बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम के खिलाफ अर्जी खारिज

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के कोंटाई रहमानिया हाइ मदरसा की प्रबंध समिति द्वारा दायर याचिका को जुर्माने के साथ खारिज किया. इस याचिका में पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 को बरकरार रखने वाले अपने 2020 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गयी थी.

By BIJAY KUMAR | September 16, 2025 11:21 PM

कोलकाता.

सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल के कोंटाई रहमानिया हाइ मदरसा की प्रबंध समिति द्वारा दायर याचिका को जुर्माने के साथ खारिज किया. इस याचिका में पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 को बरकरार रखने वाले अपने 2020 के फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गयी थी. शीर्ष अदालत के जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस ऑगस्टाइन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने कहा कि याचिका पूरी तरह से गलत धारणा वाली है. यह कहते हुए खंडपीठ ने याचिकाकर्ता पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया.अदालत ने कहा कि रिट याचिका पूरी तरह से गलत धारणा वाली है, इसलिए इसे एक लख रुपये के जुर्माने के साथ खारिज किया जाता है. याचिकाकर्ता ने वसंत दुपारे बनाम भारत संघ मामले में हाल ही में दिये गये फैसले के आलोक में अदालत से अपने 2020 के फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था. याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि यह सिद्धांत मदरसा सेवा आयोग मामले पर भी लागू होना चाहिए.

याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि दुपारे का फैसला मृत्युदंड से जुड़े एक मामले में है, जहां याचिका में पहले की बरी या दोषसिद्धि की पुनर्विचार की मांग नहीं की गयी. अदालत ने कहा कि दुपारे का फैसला मदरसा सेवा आयोग मामले पर लागू नहीं हो सकता, जिस पर 1966 के नरेश मिराजकर बनाम महाराष्ट्र राज्य के संविधान पीठ के फैसले द्वारा रोक लगायी गयी.

कोर्ट ने माना, अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों की नियुक्ति का पूर्ण और बिना शर्त अधिकार नहीं

सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों की नियुक्ति का पूर्ण और बिना शर्त अधिकार नहीं है. टीएमए पाइ फाउंडेशन मामले और अन्य निर्णयों का हवाला देते हुए अदालत ने कहा कि शैक्षिक उत्कृष्टता सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय हित में बनाये गये नियम अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक संस्थानों पर समान रूप से लागू हो सकते हैं. इसने यह भी कहा कि धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षकों के चयन में व्यापक स्वतंत्रता हो सकती है. हालांकि, धर्मनिरपेक्ष विषय पढ़ाने वाले संस्थानों को उत्कृष्टता प्राप्त करने के लिए योग्यता को प्राथमिकता देनी चाहिए.

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