्रयोग किया है, वह क्षमता डॉ शर्मा के पूरे लिखे साहित्य से गुजरे बगैर प्राप्त करना संभव नहीं था. एक बानगी- रामविलास जी के यहां ‘वर्ग’ महत्वपूर्ण था और सबाल्टर्न इतिहासकारों के यहां ‘समुदाय ‘. सबाल्टर्न इतिहासकार भारत में अंग्रेजों की, अंग्रेजी राज की नकारात्मक भूमिका नहीं देखते थे और रामविलास जी ने भारत में अंग्रेजी राज की कोई सकारात्मक भूमिका नहीं देखी. कुल 127 पृष्ठों में उन्होंने सबाल्टर्न इतिहासकारों पर अपने अंतिम दिनों में विचार किया. इस लेखन को उन्होंने ‘विदेशी पूंजी और अमेरिकी साम्राज्यवाद की रक्षा’ करनेवाला बताया है.
रामविलास जी को बौद्धिक समाज में आदर के साथ डॉक्टर शर्मा कहा जाता है. यह आदर उन्हें विस्तृत बौद्धिक परिसर में विचारशील विचरण के कारण प्राप्त है. वे आर्य संस्कृति, हिंदी जाति, गण भाषाओं की भूमिका, हड़प्पा संस्कृति के अनुद्घाटित पक्ष, मार्क्सवादी विचारधारा, अमेरिकी पूंजी निवेश जैसे विषयों पर लगातार विचारशील रहे.
रविभूषण ने रामविलास जी जैसे हिंदी के इकलौते साहित्य, सभ्यता और संस्कृति समीक्षक के विपुल लेखन का यहां विश्लेषण भर नहीं किया है, बल्कि हिंदी नवजागरण को लेकर वीर भारत तलवार और गिरीश मिश्र के आक्षेपों का तर्कपूर्ण निराकरण किया है. मानो रामविलास शर्मा को समझने के लिए यह एक ‘हिंदी रीडर’ तैयार किया गया है.
– मनोज मोहन
रामविलास शर्मा जी को बौद्धिक समाज में आदर के साथ डॉक्टर शर्मा कहा जाता है. यह आदर उन्हें विस्तृत बौद्धिक परिसर में विचारशील विचरण के कारण प्राप्त है.

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