मां की संवेदना से साहित्य विहार कर रहे हैं डॉ मिश्र

कोलकाता: अगर आज साहित्य के समावेशी क्षेत्र में कुछ भी रच-गढ़ पाया है, तो उसके मूल में निश्चय ही मेरी मां से विरासत में मिली संवेदना है.... सच कहूं तो जो ग्रंथ इस अकिंचन पर रचा गया है, उसमें मेरा अवदान कुछ भी नहीं है. यह तो आप सब उदारमना सुधीजनों का प्यार-सम्मान व स्नेह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 7, 2014 1:59 AM

कोलकाता: अगर आज साहित्य के समावेशी क्षेत्र में कुछ भी रच-गढ़ पाया है, तो उसके मूल में निश्चय ही मेरी मां से विरासत में मिली संवेदना है.

सच कहूं तो जो ग्रंथ इस अकिंचन पर रचा गया है, उसमें मेरा अवदान कुछ भी नहीं है. यह तो आप सब उदारमना सुधीजनों का प्यार-सम्मान व स्नेह है, जो ऐसे व्यक्ति को सारस्वत सम्मान के योग्य समझता है. ऐसा नारायण की कृपा के बिना असंभव है.

नारायण से यही कामना है कि आप सब के प्रेम की यह मूल्यवान संपदा आजीवन अक्षय-अक्षुण्ण बनी रहे. ये विचार कोलकाता समेत देशभर में ललित निबंधकार के रूप में विख्यात और ‘कल्पतरु की उत्सवलीला’ नामक बहुप्रशंसित ग्रंथ के लिए भारतीय ज्ञानपीठ के प्रतिष्ठित मूर्तिदेवी पुरस्कार विजेता मूर्धन्य साहित्यकार डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र ने रखे. 82 वर्ष के हुए डॉ मिश्र के सम्मान में यहां के भारतीय भाषा परिषद में आयोजित गोष्ठी में विशिष्ट वक्ताओं की प्रशस्ति और अभिनंदन से डॉ मिश्र अभिभूत दिखे. मौके पर डॉ मिश्र पर केंद्रित आकलन ग्रंथ ‘गांव की कलम’ के संशोधित-परिवर्धित दूसरे संस्करण का प्रसिद्ध रंगकर्मी व साहित्यकार विमल लाठ ने विमोचन किया.

श्री लाठ ने कहा कि डॉ मिश्र का मन युवा है, उसी भाव से वह साहित्य रचते हैं. दक्षिणोश्वर में मां काली के भक्त रामकृष्ण परमहंस पर रचे अपने ग्रंथ कल्पतरु की उत्सवलीला की भाषा में भोजपुरी का पुट देकर हिंदी साहित्य को डॉ मिश्र ने समृद्ध किया है. मौके पर डॉ वसुमति डागा ने माना कि डॉ मिश्र का समग्र शोध-प्रबंध उनकी तपस्या का परिचायक है. पते की बात यह है कि जब भी साहित्य में कृष्ण बिहारी मिश्र गांव की बात करते हैं, तो आशय समग्र भारत से होता है. इसलिए उनका पूरा साहित्य आनेवाली पीढ़ियों के लिए सकारात्मक ऊर्जा व प्रेरणा का स्रोत है. उक्त अवसर पर गोरखपुर से आये शिक्षाविद व रामकृष्ण विवेकानंद मिशन से जुड़े शिक्षाविद डॉ वेद प्रकाश पांडेय ने बुढ़ापे में भी डॉ मिश्र के व्यक्तित्व से टपकते सौंदर्य को रेखांकित करते हुए किसी का एक शेर सुनाया – शायरी दिल के जज़्बात का इज़हार है, दिल अगर बेटा है तो शायरी बेकार है.’ इसका मतलब हुआ कि अगर डॉ मिश्र दिल से जवान ना होते, ऐसी साहित्य साधना ना कर पाते. मौके पर पटना से आये वरिष्ठ पत्रकार स्वयंप्रकाश ने भी अपने उदगार व्यक्त किये. डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र सम्मान समिति के तत्वावधान में आयोजित उक्त गोष्ठी व लोकार्पण समारोह का संचालन जाने-माने साहित्यकार-शायर प्रमोद शाह ‘नफीस’ ने किया. कार्यक्रम के आरंभ में पत्रकार ओम प्रकाश मिश्र ने ‘कल्पतरु की उत्सवलीला’ पर चंपालाल द्वारा रचे गये एक गीत का भावपूर्ण गायन किया. इसके बोल थे : कभी किसी मंगलमय क्षण में नया विचार कोई आया होगा, पुण्यभरा एक पावन सपना नैनों में मुसकाया होगा, दक्षिणोश्वर की धरा पर मैया काली के आंगन में परमहंस की लीलाओं का नवसंसार रचाया होगा. ऐसा लगता है जैसे हम हर बैठक में खुद शामिल थे और ठाकुर ने सबका परिचय हमसे स्वयं कराया होगा..

समारोह में कोलकाता व आस-पास के जाने-माने साहित्यकार, बुद्धिजीवी व पत्रकार मौजूद थे. मौके पर डॉ मिश्र को उनके 82वें जन्म दिन पर भेंट स्वरूप डॉ वसुंधरा मिश्र ने स्वरचित कविता ’कतरे-सी धूप’ की आवृत्ति की. मौके पर नम्पा फाउंडेशन के चेयरमैन मनोज कुमार सिंह ने डॉ मिश्र को शॉल ओढ़ाया और सम्मान-पत्र भेंट किया. उक्त समारोह के गणमान्य अतिथियों में प्रभात खबर, कोलकाता के संपादक तारकेश्वर मिश्र, यूनिट हेड राकेश सिन्हा व सुशील सिंह भी मौजूद थे. इनके अलावा नंदलाल शाह, रतन शाह, प्रभाकर चतुर्वेदी, कवि नवल, रामनाथ महतो, कृपा शंकर चौबे, प्रशांत अरोड़ा, सुरेश शॉ इत्यादि उपस्थित थे.