अग्नाशय से दुर्लभ ट्यूमर हटा पीजी के डॉक्टरों ने रचा इतिहास
एसएसकेएम (पीजी) अस्पताल के डॉक्टरों ने एक महिला के अग्नाशय (पैंक्रियाज) से दो किलोग्राम वजनी दुर्लभ ट्यूमर को सफलतापूर्वक हटा कर चिकित्सा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. करीब 10 घंटे चली इस जटिल सर्जरी में डॉक्टरों की टीम ने न केवल मरीज की जान बचायी, बल्कि एक मिसाल भी कायम की.
कोलकाता.
एसएसकेएम (पीजी) अस्पताल के डॉक्टरों ने एक महिला के अग्नाशय (पैंक्रियाज) से दो किलोग्राम वजनी दुर्लभ ट्यूमर को सफलतापूर्वक हटा कर चिकित्सा क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है. करीब 10 घंटे चली इस जटिल सर्जरी में डॉक्टरों की टीम ने न केवल मरीज की जान बचायी, बल्कि एक मिसाल भी कायम की. जानकारी के अनुसार, यह ट्यूमर अग्नाशय के शीर्ष भाग में था, जिसे चिकित्सकीय भाषा में अग्नाशय का ठोस स्यूडोपैपिलरी एपिथीलियल नियोप्लाज्म (एसपीईएन) कहा जाता है. यह स्थिति अत्यंत दुर्लभ होती है और आम तौर पर मध्यम आयु वर्ग की महिलाओं में पायी जाती है. हालांकि किसी भी उम्र और लिंग के व्यक्ति में हो सकती है.रिकॉर्ड आकार का ट्यूमर : डॉक्टरों के अनुसार, इस ट्यूमर का आकार और वजन हाल के वर्षों में अपने आप में एक रिकॉर्ड है. इसकी लंबाई लगभग 20 सेंटीमीटर और चौड़ाई 16 सेंटीमीटर थी. यह ऑपरेशन 12 सितंबर को गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल सर्जरी विभाग के डॉ तुहिनशुभ्र मंडल के नेतृत्व में किया गया. टीम में डॉ सुमन दास, डॉ हेमव साहा, डॉ स्वप्निल सेन, प्रो डॉ तापस घोष, डॉ सैकत भट्टाचार्य और डॉ दिब्येंदु गरैड शामिल थे.व्हिपल ऑपरेशन के जरिये निकाला गया ट्यूमर : सर्जरी को व्हिपल ऑपरेशन के तहत अंजाम दिया गया, जो अग्न्याशय के शीर्ष हिस्से में स्थित ट्यूमर को हटाने के लिए जानी जाती है और इसे सबसे जटिल शल्यक्रियाओं में से एक माना जाता है. मरीज की स्थिति गंभीर थी, लेकिन डॉक्टरों की सूझबूझ और विशेषज्ञता के चलते अब उसकी हालत स्थिर बतायी जा रही है.
देशभर में अपने तरह की पहली सर्जरीडॉक्टरों का दावा है कि इस प्रकार का ट्यूमर और उसका सफल ऑपरेशन न केवल बंगाल बल्कि पूरे देश में अपने आप में पहला मामला है. यह सर्जरी चिकित्सा जगत में दुनिया की सबसे बड़ी और चुनौतीपूर्ण सर्जरियों में से एक मानी जा रही है. मरीज, जो राज्य के मुर्शिदाबाद जिले के बेलडांगा की रहने वाली है, पेट दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल आयी थी. जांच में ट्यूमर का पता चला और फिर सर्जरी का निर्णय लिया गया. डॉक्टरों ने यह भी स्वीकार किया कि इस सर्जरी में जान जाने का खतरा था, लेकिन उन्होंने सफलतापूर्वक मरीज की जान बचा ली.
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