सीसीएल ने 30 साल पहले जमीन ली, न नौकरी दिया और न ही दिया मुआवजा, अब मांग रहा एनओसी

पिपरवार क्षेत्र से कोयले की ढुलाई के लिए मैक्लुस्कीगंज थाना क्षेत्र में राजधर साइडिंग का निर्माण कराया गया था. राजधर साइडिंग के निर्माण के लिए सीसीएल ने 30 वर्ष पूर्व सरैया, कोयलरा, मायपुर, हेसालौंग व महुलिया आदि गांवों की करीब 200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था.

By Prabhat Khabar | September 28, 2020 8:25 AM

प्रणव, रांची : पिपरवार क्षेत्र से कोयले की ढुलाई के लिए मैक्लुस्कीगंज थाना क्षेत्र में राजधर साइडिंग का निर्माण कराया गया था. राजधर साइडिंग के निर्माण के लिए सीसीएल ने 30 वर्ष पूर्व सरैया, कोयलरा, मायपुर, हेसालौंग व महुलिया आदि गांवों की करीब 200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था. इसके एवज में प्रति दो एकड़ के हिसाब से एक व्यक्ति को सीसीएल द्वारा नौकरी देने और प्रति एकड़ 20 हजार रुपये के हिसाब से मुआवजा दिया जाना था.

  • राजधर साइडिंग के निर्माण के लिए सीसीएल ने करीब 200 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया था

  • 32 लोगों को ही मिली नौकरी, 40 को अब भी नौकरी का इंतजार है और मुआवजा भी बकाया

  • ग्रामीणाें का कहना है कि नीचे से ऊपर तक के अधिकारियों से गुहार लगा हो चुके हैं परेशान

लेकिन अब तक करीब 32 लोगों को ही नौकरी दी गयी है. 40 लोगों को अब भी नौकरी का इंतजार है. मुआवजा भी बकाया है. अब 30 सालों बाद सीसीएल ने उक्त जमीन के फॉरेस्ट क्लियरेंस के लिए राज्य सरकार से अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) मांगा है. इस बात की पुष्टि पिपरवार कोलियरी के जीएम अजय कुमार सिंह भी करते हैं. वे कहते हैं कि एनओसी के बाद आगे की कार्रवाई की जायेगी.

ऐसे में सवाल उठता है कि 2019 तक जब फॉरेस्ट क्लियरेंस की आवश्यकता नहीं थी, तब विस्थापितों की नौकरी और मुआवजा पर प्रबंधन ने फैसला क्यों नहीं लिया? सरैया, कोयलरा, मायपुर, हेसालौंग व महुलिया आदि गांवों की जमीन ली गयी थी

अब सर्किल रेट पर फंस गया है पेंच : जमीन की प्रकृति जंगल-झाड़ की है. 2019 तक इसमें फॉरेस्ट क्लियरेंस की जरूरत नहीं थी. लेकिन केंद्र सरकार द्वारा इस वर्ष जारी आदेश में जंगल-झाड़ वाली जमीन का भी फॉरेस्ट क्लियरेंस जरूरी हो गया है. एनओसी के बदले में सीसीएल राज्य सरकार को अधिग्रहण के समय की जमीन का सर्किल रेट देना चाह रही है. लेकिन राज्य सरकार की ओर से वर्तमान सर्किल रेट मांगा जा रहा है.

कहा जा रहा है कि उच्च स्तर पर भी मामले में वार्ता हुई है. एनओसी के बाद सीसीएल कुछ और प्रक्रिया पूरी कर विस्थापितों को मुआवजा व नौकरी देने की कार्रवाई शुरू कर सकती है. पुरानी दर से मुआवजा का भी दो करोड़ बकाया

हेसालौंग विस्थापित प्रभावित संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष रविंद्र कुमार और अजय कुमार के अनुसार, पुराने समय के हिसाब से मुआवजा का करीब दो करोड़ रुपये बकाया है. इसे लेकर कई बार आंदोलन किया गया. लेकिन सीसीएल द्वारा आश्वासन के अलावा कुछ नहीं दिया गया. उलटे झूठे केस में फंसा कर हमलोगों को परेशान किया जाता है.

सीसीएल द्वारा कहा जाता है कि जमीन के बदले दी जानेवाली मुआवजा राशि जिला भू-अर्जन कार्यालय रांची को पहले ही दे दी गयी है. जबकि रांची की जिला भू-अर्जन पदाधिकारी ने 17 फरवरी 2018 को लिखित तौर पर हमलोगों को जवाब दिया है कि अधिग्रहण, विस्थापन, पुनर्वास से संबंधित सूचना व नौकरी देने का विषय हमारे कार्यालय से संबंधित नहीं है.

अभी तक आधे से ज्यादा रैयतों को जमीन के बदले नौकरी और मुआवजा नहीं दिया गया है. सीसीआर के तहत जो सुविधाएं ग्रामीणों को मिलनी चाहिए थी, वह भी नहीं मिल रही है.

Post by : Pritish Sahay

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