Ahoi Ashtami 2022: अहोई अष्टमी 17 अक्टूबर को, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और तारा देखने का समय जानें

Ahoi Ashtami 2022: अहोई अष्टमी 17 अक्टूबर 2022 को है. यह व्रत महिलाएं संतान प्राप्ति और संतान के दीर्घायु की कामना के लिए करती हैं. इस व्रत की पूजा शाम को यानी संध्या बेला में होती है और तारों को अर्घ्य देने के बाद व्रत पूर्ण होता है. इसके बाद पारण किया जाता है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 15, 2022 11:16 AM

Ahoi Ashtami 2022: कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को अहोई अष्टमी का व्रत रखा जाता है. महिलाएं अपनी संतान के लिए इस बार यह व्रत 17 अक्टूबर को रखने जा रही हैं. इस व्रत में अहोई माता की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इस व्रत के करने से अहोई माता प्रसन्न होती हैं और नि:संतान को संतान प्राप्ति का वरदान देती हैं. इस व्रत को करने वाली महिला की संतानें दीर्घायु होती हैं. उन्हें अच्छा स्वास्थ्य और सुख समृद्धि मिलती है. यहां पढ़ें अहोई पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और तारा निकलने का समय क्या है?

अहोई अष्टमी शुभ मुहूर्त (Ahoi Ashtami 2022 Shubh Muhurat)

अहोई अष्टमी, सोमवार, 17 अक्टूबर, 2022

अहोई अष्टमी पूजा मुहूर्त, शाम 5:50 से 7:5 बजे तक

अवधि- 1 घंटे, 15 मिनट

तारा देखने का समय (Ahoi Ashtami 2022 Time For Sighting Stars)

अहोई अष्टमी के दिन शाम को तारा देखने का समय- 6 बजकर 13 मिनट पर

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अहोई अष्टमी पूजा विधि (Ahoi Ashtami Puja Vidhi)

  • माताएं, महिलाएं सूर्योदय से पूर्व स्नान करके व्रत रखने का संकल्प लें.  

  • अहोई माता की पूजा के लिए दीवार या कागज पर गेरू से अहोई माता का चित्र बनायें या आजकल मार्केट में बनी बनाई फोटो मिलती है वे ला कर घर के पूजा स्थल पर दीवार पर लगा लें.

  • अहोई अष्टमी की पूजा संध्या काल में की जाती है.

  • पूजा के लिए अहोई माता के चित्र के सामने एक चौकी रखकर उस पर जल से भरा कलश रखें.

  • रोली-चावल से अहोई माता की पूजा करें.

  • अहोई माता को भोग लगाने के लिए महिलाएं दही, आटा, चीनी या गुड़ मिला कर मीठे पुए बनाती हैं. कहीं-कहीं आटे के हलवे का भी भोग लगाया जाता है.

  • रोली से कलश पर स्वास्तिक बनायें, सात टीके लगाएं और फिर हाथों में गेहूं के सात दाने ले कर महिलाएं, माताएं अहोई व्रत कथा पढ़ें या सुनें.

  • पूजा व व्रत कथा सुनने के बाद कलश के जल से तारा देख कर अर्घ्य दें.

  • अहोई माता की विधिवत पूजा करने के बाद स्याहु की माला धारण करें. स्याहु की माला में चांदी की मोती और अहोई माता की लॉकेट होती है.

  • पूजा के बाद महिलाएं बायना निकालती हैं और अपनी सास या पंडित को देकर आशीर्वाद लेती हैं.

  • अंत में पारण करें.

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