भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया की सदस्यता पर मंडराया खतरा, फैसले के खिलाफ करेंगे अपील, अब तक इनका खत्म हुआ करियर

यूपी में अब भाजपा सांसद रामशंकर कठेरिया की लोकसभा सदस्यता रद्द की जा सकती है. सांसद को दो साल की सजा सुनाई गई है. उन्होंने मामले को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा कि उन पर लगाए आरोपों से स्वयं वादी ने इनकार कर दिया था. इसके अलावा गवाहों ने भी उनकी मौजूदगी से मना किया. इसके बावजूद सजा सुनाई गई है.

By Sanjay Singh | August 5, 2023 6:40 PM

UP Poliotics: उत्तर प्रदेश के इटावा (Etawah) से भाजपा (BJP) सांसद रामशंकर कठेरिया (Ram Shankar Katheria) को 12 वर्ष पुराने मामले में कोर्ट ने सजा सुनाई है. एमपी-एमएलए कोर्ट ने कठेरिया को धारा 147 और 323 के तहत दोषी करार दिया है. इस मामले में कोर्ट ने दो साल की सजा सुनाई. साथ ही 50 हजार का जुर्माना लगाया है. ऐसे में राम शंकर कठेरिया की सांसद सदस्यता समाप्त हो सकती है.

रामशंकर कठेरिया बोले- कोर्ट के फैसले का करेंगे सम्मान

सजा मिलने पर भाजपा सांसद राम शंकर कठेरिया ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि वह माननीय कोर्ट के फैसले का सम्मान करता हैं और इसे स्वीकार करते हैं. उन्होंने कहा कि इसके साथ ही वह अपने कानूनी अधिकार का प्रयोग करते हुए आगे अपील करेंगे.

रामशंकर कठेरिया आगरा से भी सांसद रह चुके हैं. वह पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री एवं पूर्व एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष और वर्तमान में यूपी के इटावा से सांसद हैं. शनिवार को उन्हें कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद इटावा से लेकर आगरा में इसकी काफी चर्चा हो रही है. इसके साथ ही यूपी का सियासत में एक और माननीय की सदस्यता रद्द होने का खतरा मंडराने लगा है.

अफजाल अंसारी की मई में रद्द हो चुकी है सदस्यता

उत्तर प्रदेश में ऐसे मामलों की बात करें तो विगत मई माह में बहुजन समाज पार्टी के सांसद अफजाल अंसारी की गाजीपुर के एमपी एमएलए कोर्ट से सजा सुनाए जाने के बाद सदस्यता रद्द की जा चुकी है. अफजाल अंसारी ने भी इसके खिलाफ कोर्ट में अपील दायर की है. इससे पहले यूपी की अमेठी से सांसद रह चुके राहुल गांधी की भी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई थी. हालांकि अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले से राहत मिली है.

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सदस्यता निलंबन को लेकर ये है नियम

सांसद की सदस्यता के निलंबन को लेकर जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 के तहत नियम हैं. इसके तहत धारा (1) और (2) में प्रावधान है, जिसके मुताबिक, कोई सांसद या विधायक दुष्कर्म, हत्या, भाषा या फिर धर्म के आधार पर सामाज में शत्रुता पैदा करता है या फिर संविधान को अपमानित करने के उद्देश्य से किसी भी आपराधिक षड्यंत्र में शामिल होता है या फिर किसी आतंकवादी गतिविधियों में शामिल होता है, ऐसी स्थिति में उस सांसद या विधायक की सदस्यता को रद्द कर दिया जाएगा.

इसके साथ ही धारा(3) के मुताबिक, यदि किसी सांसद या विधायक को किसी आपराधिक मामले में दोषी मानते हुए दो वर्ष से अधिक की सजा हो, तब भी उसकी सदस्या को रद्द किया जा सकता है. साथ ही अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने पर भी प्रतिबंध होता है.

इस तरह सदस्यता बचाने का विकल्प है मौजूद

सांसद या विधायक इन मामलों में अपनी सदस्यता को बचा सकते हैं. यह तब हो सकता है, जब सजा किसी निचली अदालत से मिली है, तब मामले को उच्च या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है. यदि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट की ओर से सजा पर रोक लगती है, तब सदस्यता को बचाया जा सकता है. हाल ही में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी की भी सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली है.

आजम खान

यूपी की​ सियासत में कानून का चाबुक चलने के बाद माननीय की सदस्यता जाने का अनोखा मामला रामुपर से रहा. जहां आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम ने कोर्ट के फैसले के बाद अपनी विधानसभा सदस्यता गंवाई. आजम खान को साल 2019 के हेट स्पीच मामले में बीते वर्ष रामपुर की एमपी-एमएलए कोर्ट ने दोषी करार दिया. उन्हें तीन साल की सजा सुनाई गई. इसके बाद विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने उनकी सदस्यता रद्द कर दी. आजम खान ने विधानसभा चुनाव में जेल में रहते हुए रामपुर सदर से जीत दर्ज की थी. इस सीट पर चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था. बाद में हुए लोकसभा और विधानसभा उपचुनाव में ये दोनों सीटें भाजपा के खाते में चली गईं.

