सर सैयद अहमद खान: आधुनिक शिक्षा के महान प्रेरक

-एम जे वारसी- (warsimj@gmail.com) सर सैयद अहमद खान 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सादात (सैयद) परिवार में पैदा हुए. बचपन से ही वे बहुत प्रतिभाशाली और गंभीर स्वभाव के थे. उम्र के साथ धीरे-धीरे उन्होंने एक महान विद्वान एवं समाज सेवक के रूप में ख्याति प्राप्त की. उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक […]

By Prabhat Khabar Print Desk | October 17, 2018 12:18 PM

-एम जे वारसी-

(warsimj@gmail.com)

सर सैयद अहमद खान 17 अक्टूबर 1817 को दिल्ली के एक प्रतिष्ठित सादात (सैयद) परिवार में पैदा हुए. बचपन से ही वे बहुत प्रतिभाशाली और गंभीर स्वभाव के थे. उम्र के साथ धीरे-धीरे उन्होंने एक महान विद्वान एवं समाज सेवक के रूप में ख्याति प्राप्त की. उन्नीसवीं शताब्दी के अंत तक सर सैयद अहमद खान सबसे करिश्माई और दूरदर्शी व्यक्ति के रूप में उभरे और विश्व पटल पर उनकी एक अलग पहचान बन गयी. उन्होंने भारतीय समाज विशेष रूप से भारतीय मुस्लिम समुदाय के लिए आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता को महसूस किया. सर सैयद अहमद खान यह बात अच्छी तरह जान चुके थे कि सशक्तीकरण केवल ज्ञान, जागरूकता, उच्च चरित्र, अच्छी संस्कृति और सामाजिक पहचान से ही आ सकती है.

यही कारण है कि सर सैयद अहमद खान ने लोगों को पारंपरिक शिक्षा के स्थान पर आधुनिक ज्ञान हासिल करने के लिए प्रेरित किया, क्योंकि वह जानते थे कि आधुनिक शिक्षा के बिना प्रगति संभव नहीं है. सर सैयद अहमद खान अपने आलोचकों चाहे वे मुसलमान हों या हिंदू के द्वारा उठाये गए सवालों का जवाब नहीं दिया करते, केवल अपने काम पर ध्यान केंद्रित रखते. उनका मानना था कि अगर वे अपने आलोचनाओं पर गये, तो वे अपने मिशन में कभी कामयाब नहीं होंगे. इसी सहनशीलता का परिणाम है कि आज सर सैयद अहमद खान को एक युग पुरुष के रूप में याद किया जाता है और हिंदू तथा मुसलमान दोनों ही उनका आदर करते हैं. सर सैयद अहमद खान ने सदा ही यह बात अपने भाषणों में कही थी कि, ‘हिंदू और मुसलमान भारत की दो आंखें हैं, अगर इनमें से एक आंख थोड़ी सी भी ख़राब हो गयी तो इसकी सुंदरता जाती रहेगी’.

1857 की महाक्रांति और उसकी असफलता के दुष्परिणाम उन्होंने अपनी आंखों से देखे. अंग्रेज़ों ने हिंदुस्तान पर अत्याचार जारी रखा. सर सैयद मुसलमानों की बर्बादी को देखकर तड़प उठे और उनके दिलो-दिमाग़ में राष्ट्रभक्ति की लहर करवटें लेने लगीं. अंग्रेज़ों ने सर सैयद को लालच देकर उनके खिलाफ न लिखने की सलाह दी और यह ऐसा मौक़ा था कि सर सैयद इनके जाल में फंस सकते थे. लेकिन वह बहुत ही बुद्धिमान और समझदार व्यक्ति थे. उन्होंने सोचा कि मैं दोराहे पर खड़ा हूं और सर सैयद ने उस वक़्त लालच को बुरी बला समझकर ठुकरा दिया और राष्ट्रभक्ति के ख़ूबसूरत हार को अपने गले में पहनना बेहतर समझा, क्योंकि उस वक़्त राष्ट्रभक्ति और देश में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए उनका दिल तड़प रहा था.

