Lathmar Holi : ब्रज मंडल में क्यों खेली जाती है लट्ठमार होली, क्या है इसके पीछे की कहानी?

Lathmar Holi: नंदगांव की टोलियां जब पिचकारियां लेकर बरसाना पहुंचती हैं तो बरसाने की महिलाएं उन पर लाठियों की बरसात कर देती हैं. वहीं पुरुषों को इन लाठियों से बचकर महिलाओं को रंग से भिगोना होता है.

By Prabhat Khabar | March 15, 2022 6:40 AM

Lathmar Holi, Mathura News: ब्रजमंडल की आनंदमयी और अद्भुत होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है. इस होली को देखने के लिए देश-विदेश से लाखों की संख्या में पर्यटक ब्रज मंडल में आते हैं. वहीं, कहीं न कहीं ब्रज में होने वाली होली से कई परंपराएं और कई कहानियां जुड़ी हुई हैं. आज हम आपको बताएंगे कि ब्रज में क्यों खेली जाती है, लट्ठमार होली क्या है, इसे यह नाम किसने दिया…

बता दें, होली के दिन पूरे ब्रज में मस्ती और उमंग का माहौल रहता है. क्योंकि होली को कृष्ण और राधा के प्रेम से जोड़कर भी देखा जाता है. यहां की होली में नंदगांव के पुरुष और बरसाने की महिलाएं भाग लेती हैं. क्योंकि कृष्ण नंद गांव के थे और राधा बरसाने की थी. नंद गांव की टोलियां जब पिचकारियां लेकर बरसाना पहुंचती हैं तो बरसाने की महिलाएं उन पर लाठियों की बरसात कर देती हैं. वहीं पुरुषों को इन लाठियों से बचकर महिलाओं को रंग से भिगोना होता है.

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यहां के लोगों का यह भी कहना है कि महिलाओं द्वारा चलाई गई इन लाठियों से किसी को भी चोट नहीं लगती है. अगर कोई चोटिल हो भी जाता है तो वह अपने घाव पर मिट्टी लगाकर फिर से होली खेलने में डूब जाता है.

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क्या है परंपरा?

वहीं, अगर परंपराओं की बात करें तो मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण गोपियों को परेशान किया करते थे. कभी उनकी मटकी फोड़ देते थे तो कभी उनका माखन चोरी करके ले जाते थे, जिसके बाद बरसाना की गोपियों ने एक बार मिलकर कृष्ण को सबक सिखाने की योजना बनाई.

कृष्ण रह गए अकेले

बरसाने की गोपियों ने कृष्ण और उनके साथियों को होली पर बरसाना आने का आमंत्रण दिया, जिसके बाद कृष्ण और सभी ग्वाल बाल जब होली खेलने के लिए बरसाना पहुंचे तो उन्होंने देखा के बरसाने में गोपियां हाथों में लाठियां लेकर उनके इंतजार में खड़ी हैं. यह देख सभी ग्वाले वहां से भाग गए और श्रीकृष्ण अकेले रह गए.

श्रीकृष्ण का नाम ब्रज दूलह कैसे पड़ा?

ग्वालों के भाग जाने के बाद श्री कृष्ण गायों के झुंड में छुप गए, लेकिन फिर भी गोपियों ने श्रीकृष्ण को ढूंढ़ लिया और उनके साथ जमकर रंगों और लट्ठ की होली खेली. इसके बाद से ही श्रीकृष्ण का नाम ब्रज दूलह भी पड़ गया और उसी दिन से लठमार होली ब्रज मंडल में खेली जाने लगी.

रिपोर्ट- राघवेंद्र सिंह गहलोत, आगरा

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