विक्रम सैनी

मुजफ्फरनगर की खतौली से विधायक रहे विक्रम सैनी को भी सजा के कारण अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी. विक्रम 2013 में दंगे में शामिल होने के दोषी पाए गए थे. तब वह जिला पंचायत सदस्य थे. इस मामले में उन्हें जेल भी जाना पड़ा था. विक्रम सैनी जब जेल से छूट कर आए तो भाजपा ने उन्हें खतौली से अपना उम्मीदवार बनाया. विक्रम सैनी ने भारी मतों से जीत दर्ज की और फिर 2022 के चुनाव में भी वह विजयी रहे. हालांकि विक्रम सैनी की सदस्यता रद्द होने के बाद इस सीट पर हुए उपचुनाव में यह सीट रालोद के मदन भैया ने जीत दर्ज की.

अशोक चंदेल

हमीरपुर से भाजपा विधायक अशोक कुमार सिंह चंदेल की सदस्यता जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत वर्ष 2019 में चली गई थी. 19 अप्रैल 2019 को हाईकोर्ट ने उन्हें हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा सजा सुनाई थी. अशोक चंदेल हमीपुर में वर्ष 2007 में राजीव शुक्ला के भाई- भतीजों समेत 5 लोगों की हत्या में दोषी पाए गए थे. इस चर्चित हत्याकांड में उनके साथ ही 11 अन्य लोगों को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सजा सुनाईत्र इसके बाद उनकी विधायकी खत्म होने की अधिसूचना जारी कर दी गई.

कुलदीप सेंगर

उन्नाव में नाबालिग से सामूहिक दुष्कर्म केस में बांगरमऊ से विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को उम्रकैद की सजा सुनाई गई. सजा सुनाए जाने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी गई. विधानसभा के प्रमुख सचिव की ओर से सजा के ऐलान के दिन 20 दिसंबर 2019 से ही उनकी सदस्यता खत्म किए जाने का आदेश जारी किया गया था.

अब्दुल्ला आजम

समाजवादी पार्टी से वर्ष 2017 में रामपुर के स्वार विधानसभा सीट से विधायक बने अब्दुल्ला आजम की सदस्यता भी रद्द हो चुकी है. 16 दिसंबर 2019 को उनका चुनाव शून्य करार देते हुए निर्वाचन रद्द कर दिया गया था. लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 107(1) के तहत चुनाव रद्द हो गया. उन्हें अयोग्य घोषित कर दिया गया.

रशीद मसूद

एमबीबीएस सीट घोटाले में कांग्रेस के सांसद रशीद मसूद की सदस्यता चली गई थी. रशीद कांग्रेस से राज्यसभा पहुंचे थे. राज्यसभा सांसद रहते उन्हें एमबीबीएस सीट घोटाले में दोषी पाया गया. वर्ष 2013 में कोर्ट ने चार साल की सजा सुनाई. घोटाले के समय रशीद मसूद केंद्र में स्वास्थ्य राज्य मंत्री थे. इस मामले में 1990-91 के शैक्षिक सत्र में केंद्रीय पूल से त्रिपुरा के लिए आवंटित सीटों पर दूसरे राज्यों के छात्रों को एमबीबीएस के प्रथम वर्ष में दाखिला दिलाकर फर्जीवाड़ा किया गया था.

मित्रसेन यादव

धोखाधड़ी के एक केस में समाजवादी पार्टी के सांसद मित्रसेन यादव को अपनी सांसदी गंवानी पड़ी थी. वर्ष 2009 में फैजाबाद सीट से सपा सांसद मित्रसेन यादव के खिलाफ धोखाधड़ी का एक मामला साबित हुआ. कोर्ट ने उन्हें सात साल की सजा सुनाई. इसके बाद उनकी सांसदी चली गई. वर्ष 2015 में मित्रसेन यादव का निधन हो गया.

इंद्र प्रताप तिवारी

फर्जी मार्कशीट केस में अयोध्या के गोसाईंगंज से भाजपा विधायक इंद्र प्रताप तिवारी उर्फ खब्बू तिवारी की सदस्यता चली गई थी. साकेत कॉलेज के प्राचार्य यदुवंश राम त्रिपाठी की याचिका पर कोर्ट ने उनके खिलाफ पांच साल की सजा सुनाई. इस मामले में खब्बू तिवारी को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी.