स्वतंत्रता संग्राम के पत्रकार और सेनानी थे रामदहिन ओझा

पंडित रामदहिन ओझा भारत के स्वंत्रता संग्राम के पत्रकार और सेनानी थे. असहयोग आंदोलन में किसी पत्रकार की पहली शहादत पंडित रामदहिन ओझा की थी. वे कलकत्ता से 1923-24 में प्रकाशित होने वाले हिन्दी साप्ताहिक ‘युगांतर’ के संपादक थे. जिस समय बलिया जेल में उनकी शहादत हुई, वे सिर्फ 30 वर्ष के थे. उनके साथी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | January 21, 2020 6:11 AM

पंडित रामदहिन ओझा भारत के स्वंत्रता संग्राम के पत्रकार और सेनानी थे. असहयोग आंदोलन में किसी पत्रकार की पहली शहादत पंडित रामदहिन ओझा की थी. वे कलकत्ता से 1923-24 में प्रकाशित होने वाले हिन्दी साप्ताहिक ‘युगांतर’ के संपादक थे. जिस समय बलिया जेल में उनकी शहादत हुई, वे सिर्फ 30 वर्ष के थे.

उनके साथी सेनानी कहते रहे कि पंडित रामदहिन ओझा के खाने में धीमा जहर दिया जाता रहा और इसी कारण उनकी मृत्यु हुई. उनके व्यक्तित्व के बहुआयामी पक्ष है. कवि, पत्रकार, स्वतंत्रता सेनानी उनके यह सारे आयाम देश को समर्पित थे.
रामदहिन ओझा का जिले के बांसडीह कस्बे में हुआ था. बांसडीह कस्बे में ही प्रारम्भिक शिक्षा के बाद रामदहिन ओझा के पिता रामसूचित ओझा उन्हें आगे की शिक्षा के लिए कलकत्ता ले गये. वहां बीस वर्ष की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते पत्रकार रामदहिन ओझा की कलकत्ता और बलिया में स्वतंत्रता योद्धाओं और सुधी राष्ट्रसेवियों के बीच पहचान बन चुकी थी.
विश्वमित्र व मारवाणी अग्रवाल आदि पत्र-पत्रिकाओं में कुछ स्पष्ट नाम तो कुछ उपनाम से उनके लेख और कविताएं छपने लगी थीं. अंतिम गिरफ्तारी में 18 फरवरी 1931 का दिन भी आया जब रात के अंधेरे में बलिया के जेल और जिला प्रशासन ने मृतप्राय सेनानी को उनके मित्र, प्रसिद्ध वकील ठाकुर राधामोहन सिंह के आवास पहुंचा दिया था. 1990 में टीडी कॉलेज चौराहे पर उनकी प्रतिमा स्थापित की गयी.

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