मूकदर्शक बन कर नहीं रह सकती केंद्र या राज्य सरकार : सुप्रीम कोर्ट

राज्य सरकार ने समय पर आवासीय परियोजनाओं को पूरा नहीं करने वालीं रियल एस्टेट कंपनियों की नकेल कसने की तैयारी में जुट गयी है. राज्य सचिवालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य के आवासन विभाग के अंतर्गत एक कमेटी का गठन किया जा रहा है, जो इन शिकायतों के खिलाफ कार्रवाई करेगी.

By BIJAY KUMAR | September 22, 2025 10:55 PM

कोलकाता.

राज्य सरकार ने समय पर आवासीय परियोजनाओं को पूरा नहीं करने वालीं रियल एस्टेट कंपनियों की नकेल कसने की तैयारी में जुट गयी है. राज्य सचिवालय के सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य के आवासन विभाग के अंतर्गत एक कमेटी का गठन किया जा रहा है, जो इन शिकायतों के खिलाफ कार्रवाई करेगी. इसके साथ ही उपभोक्ताओं से कहा गया है कि वे इसे लेकर पश्चिम बंगाल रियल एस्टेट अथॉरिटी में शिकायत दर्ज करा सकते हैं, जिससे इसका समाधान निकल सकता है. बताया गया है कि आवासीय प्रोजेक्ट का काम समय पर पूरा नहीं होने के कारण मध्यम वर्ग से लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. पश्चिम बंगाल सहित पूरे देश में मध्यम वर्गीय लोग महीनों तक ईएमआइ चुकाने के बाद भी अपने सिर पर छत का इंतजाम नहीं कर पा रहे हैं. कई मामलों में देखा गया है कि लोग बैंक का ईएमआइ तो जमा कर रहे हैं, लेकिन उन्हें अब तक फ्लैट नहीं मिला है. देश की सर्वोच्च अदालत ने इस मुद्दे पर चिंता व्यक्त की है. सर्वोच्च न्यायालय ने मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया है कि केंद्र या राज्य सरकार मूकदर्शक बन कर नहीं रह सकती.

इस संबंध में महानगर की एक रियल एस्टेट कंपनी का कहना है कि देश भर में कई रियल एस्टेट परियोजनाएं पहले ही दिवालियापन की कार्यवाही में फंस चुकी हैं. परिणामस्वरूप, लाखों परिवार अपने सपनों के घर से वंचित हो रहे हैं. कोलकाता नगर निगम के बिल्डिंग विभाग के अधिकारी ने कहा कि इस संबंध में निगम के पास कार्रवाई करने के लिए कोई कानून या नियम नहीं है. यदि राज्य सरकार चाहे, तो नगरपालिका व शहरी विकास विभाग कानून में बदलाव कर नगरपालिकाओं को अतिरिक्त जिम्मेदारी प्रदान कर सकता है.

सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति आर महादेवन की खंडपीठ ने कहा कि आवास का अधिकार केवल दो पक्षों के बीच कांट्रैक्ट मामला नहीं है. यह नागरिक के मौलिक अधिकार का हिस्सा है. क्योंकि, आवास का सीधा संबंध जीवन से है, इसलिए, घर खरीदारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक संवैधानिक दायित्व है.

देश भर में असंख्य मध्यम वर्गीय परिवारों का जीवन भर की बचत, कर्ज और मासिक ईएमआइ से बनाये गये सपनों के घर का सपना, अधूरे भवन की ईंटों, रेत और सीमेंट में अटक कर रह गया है. सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र व राज्य सरकारों से इस संबंध में कार्रवाई करने को कहा है.

सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने केंद्र सरकार को नया कॉरपोरेट निकाय गठित करने को कहा

खंडपीठ ने कहा कि सरकार को ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए कि रद्द या बीच में ही रोक दी गयी परियोजनाओं को नये सिरे से धन मुहैया कराया जा सके. यदि आवश्यक हो, तो उनका अधिग्रहण और पूरा करने की प्रक्रिया भी शुरू की जानी चाहिए. न्यायालय के अनुसार, परियोजनाओं का समय पर पूरा होना भारत की शहरी नीति के स्तंभों में से एक होना चाहिए. इसके लिए एक मजबूत ढांचे की आवश्यकता है, ताकि आवास निर्माण कंपनियां खरीदारों को धोखा या शोषण न कर सकें. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार के तर्ज पर राष्ट्रीय संपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी लिमिटेड एक नया कॉरपोरेट निकाय बनाने का प्रस्ताव दिया. खंडपीठ ने कहा कि पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल पर ऐसा निकाय बनाया जा सकता है, जिसका काम बंद पड़ीं परियोजनाओं की पहचान करना, उनका अधिग्रहण करना और अंततः तैयार घरों को खरीदारों को सौंपना होगा.

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