आदिवासी जीवन दर्शन व संघर्ष का तानाबाना मजबूत करना है : सुदेश महतो

आजसू अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो ने कहा है कि आदिवासियों को अपने हक, अधिकार, सम्मान लेने तथा प्रकृति, अस्मिता के करीब लाने का संदेश देने वाला यह दिन झारखंड के लिए बेहद अहम है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | August 10, 2020 6:34 AM

आजसू अध्यक्ष सुदेश कुमार महतो ने कहा है कि आदिवासियों को अपने हक, अधिकार, सम्मान लेने तथा प्रकृति, अस्मिता के करीब लाने का संदेश देने वाला यह दिन झारखंड के लिए बेहद अहम है. झारखंड में आदिवासियों की अदभुत संस्कृति, समृद्ध भाषा, जीवन दर्शन और संघर्ष का इतिहास इस दिवस के ताना-बाना को और मजबूत करता है.

आज का दिन आदिवासी समाज के लिए उनकी सभ्यता, संस्कृति, स्वशासन और मूल्यों को लेकर उनमें गौरव का बोध भरता है. श्री महतो ने कहा कि हम सभी सौभाग्यशाली हैं जो उलगुलान के महानायक बिरसा मुंडा, हूल विद्रोह के क्रांतिकारी योद्धा सिदो- कान्हो, चांद-भैरव झारखंड की धरती में जन्म लिये. महान व्यक्तत्वि जयपाल सिंह मुंडा, डॉ रामदयाल मुंडा ने संविधान में आदिवासियों को अधिकार दिलाने का संघर्ष किया. झारखंड के सभी नायक आनेवाली पीढ़ी को और सशक्त बनाने के लिए प्रेरित करता है.

आदिवासी विकास विरोधी नहीं, विनाश विरोधी

आजसू के केंद्रीय प्रवक्ता डॉ देवशरण भगत ने कहा है कि यह दिवस मूल्यांकन करने का है़ इस समाज के उत्थान के लिए निरंतर कार्यरत रहने का प्रण लेने का दिन है. जल, जंगल, जमीन आदिवासियों के जीवन का आधार हैं. आदिवासी विकास विरोधी नहीं, विनाश विरोधी है़ं डॉ भगत पार्टी कार्यकर्ताओं को अॉनलाइन संबोधित कर रहे थे़.

उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज अपनी अस्मिता, अस्तित्व और आत्मनिर्णय के लिए हमेशा संघर्ष करता रहा है. हमें विकास की अवधारणा को बदलना होगा. झारखंड के उलगुलान और उनके नायकों के विचारों को समझना होगा और उनके विचारों के अनुरुप ही इस राज्य को ढालना होगा़ डॉ भगत ने कहा कि देश में आदिवासियों की जनसंख्या में वृद्धि हुई, पर झारखंड में इनकी जनसंख्या घटी है. 1961 में भारत में आदिवासियों की जनसंख्या कुल आबादी की 6.9% थी. वर्ष 2011 में यह बढ़ कर 8.6% हो गयी. इसके विपरीत झारखंड में 1931 में आदिवासियों की आबादी कुल आबादी की 38.06% थी, जो 2011 में 26.02 % हो गयी. यह चिंता का विषय है़

posted by : sameer oraon

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