पश्चिम बंगाल में होने वाले पंचायत चुनाव को लेकर खड़गपुर में राजनीतिक हलचल तेज

गौरतलब है कि खड़गपुर सदर सीट से पहली बार दिलीप घोष ने विधानसभा चुनाव लडा़ था. उनके खिलाफ प्रतिद्वंद्विता कर रहे थे खड़गपुर शहर के ''''रूपकार'''' दिवंगत चाचा ज्ञानसिंह सोहनपाल.

By Prabhat Khabar | April 24, 2023 10:33 AM

राज्य मे इसी वर्ष पंचायत चुनाव होना है. अगले वर्ष लोकसभा का चुनाव होगा. इन दोनों चुनावों को लेकर राजनीतिक दल के नेता-कार्यकर्ता आम जनता के बीच जाकर प्रचार कर रहे है राजनीतिक पार्टियों मे हलचल तेज हो गयी है. पश्चिम मेदिनीपुर और झाड़ग्राम जिला सहित खड़गपुर शहर के राजनीति दलों के अब पुराने व जुझारू कार्यकर्ताओं और नेताओं को अभी से ही चिंता सता रही है कि नये और दल-बदलू लोगों को जरूरत से ज्यादा अहमियत न मिले. जो पार्टी के वर्षों से वफादार समर्थक और कार्यकर्ता रहे है, उनकी अनदेखी करते हुए उन्हे पीछे न धकेल दिया जाये.

गौरतलब है कि खड़गपुर शहर के राजनीतिक मैदान मे इतिहास, भूगोल और गणित जैसे शब्द पुराने होने के साथ-साथ खड़गपुर शहरवासियों की जेहन मे भी बसे हुए हैं. गौरतलब है कि खड़गपुर सदर सीट से पहली बार दिलीप घोष ने विधानसभा चुनाव लडा़ था. उनके खिलाफ प्रतिद्वंद्विता कर रहे थे खड़गपुर शहर के ””रूपकार”” दिवंगत चाचा ज्ञानसिंह सोहनपाल. ज्ञानसिंह कई वर्षों से खड़गपुर शहर के विधायक थे. कई बार उन्होंने विधानसभा का चुनाव जीता था. चुनाव के दौरान दिलीप घोष ने लोगों से कहा था कि अगर वे शहर का इतिहास बदलने मे उनकी मदद करे, तो वह शहर का भूगोल भी बदल देगे.

चुनाव मे लोगों ने इतिहास बदला. चाचा ज्ञानसिंह सोहनपाल को चुनाव मे शिकस्त मिली. दिलीप घोष खड़गपुर सदर के विधायक बने. वर्ष 2019 मे उन्होंने लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत गये. सांसद बनने के बाद उन्होंने विधायक पद से इस्तीफा दे दिया. सांसद बनने के बाद उन्होंने रेलनगरी मे विकास कार्यों की झड़ी लगा दी. यातायात को सुगम बनाने के लिए ओवरब्रिज का निर्माण सांसद फंड की राशि से करा कर शहर का नक्शा यानी भूगोल ही बदल डाला. दूसरी ओर, तृणमूल नेता दिलीप घोष से दूरी बनाकर रहते थे और श्री घोष भी उन्हे कम महत्व देते थे.

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लेकिन खड़गपुर नगरपालिका बोर्ड गिरने के बाद प्रदीप सरकार के हटते ही सांसद दिलीप घोष ने नवनिर्वाचित चेयरमैन कल्याणी घोष से सौजन्यता मुलाकात करते हुए खड़गपुर नगरपालिका के चेयरमैन कक्ष मे तृणमूल पार्षद के साथ कुछ समय बिताया था. तृणमूल पार्षद भी बिना हिचक के सांसद से बातचीत करते हुए दिखायी पड़े थे. इसके बाद ही शहर मे इस नये समीकरण के बदले हुए गणित को लेकर अटकलों का दौर शुरू हो गया है. इस नये गणित के नये समीकरण ने शहर की राजनीति मे नेता-पार्षदों की दल बदलने की आशंका को भी काफी हद तक बढ़ा दिया है.

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