दर्दनाक ! ..उस रोहिंग्या लड़के को तैरना नहीं आता था, तेल के ड्रम के सहारे बर्मा से बांग्लादेश पहुंचा

ढाका : नबी हुसैन ने जिंदा रहने की अपनी सबसे बड़ी जंग एक पीले रंग के प्लास्टिक के ड्रम के सहारे जीती. रोहिंग्या मुसलमान किशोर नबी की उम्र महज 13 साल है और वह तैर भी नहीं सकता. म्यामांर में अपने गांव से भागने से पहले उसने कभी करीब से समुद्र नहीं देखा था. उसने […]

By Prabhat Khabar Print Desk | November 13, 2017 2:46 PM

ढाका : नबी हुसैन ने जिंदा रहने की अपनी सबसे बड़ी जंग एक पीले रंग के प्लास्टिक के ड्रम के सहारे जीती. रोहिंग्या मुसलमान किशोर नबी की उम्र महज 13 साल है और वह तैर भी नहीं सकता. म्यामांर में अपने गांव से भागने से पहले उसने कभी करीब से समुद्र नहीं देखा था. उसने म्यामांर से बांग्लादेश तक का समुद्र का सफर पीले रंग के प्लास्टिक के खाली ड्रम पर अपनी मजबूत पकड के सहारे लहरों को मात देकर पूरा किया.

करीब ढाई मील की इस दूरी के दौरान समुद्री लहरों के थपेड़ो के बावजूद उसने ड्रम पर अपनी पकड़ नहीं छोड़ी. म्यामांर में हिंसा की वजह से सहमे रोहिंग्या मुसलमान हताशा में अपना घरबार सब कुछ छोड़ कर वहां से निकलने की कोशिश में तैरकर पड़ोस के बांग्लादेश जाने की कोशिश कर रहे हैं. एक हफ्ते में ही तीन दर्जन से ज्यादा लड़के और युवकों ने खाने के तेल के ड्रमों का इस्तेमाल छोटी नौके के तौर पर नफ नदी को पार करने के लिये किया और शाह पोरिर द्वीप पहुंचे. धारीदार शर्ट और चेक की धोती पहने पतले-दुबले नबी ने कहा, मैं मरने को लेकर बेहद डरा हुआ था.
मुझे लगा कि यह मेरा आखिरी दिन होने वाला है. म्यामां में रोहिंग्या मुसलमान दशकों से रह रहे हैं लेकिन वहां बहुसंख्यक बौद्ध उन्हें अब भी बांग्लादेशी घुसपैठियों के तौर पर देखते हैं. सरकार उन्हें मूलभूत अधिकार भी नहीं देती और संयुक्त राष्ट्र ने उन्हें दुनिया की सबसे पीड़ित अल्पसंख्यक आबादी कहा था. अगस्त के बाद से करीब छह लाख रोहिंग्या बांग्लादेश जा चुके हैं. कमाल हुसैन (18) भी तेल के ड्रम के सहारे ही बांग्लादेश पहुंचा था.
उसने कहा, हम बेहद परेशान थे. इसलिए हमें लगा कि पानी में डूब जाना कहीं बेहतर होगा. नबी इस देश में किसी को नहीं जानता और म्यामांर में उसके माता-पिता को यह नहीं पता कि वह जीवित है. उसके चेहरे पर अब पहले वाली मुस्कान नहीं रहती और वह लोगों से आंख भी कम ही मिलाता है. नबी अपने माता-पिता की नौ संतानों में चौथे नंबर का था. म्यामांर में पहाड़ियों पर रहने वाले उसके किसान पिता पान के पत्ते उगाते थे. समस्या तब शुरू हुई. जब एक रोहिंग्या विद्रोही संगठन ने म्यामांर के सुरक्षा बलों पर हमला किया. म्यामांर के सुरक्षा बलों ने इसपर बेहद सख्त कार्रवाई की. सैन्य कार्रवाई के दौरान ढेर सारे लोग मारे गये, महिलाओं के साथ दुष्कर्म किया गया और उनके घरों व संपत्तियों को आग लगा दी गयी. नबी ने जब आखिरी बार अपने गांव को देखा था तब वहां सभी घर जलाये जा चुके थे.

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