पॉश अधिनियम के तहत छह माह के अंदर शिकायत दर्ज कराना जरूरी
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम (पॉश), 2013 के तहत शिकायत अधिकतम छह महीने के भीतर दर्ज कराना अनिवार्य है.
कोलकाता.
सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम (पॉश), 2013 के तहत शिकायत अधिकतम छह महीने के भीतर दर्ज कराना अनिवार्य है. शीर्ष न्यायालय ने कोलकाता स्थित पश्चिम बंगाल राष्ट्रीय विधि विज्ञान विश्वविद्यालय के कुलपति के खिलाफ एक महिला संकाय की याचिका को समय-सीमा समाप्त होने के कारण खारिज करने के फैसले को बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ कलकत्ता हाइकोर्ट के फैसले के खिलाफ महिला संकाय की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने कहा : हमारा मानना है कि हाइकोर्ट की खंडपीठ ने विश्वविद्यालय की स्थानीय शिकायत समिति (एलसीसी) के उस फैसले को बहाल करने में कोई कानूनी त्रुटि नहीं की है, जिसमें कहा गया था कि अपीलकर्ता की शिकायत समय-सीमा पार कर चुकी है और खारिज किये जाने योग्य है.हालांकि, पीठ ने कहा कि कुलपति के कथित यौन उत्पीड़न के अपराध को माफ किया जा सकता है, लेकिन उनकी करतूत को भुलाया नहीं जा सकता. जस्टिस पंकज मिथल ने 15 पृष्ठों के फैसले में लिखा है : गलती करने वाले को माफ करना उचित है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए. अपीलकर्ता के खिलाफ जो गलती हुई है, उसकी तकनीकी आधार पर जांच नहीं की जा सकती. लेकिन उसे भूलना नहीं चाहिए. पीठ ने निर्देश दिया कि इस फैसले को कुलपति के बायोडाटा का हिस्सा बनाया जायेगा.
एलसीसी ने महिला संकाय की शिकायत समय-सीमा के कारण खारिज कर दी थी. महिला संकाय के साथ यौन उत्पीड़न की आखिरी कथित घटना अप्रैल 2023 में हुई थी, जबकि उन्होंने 26 दिसंबर, 2023 को शिकायत दर्ज करायी थी. अदालत ने कहा कि यह न केवल तीन महीने की निर्धारित समय-सीमा से परे था, बल्कि छह महीने की विस्तार योग्य समय-सीमा से भी अधिक था.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
