कर में छूट व प्रोत्साहन राशि बंद करने का विरोध

राज्य सरकार द्वारा कर में छूट व प्रोत्साहन राशि बंद करने के फैसले को चुनौती देते हुए कई बड़ी निजी कंपनियों ने कलकत्ता हाइकोर्ट का रुख किया है. राज्य सरकार ने एक ऐसा कानून पास किया है, जिससे उद्योगों पर व्यापक प्रभाव पड़ने की आशंका है.

By BIJAY KUMAR | September 17, 2025 10:38 PM

कोलकाता.

राज्य सरकार द्वारा कर में छूट व प्रोत्साहन राशि बंद करने के फैसले को चुनौती देते हुए कई बड़ी निजी कंपनियों ने कलकत्ता हाइकोर्ट का रुख किया है. राज्य सरकार ने एक ऐसा कानून पास किया है, जिससे उद्योगों पर व्यापक प्रभाव पड़ने की आशंका है. कंपनियों ने इस कानून को असंवैधानिक बताया है. उनका आरोप है कि सरकार ने कानून बनाया अभी है, लेकिन इसे लागू कर रही है 32 साल पहले से यानी रेट्रोस्पेक्टिव, जो पूरी तरह से असंवैधानिक है.किस कानून को लेकर हुआ विवाद

राज्य सरकार ने हाल ही में एक बिल पास किया है, जो कंपनियों को मिलने वाले अनुदान और प्रोत्साहन योजनाओं को खत्म करता है. दो अप्रैल को अधिसूचित करने से पहले इस कानून को विधानसभा में भी पास किया जा चुका है. यह एक्ट कंपनियों को मिलने वाले सभी प्रोत्साहन को न सिर्फ खत्म करता है, बल्कि इसे साल 1993 से ही खत्म मान रहा है और तब से अब तक मिले सभी तरह की छूट और प्रोत्साहनों को वापस लौटाना होगा. इसका मतलब है कि पिछले 32 साल में जितनी भी स्कीम के तहत कंपनियों को छूट मिली होगी, सब सरकार को वापस लौटानी पड़ेगी.

राज्य सरकार के इस कानून के खिलाफ कई कंपनियों ने कलकत्ता हाइकोर्ट में याचिका दायर की है. सभी कंपनियों ने इसके खिलाफ अलग-अलग अपील दाखिल की है, लेकिन हाइकोर्ट इन सभी पर सात नवंबर को सुनवाई करेगा. कंपनियों का कहना है कि यह कानून असंवैधानिक है और प्रावधान यह कहता है कि इसे पूरी तरह निरस्त किया जाये.

क्या है कानून का मकसद : इस कानून को पारित करते समय सरकार ने कहा कि इसका मकसद राज्य में चल रहीं तमाम कल्याणकारी योजनाओं को वित्तीय मदद उपलब्ध कराना है. राज्य के सामाजिक रूप से पिछड़े और आर्थिक रूप से हाशिये पर रहने वालों को इसके जरिये वित्तीय मदद मुहैया करायी जायेगी. राज्य सरकार का कहना है कि कंपनियों को छूट और रियायत देने के बजाय आम आदमी को इसका फायदा दिलाना ही इस कानून का मकसद है.

राज्य सरकार के अधिकारियों के अनुसार, पहले कंपनियों को टैक्स, भूमि अधिग्रहण, बिजली, ब्याज के भुगतान आदि पर सब्सिडी मिलती थी. अब प्रदेश में औद्योगिक इकाइयों को कोई भी प्रोत्साहन, वित्तीय लाभ, सब्सिडी, ब्याज माफी, शुल्क या टैक्स में छूट आदि नहीं दी जायेगी. अब किसी भी कंपनी को अपने किसी भी तरह के बकाया राशि पर दावा करने का कोई अधिकार नहीं रहेगा.क्या कहा था सीएम ने : विधानसभा में इस विधेयक पर बहस के दौरान, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा था कि ये प्रोत्साहन योजनाएं वर्ष 2001-02 में लागू हुई थीं, जब राज्य में वाममोर्चा का शासन था और दो दशक पहले किये गये वादों को अब पूरा करना मुश्किल हो रहा है. उन्होंने कहा था कि माकपा के कार्यकाल में अधिग्रहित भूमि के मामलों में भी, हमारी सरकार अभी भी मुआवजा दे रही है. इससे राज्य के राजस्व को काफी नुकसान हो रहा है.

राज्य सरकार ने नयी नीति लाने का किया था वादा : उद्योग मामलों के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि बिल पास होने के बाद कंपनियों ने इससे कारोबार में समस्या आने की बात कही थी. सरकार ने उन्हें बताया कि वह इस समस्या का हल करने के लिए नयी औद्योगिक नीति बना रही है, लेकिन इससे पहले कई कंपनियां कोर्ट चली गयीं. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार उद्योगों पर पैसे खर्च करने के बजाय कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता देने पर जोर देती है.

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