पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी व अन्य भुईयां अनुसूचित जाति में किये जायेंगे शामिल

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने दी भुईयां जाति के अंतर्गत अनुसूचित जाति में शामिल करने की स्वीकृति

By Prabhat Khabar | November 30, 2020 6:56 AM

रांची : पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी,क्षत्रीय, देहरी क्षत्रीय, खंडित भुईयां तथा गड़ाही/गहरी को भुईयां जाति के अंतर्गत अनुसूचित जाति में शामिल करने के प्रतिवेदन पर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपनी स्वीकृति दे दी है. भुईयां जाति की इन उप जातियों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल करने के लिए डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान ने प्रतिवेदन (रिपोर्ट) दिया था. मुख्यमंत्री की स्वीकृति के बाद अब यह प्रस्ताव केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को भेजा जायेगा.

डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान, रांची द्वारा शोध प्रतिवेदन में उल्लेख किया गया है कि क्षेत्रीय सर्वेक्षण के क्रम में पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी, क्षत्रीय, देहरी क्षत्रीय, खंडित भुईयां तथा गड़ाही/गहरी की मूल जाति भुईयां है. इनके गोत्र कच्छप, कदम, महुकल, नाग, मयूर आदि हैं. इनका निवास दक्षिणी छोटानागपुर के रांची, खूंटी, गुमला, सिमडेगा, पूर्वी सिंहभूम, पश्चिमी सिंहभूम तथा सरायकेला-खरसावां में है, लेकिन वर्तमान में विभिन्न क्षेत्रों में बसे हुए हैं.

इन उपजातियों का निवास भू-अभिलेख में दर्ज है. इनकी उत्पत्ति अनुसूचित जाति भुईयां से है. कहा गया है कि पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी, देहरी क्षत्रीय, खंडित भुईयां एवं गड़ाही/ गरही जाति किसी भी जाति सूची में अधिसूचित नहीं हैं.

इसलिए जाति सूची से इन्हें हटाने का प्रश्न ही नहीं है. अनुसूचित जाति से अनुसूचित जनजाति में स्थानांतरित करने की आवश्यकता नहीं है. इन उपजातियों की शैक्षणिक स्थिति कमजोर होने का मुख्य कारण आर्थिक, शैक्षणिक एवं सामाजिक रूप से पिछड़ा होना है. पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी, देहरी क्षत्रीय, खंडित भुईयां एवं गड़ाही/ गरही उपजाति राज्य/केंद्र द्वारा अनुसूचित जाति सूची की किसी भी श्रेणी में सूचीबद्ध नहीं हैं. प्रतिवेदन में कहा गया कि पाईक, खंडित पाईक, कोटवार, प्रधान, मांझी, देहरी क्षत्रीय, खंडित भुईयां एवं गड़ाही/ गरही को भुईयां जाति के अंतर्गत सूचीबद्ध करने पर विचार हो सकता है.

. डॉ रामदयाल मुंडा जनजातीय कल्याण शोध संस्थान ने दिया था प्रतिवेदन

. अब प्रस्ताव केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय को भेजा जायेगा

posted by : sameer oraon

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