गुवा गोलीकांड के 45 साल : झारखंड के इतिहास का काला अध्याय

Gua Golikand: पश्चिमी सिंहभूम के गुवा में 45 साल पहले 8 सितंबर 1980 को बिहार मिलिट्री पुलिस (बीएमपी) के जवानों ने 8 आदिवासियों को अस्पताल से बाहर निकालकर लाइन में खड़ा करके बारी-बारी से उन्हें गोली मार दी थी. इस घटना को मानवाधिकार का घोर उल्लंघन और इतिहास का काला अध्याय माना जाता है.

By Mithilesh Jha | September 7, 2025 7:31 PM

Gua Golikand: झारखंड में 8 सितंबर 1980 को गुवा में हुआ गोलीकांड इतिहास का एक काला अध्याय है. अलग झारखंड राज्य के आंदोलन की मांग, लाल पानी से मुक्ति दिलाने की मांग और गिरफ्तार आदिवासियों की रिहाई समेत अन्य मांगों के समर्थन में आंदोलन कर रहे लोगों पर बिहार मिलिट्री पुलिस (बीएमपी) का कहर बरपा था. बीएमपी और जनजातीय समुदाय के लोगों के बीच हुए संघर्ष के बाद 8 आदिवासियों को अस्पताल से बाहर निकालकर लाइन में खड़ा करके गोली मार दी गयी थी. इसके बाद अलग राज्य का आंदोलन और तेज हो गया.

8 सितंबर 1980 को गुवा में हुई थी जघन्य घटना

झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के गुवा (Gua) में 8 सितंबर 1980 को हुई गोलीबारी ने अलग झारखंड राज्य की मांग राष्ट्रीय फलक तक पहुंचा. बीएमपी के जवानों की कार्रवाई मानवाधिकारों का घोर उल्लंघन था. यह अपनी तरह का एक जघन्य मामला था. इस घटना ने कोल्हान क्षेत्र को उद्वेलित कर दिया.

Gua Golikand: झारखंड आंदोलन का दौर

अलग झारखंड राज्य की मांग 1980 के दशक में जोर पकड़ रही थी. 8 सितंबर 1980 को सिंहभूम के गुवा बाजार में शैलेंद्र महतो, देवेंद्र मांझी जैसे नेता आदिवासियों की जनसभा को संबोधित करने वाले थे. किन्हीं कारणों से शैलेंद्र महतो और देवेंद्र मांझी वहां नहीं पहुंच पाये.

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गुवा बाजार में जवानों ने गोलियां, तो आदिवासियों ने बरसाये थे तीर

भारी संख्या में आदिवासी गुवा बाजार पहुंच चुके थे. ये लोग अलग झारखंड राज्य की मांग के समर्थन में नारेबाजी कर रहे थे. पुलिस ने उन्हें तितर-बितर करने की कोशिश की, तो आदिवासियों ने बीएमपी जवानों पर पथराव शुरू कर दिया. तीरों की बौछार भी की. बीएमपी जवानों की फायरिंग में 3 आदिवासी मारे गये. प्रदर्शनकारियों की तीर से 4 पुलिसकर्मियों की मौत हो गयी. इससे गुस्साये बीएमपी जवान गुवा के सरकारी अस्पताल पहुंचे. अस्पताल में भर्ती 8 आदिवासियों को बाहर निकाला और बारी-बारी से सभी को गोली मार दी.

भुवनेश्वर महतो को एसपी ने बचाया

आदिवासियों के नेता बहादुर उरांव और भुवनेश्वर महतो को बीएमपी के जवानों ने घेर लिया. हालांकि, आंदोलनकारियों ने बहादुर उरांव को सुरक्षित निकाल लिया, लेकिन भुवनेश्वर महतो को बीएमपी के जवानों ने पकड़ लिया. सिंहभूम के तत्कालीन एसपी डॉ रामेश्वर उरांव ने भुवनेश्वर महतो को हाजत में बंद किया. जवानों का गुस्सा शांत करने के लिए उन्हें थप्पड़ भी जड़ा. बीएमपी के जवान मांग कर रहे थे कि भुवनेश्वर महतो को उनके हवाले कर दिया जाये. वे 4 जवानों की मौत का बदला लेंगे. डॉ रामेश्वर उरांव ने ऐसा करने से मना कर दिया.

झामुमो ने गुवा गोलीकांड को ‘राजकीय हत्या’ करार दिया

झारखंड मुक्ति मोर्चा ने इसे ‘राजकीय हत्या’ करार दिया. नेशनल मीडिया में इस घटना की रिपोर्टिंग हुई, जिससे अलग झारखंड राज्य का आंदोलन चर्चा में आया. केंद्र सरकार ने जांच के आदेश दिये. हालांकि, बीएमपी जवानों के खिलाफ मामूली कार्रवाई हुई. इस मामले में कोई दोषी साबित नहीं हुआ. मानवाधिकार संगठनों ने इसे ‘फर्जी एनकाउंटर’ का उदाहरण माना.

बिहार पुलिस की विशेष शाखा थी बीएमपी

बीएमपी तत्कालीन बिहार में पुलिस की विशेष शाखा थी, जो नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में तैनात की जाती थी. आंदोलन करने वाले आदिवासियों को ‘नक्सली’ बताकर गिरफ्तार कर लिया जाता था. उनका दमन किया जाता था.

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