आये शरबतों-शिकंजियों के दिन

इंिडयनस्वाद गर्मी में जठराग्नि मंद हो जाती है, अर्थात भूख कम लगती है, अतः स्वादवर्धक मसाले क्षुधावर्धक, पाचक, रुचिकर पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किये जाते रहे हैं. प्यास लगने पर कृत्रिम रूप से शीतल किया हुआ जल प्यास को बुझाता नहीं है, बल्कि और बढ़ाता ही है. इसलिए पहले के जमाने में देशी शरबतों […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 18, 2018 12:53 AM

इंिडयनस्वाद

गर्मी में जठराग्नि मंद हो जाती है, अर्थात भूख कम लगती है, अतः स्वादवर्धक मसाले क्षुधावर्धक, पाचक, रुचिकर पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किये जाते रहे हैं. प्यास लगने पर कृत्रिम रूप से शीतल किया हुआ जल प्यास को बुझाता नहीं है, बल्कि और बढ़ाता ही है. इसलिए पहले के जमाने में देशी शरबतों को तृष्णा निग्रह और ज्वर निरोधक तत्वों की सहायता से पौष्टिक बनाया जाता था. आज हम शीतल पेय पदार्थों के बारे में ही बता रहे हैं…

गर्मी की पदचाप सुनायी देते ही मन शीतल पदार्थों की तरफ भागने लगता है. महाकवि कालिदास अपनी ऋतुसंहार नामक कृति में विस्तार से उन वस्तुओं का वर्णन करते हैं, जो शरीर को ताप-संताप से मुक्ति दिलाते हैं- चांदनी, चंदन का लेप, शीतल जल में क्रीड़ा आदि. आयुर्वेद के ग्रंथ उन खाद्य पदार्थों की सूची प्रस्तुत करते हैं, जिनके ‘गुण’ (यूनानी तिब में तासीर) दाह-ज्वलन से राहत पहुंचाते हैं. दिलचस्प बात यह है कि मौसम के साथ ऊपर चढ़ते तापमान से ही मनुष्य पीड़ित नहीं होते- प्रियजन से वियोग, ईर्ष्या, क्रोध, ज्वर भी दैहिक ताप से कष्ट बढ़ाते हैं.

यदि हम स्वस्थ-संतुष्ट-सुखी रहना चाहते हैं, तो ग्रीष्म ऋतु में शरीर ही नहीं, बल्कि दिलो-दिमाग को भी ठंडा रखने को प्राथमिकता देने की जरूरत है. इसका अर्थ यह न निकालें कि कुछ भी ठंडा हो जाये! हमारी खान-पान परंपरा में तरह-तरह के शरबत, रायते, चटनियां आदि यही भूमिका निबाहते रहे हैं. गर्मी में जठराग्नि मंद हो जाती है अर्थात भूख कम लगती है. अतः स्वादवर्धक मसाले क्षुधावर्धक, पाचक, रुचिकर पदार्थ के रूप में इस्तेमाल किये जाते रहे हैं. प्यास लगने पर कृत्रिम रूप से शीतल किया हुआ जल प्यास को बुझाता नहीं है, बल्कि और बढ़ाता ही है. इसलिए पहले के जमाने में देशी शरबतों को तृष्णा निग्रह और ज्वर निरोधक तत्वों की सहायता से पौष्टिक बनाया जाता था.

एक जमाने में सूरज की गर्मी से पकी चीनी की चाशनी में घुले नींबू से जो शिकंजवी बनती थी, उसका मुकाबला भला कौन नींबू-पानी या लैमोनेड कर सकता है? इसी तरह कच्चे आमों से बना पन्ना या बेल और फालसे के शरबत उन सभी चीजों को एक जगह इकट्ठा कर देते थे, जिन्हें लू लगने पर आज डाॅक्टर ‘ओरल रिहाइड्रेशन थेरेपी’ का कुछ नमकीन, खट्टा-मीठा घोल वाला नुस्खा लिख देते हैं!

कुछ समय पहले तक यह शरबत घर पर ही बनाये जाते थे. आज इन्हें भी बोतलबंद बाजार से खरीद लाया जाने लगा है, जिससे संकट यह पैदा हो गया है कि खस हो या गुलाब, संदल हो या बादाम, फालसा हो या बेल अथवा ठंडाई, किसी भी स्वदेशी शीतल पेय में कुदरती का स्थान कृत्रिम रासायनिक तत्व लेने लगे हैं. जरा ध्यान से लेबल पढ़ें, तो ‘कुदरती जैसे’ रंग, स्वाद तथा गंध की मौजूदगी दर्ज मिलेगी. फिर हम यह उम्मीद कैसे कर सकते हैं कि इन शीतल पेयों का प्रभाव ऋतु के अनुकूल सेहतमंद तथा गुणकारी होगा.

समझदारी इसमें है कि हम थोड़ा श्रम करके मौसमी फलों का किफायतसारी के साथ उपयोग कर फालसा, बेल के शरबत और आम का पन्ना घर पर ही तैयार करें. शिकंजवी को भी पारंपरिक तरीके से ही बनाएं. गंगा दशहरे पर सौंफ का शरबत बनाने की रस्म है. कोई कारण नहीं कि हम इसका सेवन और दिन न करें! यही बात ठंडाई पर भी लागू होती है. होली का दिन ही क्यों इसकी तरंग में उतराने के लिए तय किया जाये.

जिन लोगों को चीनी किसी भी कारण वर्जित है वह छाछ-नमकीन लस्सी को शीतल पेय बना सकते हैं. हल्की मिठास के पुट के लिए ताजा या सूखे फलों का प्रयोग कर सकते हैं. कुछ ऐसे मिश्रण हैं, जैसे अदरक-आंवले वाले या हरी इलायची-पोदीने वाले, जिनकी तरफ हमारा ध्यान अक्सर नहीं जाता. रूह अफजा जैसे लोकप्रिय शरबतों को याद करें, जो निःसंकोच यह स्वीकार करते हैं कि फलों के साथ सेहत के लिए फायदेमंद सब्जियों का समावेश भी इसके नुस्खे में किया जाता है. देहाती इलाके में कभी प्रचलित सत्तू के शरबत तथा चावल की मांड में नीम की सूखी पत्तियों के पेयों के बारे में जानकारी बढ़ाना हमारे तन-मन को बिना चंदन के लेप के शीतल कर सकता है. तो इस बार की गर्मियों में कुछ ऐसे ही ठंड घोलें.

रोचक तथ्य

हमारी खान-पान परंपरा में तरह-तरह के शरबत, रायते, चटनियां आदि ठंडाई की भूमिका निबाहते रहे हैं.

सूरज की गर्मी से पकी चीनी की चाशनी में घुले नींबू वाली शिकंजवी का मुकाबला नींबू-पानी या लैमोनेड नहीं कर सकते.

जिनको चीनी वर्जित है, वे छाछ-नमकीन लस्सी को शीतल पेय बना सकते हैं.

सत्तू के शरबत तथा चावल की मांड में नीम की सूखी पत्तियों के पेयों के बारे में जानकारी बढ़ाना हमारे तन-मन को बिना चंदन के लेप के शीतल कर सकता है.

पुष्पेश पंत

यदि हम स्वस्थ-संतुष्ट-सुखी रहना चाहते हैं, तो ग्रीष्म ऋतु में शरीर ही नहीं, बल्कि दिलो-दिमाग को भी ठंडा रखने को प्राथमिकता देने की जरूरत है.

Next Article

Exit mobile version