न्यू इंडिया का विकल्प

नयी किताब व रिष्ठ साहित्यकार रविभूषण की राजकमल प्रकाशन से आयी किताब ‘वैकल्पिक भारत की तलाश’ एक ऐसे भारत की कल्पना करती है, जिसमें चुनावी जीत को ही जनता की जीत कतई न मान लिया जाये. चुनावी जीत वाली राजनीति में वोट बैंक महत्वपूर्ण हो जाता है और जनता के असली मुद्दे गौण हो जाते […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 18, 2018 1:30 AM

नयी किताब

व रिष्ठ साहित्यकार रविभूषण की राजकमल प्रकाशन से आयी किताब ‘वैकल्पिक भारत की तलाश’ एक ऐसे भारत की कल्पना करती है, जिसमें चुनावी जीत को ही जनता की जीत कतई न मान लिया जाये. चुनावी जीत वाली राजनीति में वोट बैंक महत्वपूर्ण हो जाता है और जनता के असली मुद्दे गौण हो जाते हैं. आजादी के सत्तर साल बाद भी अगर गरीबी खत्म नहीं हुई है और सांप्रदायिक एवं फासीवादी शक्तियां हावी होती जा रही हैं, तो जाहिर है, वास्तविक भारत की अवधारणा नष्ट होगी ही, जो बेहद चिंता की बात है. किताब ‘वैकल्पिक भारत की तलाश’ के कुल दस लेख इसी गहरी चिंता और बेचैनी के साथ लिखे गये हैं. इसके शुरुआती चार लेख तो प्रभात खबर में ही समय-समय पर छपे हुए हैं.
महात्मा गांधी की चिंता में अंतिम जन था. सांप्रदायिक शक्तियों की मृत्यु चाहनेवाले विवेकानंद ने गरीबों-दलितों की स्वतंत्रता को ही राष्ट्र की स्वतंत्रता माना. भारतीय राष्ट्रवाद के जनक दादाभाई नौरोजी ने आर्थिक राष्ट्रवाद की नींव डाली थी, जिसकी चिंता में गरीबी थी. रबींद्रनाथ ठाकुर ने मानवता को राष्ट्रवाद से ऊपर माना. रविभूषण जी की यह पुस्तक इन विभूतियों की इन्हीं चिंताओं के साथ खड़ी दिखती है.
भारत की हर महान विभूति की चिंता में गरीब जन और मानवता रही है, लेकिन देश के नेताओं की झूठी जुबान पर इन विभूतियों के नाम तो हैं, लेकिन उनकी चिंता में गरीब और मानवता कहीं नहीं है. इसलिए छद्म राष्ट्रवाद के नाम पर मानवता लहूलुहान हो रही है, गरीब भोजन के लिए तरस रहे हैं, किसान आत्महत्या कर रहे हैं, पूंजीपति देश का पैसा लेकर विदेश भाग रहे हैं और ईमानदारी का ढोंग रचनेवाले नेता न्यू इंडिया और विकास के नाम पर अपनी सरकारें बचाने में लगे हुए हैं. जाहिर है, इस परिस्थिति में यह पुस्तक ऐसे भारत की खोज को जन्म देती है, जिसमें गांधीजी के अंतिम जन को रोटी-कपड़ा-मकान मिले, नौरोजी के आर्थिक राष्ट्रवाद का निर्माण हो और गुरुदेव की मानवता का विचार छद्म राष्ट्रवाद को नष्ट कर दे.
एक लोकतांत्रिक देश के तमाम बुनियादी मूल्यों के साथ खड़ी इस पुस्तक को हम सभी को पढ़ना चाहिए, क्योंकि ‘न्यू इंडिया’ ने जो संकट खड़ा किया है, उसके लिए एक वैकल्पिक भारत की तलाश में हमें ही निकलना है, क्योंकि हमें ही वास्तविक भारत की अवधारणा को बचाये रखना है.
इस पुस्तक को हम सभी को पढ़नी चाहिए, क्योंकि न्यू इंडिया ने जो संकट खड़ा किया है, उसके लिए वैकल्पिक भारत की तलाश में हमें ही निकलना है.
वसीम अकरम

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