सर सैयद अच्छी तरह समझ चुके थे कि अंग्रेज़ी हुकूमत हिंदुस्तान पर स्थापित हो चुकी है और ऐसे में शिक्षा का सहारा लेकर ही हम उनसे मुक़ाबला कर सकते हैं इसलिए सर सैयद ने आगे बढ़ने तथा अपने क़ौम को आगे बढ़ाने के लिए शैक्षिक मैदान को बेहतर समझा. सर सैयद लगातार अपने बेहतरीन लेखों के माध्यम से क़ौम में शिक्षा व संस्कृति की भावना जगाने की कोशिश करते रहे ताकि किसी तरह शैक्षिक मैदान में कोई हमारी क़ौम पर हावी न हो सके. मुसलमान उन्हें कुफ्र का फ़तवा देते रहे बावज़ूद इसके क़ौम के दुश्मन बनकर या बिगड़कर न मिले बल्कि नरमी से उन्हें समझाने की कोशिश करते रहे.

हिंदुस्तान में शिक्षण संसथान खोलने से पहले तथा मुसलमानों के सामूहिक सुधार के लिए वे इंग्लैंड गये और वहां की यूनिवर्सिटियों में जाकर शिक्षा व संस्कृति का गहन अध्ययन किया. अच्छी तरह यूरोपीय शिक्षा-पद्धति का ज्ञान प्राप्त किया फिर हिदुस्तान वापस आकर इस दिशा में गंभीरतापूर्वक काम करने लगे. सर सैयद ने 1886 में ऑल इंडिया मुहम्मडन ऐजुकेशनल कॉन्फ़्रेंस का गठन किया, जिसके वार्षिक सम्मेलन मुसलमानों में शिक्षा को बढ़ावा देने तथा उन्हें एक साझा मंच उपलब्ध कराने के लिए विभिन्न स्थानों पर आयोजित किये जाने लगे. सर सैयद ने इंग्लैंड से लौटकर 1875 में मोहम्मडन ऐंग्लो ओरिएंटल कॉलेज की बुनियाद रखी और देखते ही देखते कॉलेज ने तेज़ी से प्रगति की और 1920 में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के रूप में इसे ख्याति प्राप्त हुई.

सर सैयद अहमद खान ने कॉलेज की स्थापना को लेकर अपने एक भाषण में कहा था कि ‘आज जो एक हम बीज बो रहे हैं वह एक घने पेड़ के रूप में फैलेगा और उसकी शाखें देश के विभिन्न क्षेत्रों में फैल जायेंगी. यह कॉलेज विश्वविद्यालय का स्वरूप धारण करेगा और इसके छात्र सहिष्णुता, आपसी प्रेम व सद्भाव और ज्ञान के संदेश को केवल भारत ही नहीं बल्कि सारी दुनियां में फैलायेंगे.’

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर, जो खुद भी एक जाने-माने शिक्षाविद हैं, ने यूनिवर्सिटी संस्थापक सर सैयद अहमद खान के विजन को विस्तार देने तथा अमुवि को सेंटर ऑफ एक्सीलेंस के रूप में विकसित करने के लिए नये प्रयासों एवं योजनाओं को लागू करने में अध्यापकों से सहयोग का आह्वान करते हुए उन्हें अपने भरपूर सहयोग का आश्वासन दिया तथा यूनिवर्सिटी को विश्व स्तरीय यूनिवर्सिटी बनाने में सबसे सहयोग की अपील की. उन्होंने कहा तभी हम सर सैयद के मिशन को पूरा कर पाएंगे.

आज अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्र सारी दुनियां में फैले हुए हैं और देश की शायद यह मात्र पहली ऐसी यूनिवर्सिटी है जिसके छात्र पूरी दुनिया में अपने संस्थापक सर सैयद का जन्म दिवस मनाते हैं. सर सैयद भारतीय मुसलमानों के ऐसे पहले समाज सुधारक थे जिन्होंने अज्ञानता की काली चादर हटाकर मुसलमानों में आधुनिक शिक्षा और नयी तर्जे जिंदगी प्रदान की.

(लेखक एक प्रसिद्ध भाषाविद्‌ और स्तंभकार हैं. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में कार्यरत हैं)

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