बंगाल में खिला कमल, माकपा पहुंची हाशिये पर

।। अजय विद्यार्थी।।कोलकाताः पश्चिम बंगाल विधानसभा उपचुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया मोड़ ले कर आया है. लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर बढ़त के बावजूद भाजपा एक भी सीट हासिल करने में असफल रही थी, लेकिन विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य ने तृणमूल कांग्रेस के दीपेंदु विश्वास को 1742 मत […]

By Prabhat Khabar Print Desk | September 16, 2014 2:19 PM

।। अजय विद्यार्थी।।
कोलकाताः पश्चिम बंगाल विधानसभा उपचुनाव पश्चिम बंगाल की राजनीति में नया मोड़ ले कर आया है. लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर बढ़त के बावजूद भाजपा एक भी सीट हासिल करने में असफल रही थी, लेकिन विधानसभा उपचुनाव में भाजपा के उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य ने तृणमूल कांग्रेस के दीपेंदु विश्वास को 1742 मत से पराजित कर जीत हासिल की, वहीं, कोलकाता के चौरंगी विधानसभा सीट पर तृणमूल कांग्रेस की उम्मीदवार नैना बंद्योपाध्याय ने भाजपा के उम्मीदवार रीतेश तिवारी को 14344 मत से पराजित कर जीत हासिल की. यानी एक सीट को भाजपा सीधी जीती, तो दूसरे में प्रमुख प्रतिद्वंद्वी के रूप में उभरी.

इस विधानसभा उपचुनाव परिणाम पश्चिम बंगाल की राजनीतिक के लिए नया संकेत लेकर आया है. लगभग दो दशक के बाद भाजपा का राज्य में कमल खिला है. 1999 में दक्षिण 24 परगना के अशोकनगर ने भाजपा के विधायक बादल भट्टाचार्य विजयी हुए थे. उनके बाद से भाजपा का कोई भी प्रतिनिधि पश्चिम बंगाल के विधानसभा में नहीं था, लगभग दो दशक के बाद पश्चिम बंगाल के विधानसभा में भाजपा का एक प्रतिनिधि होगा. दूसरी ओर, इस विधानसभा उपचुनाव में माकपा के उम्मीदवार मिलान चक्रवर्ती तीसरे स्थान और चौरंगी विधानसभा उपचुनाव में माकपा के उम्मीदवार फैयाज अहमद खान चौथे स्थान पर रहे. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 2011 के विधानसभा चुनाव में 34 वर्षो के शासन के बाद माकपा तृणमूल कांग्रेस से पराजित हुई थी.
पंचायत चुनाव, नगरपालिका चुनाव तथा लोकसभा चुनाव में भी माकपा पराजय से उबर नहीं पायी. माकपा के प्रतिनिधित्व दिनों-दिन घटता जा रहा है, लेकिन दो विधानसभा उपचुनाव के परिणाम ने साफ कर दिया कि माकपा अब हाशिये पर जा रही है. माकपा के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर नहीं रह कर तीसरे और चौथे स्थान पर रह रहे हैं. यानी विरोधी दल का तमगा भी माकपा से खोता नजर आ रहा है. माकपा के इस वोट बैंक में किसी न किसी रूप में भाजपा अपनी पैठ बना रही है. बंगाल की राजनीति में भाजपा का घुसपैठ की शुरुआत हो रही है. यहां यह उल्लेख करना जरूरी होगा कि 2011 के विधानसभा चुनाव में बशीरहाट दक्षिण की सीट माकपा के नारायण बंद्योपाध्याय ने जीती था.
उनकी मृत्यु के बाद यह विधानसभा उपचुनाव हुआ था. साफ है 2011 में माकपा की जीती सीट 2014 विधासनभा उपचुनाव में भाजपा ने जीत लिया. वहीं, 2011 के विधानसभा चुनाव में विजय के बाद तृणमूल कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में 34 सीटों पर कब्जा जमा कर जीत का सिलसिला जारी रखा है, लेकिन विधानसभा उपचुनाव के परिणाम ने राज्य से तृणमूल का तिलिस्म टूटने का संकेत मिल रहा है. सारधा चिटफंड घोटाले में तृणमूल नेताओं के मिली भगत का आरोप कहीं न कहीं आम लोगों के बीच बेचैनी पैदा कर रहा है. हालांकि 2011 के विधानसभा चुनाव में चौरंगी विधानसभा सीट तृणमूल कांग्रेस की शिखा मित्र ने जीता, लेकिन तृणमूल छोड़ कर कांग्रेस के जाने के बाद तृणमूल से इस्तीफा दे दिया था.
इसी इस्तीफा के कारण यह उपचुनाव हुआ था, हालांकि तृणमूल अपनी सीट बरकरार रखी है, लेकिन इस सीट पर भी भाजपा प्रतिद्वंद्वी शक्ति के रूप में उभरी है. उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव 2014 में तृणमूल कांग्रेस को पश्चिम बंगाल की 42 में 34 सीटें मिलीं, जबकि भाजपा को दो, माकपा को दो व कांग्रेस को चार सीटें मिली थीं. उस चुनाव में भाजपा लोकसभा चुनाव में बंगाल में दो ही सीटें जीत सकी, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से वह आठ सीटों पर दूसरे नंबर पर रही थी.
यानी अगर उन सीटों पर वोटों का थोड़ा और झुकाव उसके पक्ष में होता तो वह राज्य में वाम दल व कांग्रेस को किनारे कर राज्य की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी की हैसियत पा लेती. लोकसभा में भाजपा का वोट प्रतिशत पिछले लोकसभा चुनाव में छह फीसदी और विधानसभा चुनाव में चार फीसदी से बढ़ कर 16.8 फीसदी हो गया था, लेकिन अब विधानसभा उप चुनाव के परिणाम भाजपा के बढ़ते हैसियत की ओर से संकेत कर रही है.

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