जमानत मिलने पर तत्काल हो रिहाई : हाइकोर्ट

हाइकोर्ट के जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद तथा जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने गुरुवार को आदेश पारित किया कि यदि किसी आरोपी को जमानत या कोर्ट से सजा स्थगन का आदेश हुआ हो, तो उसे तुरंत जेल से रिहा किया जाये.

By PRAVEEN | October 10, 2025 12:55 AM

रांची. हाइकोर्ट के जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद तथा जस्टिस राजेश कुमार की खंडपीठ ने गुरुवार को आदेश पारित किया कि यदि किसी आरोपी को जमानत या कोर्ट से सजा स्थगन का आदेश हुआ हो, तो उसे तुरंत जेल से रिहा किया जाये. रिहाई में किसी प्रकार की देरी नहीं होनी चाहिए. खंडपीठ ने सुप्रीम कोर्ट के 31 जनवरी 2023 के आदेश का हवाला देते हुए यह आदेश दिया. यह मामला तब हाइकोर्ट के संज्ञान में आया जब यह पाया गया कि एक अभियुक्त को जमानत मिलने के बावजूद सात वर्षों तक रिहा नहीं किया गया, क्योंकि उसने जमानत की शर्तें पूरी नहीं की थीं और जमानत बांड प्रस्तुत नहीं किया था. खंडपीठ ने यह भी निर्देश दिया है कि जमानत आदेश की प्रति संबंधित न्यायालय द्वारा इमेल के माध्यम से जेल अधीक्षक को उसी दिन या अगले दिन भेजी जाये, ताकि वह कैदी तक पहुंचा सके. जेल अधीक्षक को यह सुनिश्चित करना होगा कि जमानत से संबंधित विवरण को जेल के रिकॉर्ड अथवा सॉफ्टवेयर में दर्ज किया जाये. यदि जमानत आदेश के सात दिनों के भीतर आरोपी की रिहाई नहीं होती, तो जेल अधीक्षक को संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकार (डालसा) के सचिव को सूचित करना होगा, ताकि रिहाई के लिए आवश्यक कदम उठाये जा सकें. यदि एक माह के भीतर जमानत बांड प्रस्तुत नहीं किया जाता, तो जमानत की शर्तों में संशोधन या शिथिलता के लिए भी दिशा-निर्देश जारी किये गये हैं. खंडपीठ ने उक्त निर्देशों की प्रति सभी जिला विधिक सेवा प्राधिकारों एवं जेल अधीक्षकों को भेजने का आदेश दिया है. मामले में झारखंड राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (झालसा) को भी पार्टी बनाया गया था.

दुष्कर्म पीड़िता की जांच महिला चिकित्सक ही करें

इसके अतिरिक्त दुष्कर्म पीड़िता का चिकित्सीय परीक्षण पुरुष चिकित्सक द्वारा किये जाने के मुद्दे पर झालसा ने एक शपथपत्र दायर किया था, जिसे भी हाइकोर्ट के संज्ञान में लाया गया. खंडपीठ ने कहा कि पोक्सो अधिनियम तथा बीएनएसएस, 2023 दोनों यह अनिवार्य करते हैं कि दुष्कर्म पीड़िता का चिकित्सीय परीक्षण केवल महिला चिकित्सक द्वारा ही किया जाये. हाइकोर्ट ने झारखंड सरकार के स्वास्थ्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को निर्देश दिया है कि राज्य के सभी सदर अस्पतालों में महिला चिकित्सकों की पदस्थापना सुनिश्चित की जाये. साथ ही यह भी कहा गया है कि यदि इस आदेश का पालन नहीं किया गया, तो इसे न्यायालय की अवमानना माना जायेगा.

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